शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

दुआ

                  उस दिन सुबह-सुबह उठा पता चला...कसाब को फांसी दे दी गई ! इस खबर को पढ़ कर अपने मन की प्रतिक्रिया को जानने की कोशिश की....मन ने तो कोई प्रतिक्रिया नहीं की....बल्कि वह थोडा सा उद्विग्न , थोडा सा उदास हो गया...इसका कारण क्या था समझ में नहीं आया...हाँ वही कसाब... जो कुछ वर्षों से चाहे वह ख़बरों के माध्यम से ही सही,,, हम लोंगों के बीच था...अब वह नहीं रहा शायद यही भाव मन को उद्विग्न और उदास कर गया हो....इसके बाद पता चला देश के लोगों ने ख़ुशी मनाई....लेकिन मौत तो मौत होती है....चाहे वह मुंबई के निर्दोष नागरिकों की हो या फिर फांसी पर लटका कसाब...मौत पर मौन ही अच्छा ...! वास्तव में कसाब एक जुनूनी था जिसके जूनून का दुरूपयोग कुछ लोगों ने कर उसे इस अंजाम तक पहुंचा दिया...हमारे समाज में ऐसे भयंकर सामाजिक अपराधी आज भी घूमते पाए जा सकते हैं जिनका अपराध किसी कसाब से कम नहीं हो सकता...माफियावाद, आर्थिक अपराध आदि से जुडी आपराधिक घटनाये देश में आम है....हमें ऐसी मानसिकता और उस जूनून को भी फांसी के फंदे तक पहुंचाना होगा जिसके कारण मुंबई की घटना, कसाब एवं अन्य आपराधिक घटनाओं का जन्म होता है...तभी हमें जश्न मनाने का आधिकार है, अन्यथा हमें कसाब की फांसी को देश की न्यायायिक और प्रशासनिक व्यवस्था की एक सामान्य और सहज घटना मानते हुए शांत मन से स्वीकार कर लेना चाहिए....साथ ही इसे राष्ट्रवाद के खांचे में फिट कर एक और व्यर्थ के जूनून को प्रकट नहीं करना चाहिए...आओ हम दुआ करें मानव जीवन को हानि पहुँचाने वाली कोई भी घटना न हो.... 

बुधवार, 14 नवंबर 2012

दीपावली की बधाई...!

                 कल दीपावली थी...हमने दीये बनाए । इन दीयों को हम लोगों ने घर के अंदर और बाहर जला दिए । सुबह मैं उठा...बाहर दीयों पर मेरी दृष्टि गयी ...बाती जल कर राख हो चुकी थी ....मैंने सोचा ....बेचारी यह बाती  ...रात भर जली होगी ...! रात भर इसने रोशनी बिखेरी होगी ...! अँधेरे से लड़ती रही होगी...! मैं आहिस्ता-आहिस्ता झुका और...बाती की राख को माथे से लगा लिया...सोचा...बाती...! तुम तो रोशनी बन आँखों में उतर गई हो...! तभी तो माँ बचपन में... तुम्हारी राख से काजल बनाती और आँख में लगा देती...कहती आज तो काजल जरुर लगवाना चाहिए....आज पत्नी ने भी यही बात दोहराई थी... दीपावली की बधाई हो बाती...
                                        दीपक की लौ में बाती की क़ुरबानी थी, 
                            अँधेरे से लड़ती वह बाती बलिदानी थी|