गुरुवार, 3 जनवरी 2013

चेतना तो स्थिरांक है...!

    जीवन और जगत के अनुभव तथा अपने स्वयं के अहसास से उसने यही पाया है कि...चेतना तो स्थिरांक है...! इस ब्रह्माण्ड का कण-कण चेतन है...क्योंकि...यह चेतना इसी ब्रह्माण्ड से उपजती है...दृश्यमान चेतना का विभिन्न स्तर इस बात पर निर्भर होता है कि जिस पदार्थ में यह चेतना परिलक्षित हो रही है उस पदार्थ में वाह्य जगत के अन्य गुणों को ग्रहण करने की कितनी क्षमता है जिसके कारण जगत के अन्य गुण उससे सम्बध्द होते जाते हैं तथा चेतना के स्तर में परिवर्तन होता रहता है...मनुष्य नामक पदार्थ भी इसका उदाहरण माना जा सकता है...मनुष्य बचपन से लेकर जवानी एवं वृद्धावस्था तक तमाम अहसासों से होकर गुजरता रहता है जिसके कारण उसमें परिलक्षित चेतना का स्तर परिवर्तित होता रहता है...जो तथाकथित बुद्धि या विवेक के रूप में दिखाई देती है...यह बुद्धि और विवेक और कुछ नहीं बल्कि मनुष्य नामक पदार्थ की वह क्षमता है जिसके कारण वाह्य जगत के अन्य गुण उससे चिपकते हैं...! वास्तव में यदि हमें चेतना के उच्च स्तर को पाना है तो अपने अहसासों को समझना होगा...अपनी संवेदनशीलता को बढ़ाना होगा...|