बुधवार, 24 अक्तूबर 2012

दशहरे की बधाई !

         आज दशहरा है सोचा अपने परिचितों मित्रों को दशहरे की बधाईयाँ दे दूँ .अपनी सोचने की आदत से परेशान सोचा आखिर किस बात की बधाई दूँ? असत्य पर सत्य की जीत की ख़ुशी की बधाई दें  लेकिन किस बात की ख़ुशी ? असत्य तो फिर अगले साल कहीं इससे ज्यादा विकराल रूप में खड़ा हो जाएगा !फिर बधाई देने की ज़हमत उठानी पड़ेगी! यह सोचकर असत्य पर सत्य की जीत की ख़ुशी काफूर हो गई सोचा इस बधाई के झंझट में न पड़ा जाए तो अच्छा है  फिर दिमाग घूम गया चलो एक दशहरा हमने और देख लिया इस बात की बधाई दें! कुछ तसल्ली हुई चलो बधाई देने का कारण तो मिल गया ! यही सोचते सोचते घर से बाहर निकला तो देखा मुहल्ले के बच्चे अपने अपने घर के सामने छोटे छोटे रावण के पुतले के दहन की तैयारी कर रहे थे . उनकी ख़ुशी देख मन प्रसन्न हो गया ! लेकिन हाय ! इस ख़ुशी को भी मैं कायम नहीं रख सका . अपनी सोचने की आदत से मजबूर फिर सोचने लगा -- हम हिन्दुस्तानी लोग प्रतीकों में जीने वाले लोग हैं शायद इसीलिए हर वर्ष जलाने के लिए रावण के पुतले की आवश्यकता पड़ती है और इन्हीं प्रतीकों में हम ख़ुशी तलाश लेते हैं... तभी  पत्नी बगल के किसी पार्क में बच्चों के साथ जहाँ हर साल रावण के पुतले का दहन होता था वहाँ से चेहरे पर निराशा और उदासी का आवरण ओढ़े लौटी...मैं अचकचा कर उन्हें देखने लगा... सोचा.. क्या हो गया...?     सत्य की पराजय तो नहीं देख लिया...! तभी कानों में उनकी आवाज पड़ी, अरे...! इस बार तो वहाँ पुतला दहन हुआ ही नहीं...'' यह सुनते ही मुझे संतोष हुआ कि चलो जो बात मैं सोच रहा था वह बात नहीं और सत्य सुरक्षित है..... फिर मैं तसल्ली देते हुए सा पत्नी से बोला, ''अरे... किसी दूसरे पार्क में हो सकता है इस बार जलाया गया हो...'' इसे अनसुनी कर वह अपने किसी काम में लग गईं. लेकिन मुझे चिंता हो आई और सोचने लगा...क्या प्रतीकों में रावण का जलना भी हम नहीं देख पाएंगे...इस सोच के चक्कर में कम से कम प्रतीकों में ही सही असत्य के पराजय की खुशी में बधाई देने के विकल्पों के तलाश में मिला वह प्यारा सा विकल्प भी दिमाग से मिस कर गया और बधाई देने से चूक गया ! अगले वर्ष तक इंतजार करना होगा हमारे सभी शुभ चिन्तक हमें क्षमा करेंगे . 

रविवार, 14 अक्तूबर 2012

चेतना का स्तर




       कभी-कभी दैनिक जीवन में घटने वाली कुछ घटनाओं को हम नजरअंदाज कर आगे बढ़ जाते हैं...छोटी ही सही लेकिन वे हमें कुछ सोचने पर विवश कर देती हैं... ऐसी ही एक घटना मुझे तब याद आई जब मैंने एक अख़बार में इस दुखद खबर को पढ़ा ''सड़क पार करते एक सांप को बचाने में ट्रैक्टर पलटने से उसके ड्राइवर समेत दो लोग मारे गए^^ इसे पढ़ याद आने वाली घटना कुछ इस प्रकार थी....एक बार मैं किसी सड़क से गुजर रहा था... मैंने देखा सड़क के किनारे की खंती से निकल कर एक नेवला उसके पक्के किनारे तक बड़ी तेजी से आया.... और किनारे पर ही रुक गया... फिर अपने पिछले दोनों पैरों के सहारे खड़ा हो सिर को दायें बाएं घुमा कर ऐसे देखा जैसे वह आने जाने वाले वाहनों का जायजा ले रहा हो... इसके तत्काल बाद बड़ी तेजी से सड़क पार कर गया....

अखबार में खबर पढ़ने के बाद उक्त देखी घटना के याद आने से मैं कुछ सोचने पर विवश हो गया.... जो जीवन का सम्मान करते हैं हमें उनका दिल से सम्मान करना चाहिए... हमारी चेतना हमारी संवेदनशीलता की गहराई पर निर्भर करती है.... नेवले का सड़क पर आती जाती गाड़ियों को देखते हुए उससे बच कर निकलने की संवेदनशीलता और सांप को सड़क पार करते हुए देख कर उसे बचाने की ट्रैक्टर ड्राइवर की संवेदनशीलता... दोनों सम्मान के विषय हैं... सृष्टि का उद्देश्य चेतना के इसी स्तर को पाना है|