गुरुवार, 21 नवंबर 2013

क्या संवैधानिक संस्थाएं किसी के सम्मान की मोहताज भी हो सकती हैं...?

           हमारी संवैधानिक संस्थाओं में जब किसी प्रतिष्ठित या शक्तिशाली राजनीतिक व्यक्ति के विरुद्ध कोई मामला जाता है तो प्रायः उस व्यक्ति द्वारा यह कहते हुए सुना जा सकता है कि वह इस संस्था की इज्जत करता है इसलिए सम्बंधित संस्था को इसका उत्तर देगा, क्या प्रकारांतर से उसका यह कथन उसके इस अहं को नहीं दर्शाता कि वह चाहे तो इस संस्था को उत्तर ही न दे ? जैसे न्यायालय से कोई बड़ा सजायाफ्ता व्यक्ति यदि यह कहे कि वह न्यायालय के निर्णय का सम्मान करता है..और आगे इसे देखेगा...! क्या कोई एक कमजोर या गरीब व्यक्ति के मुँह से यही वाक्य निकलेगा..? अरे भाई..तुम न्यायालय या इसके जैसे किसी संवैधानिक संस्था की बातों का सम्मान करो या न करो लेकिन वह तुम्हारे सम्मान की मोहताज भी नहीं है..   

बुधवार, 20 नवंबर 2013

पत्रकारिता किसी के उल्लू को सीधा करने का काम न करे..

          लगता है हम सब अब राजनीतिक हो चले हैं इसके इतर जैसे हम कुछ सोचना ही नहीं चाहते...और हर राजनीतिक घटनाक्रम के साथ राजनीतिक वक्तव्य भी राजनीतिक खबर होती है..! बचपन में जब हम अख़बार पढ़ते थे तो प्रकाशित समाचार सूचनाएं हुआ करती थी जिनसे कुछ अस्तित्वमान तथ्यों का बोध हुआ करता था या घटनाएँ ही ख़बर होती थी लेकिन आज किसी के कथन को ही एक ख़बर के रूप में प्रकाशित कर दिया जाता है...खासकर राजनीतिक वक्तव्य को बहुधा खबर के रूप में जगह मिल जाती है...इसके साथ-साथ अन्य वक्तव्य जैसे यदि किसी समाचार-पत्र में 'भारत में गरीबी कम हुई' जैसी हेडलाइन प्रकाशित होती है तो इसको पढ़ते हुए हम इसे एक तथ्यात्मक सूचना मानने की भूल कर सकते हैं..क्योंकि समाचार-पत्र में प्रकाशित यह हेडलाइन मात्र किसी का कथन भर हो सकता है, और आज के समाचार-पत्रों में इस तरह के भ्रमात्मक समाचार शीर्षकों की भरमार होती है|
              आज का मजाकिया जैसा लगने वाला समाचारों का यह मीडिया इसी तरह राजनीतिक कथनों को ही खबरों के रूप में अधिक महत्व देने लगा है..परिणामस्वरूप कोई महान नेता बन रहा है, कोई महान समाजसुधारक बन रहा है तो कोई ईमानदार नेता की छवि गढ़ रहा है और तो और कोई महान संत बन भगवान का दर्जा भी प्राप्त कर रहा है..और शायद इन सब में भ्रमात्मक समाचार-शीर्षकों का विशेष योगदान रहता है...        
             हमें लगता है ऐसी ख़बरों का केन्द्र्विंदु बना व्यक्ति अपने वार-रूम में बैठा कुटिल मुस्कराहटों के साथ प्रकाशित अपने इन ख़बर रूपी वक्तव्यों का हम पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करता होगा...तथा समाचार-पत्रों के लिए एक नए वक्तव्य गढ़ने की तैयारी भी कर रहा होता है...और हम हैं कि अपने मन में ऐसे व्यक्तियों के लिए तमाम उपाधियों को तलाशते रहते हैं...तथा हम अपनी तमाम अपेक्षाओं, आकांक्षाओं को धुल-धूसरित होते हुए भी देखते हैं...हम किसे दोष दें...कहीं हम मूर्खों के साम्राज्य में तो नहीं रह रहे हैं...जहाँ केवल मूर्ख बनाने का खेल खेला जाता हो और कहीं कोई उल्लू सीधा हो रहा हो...लेकिन पत्रकारिता का एक काम तो लोगों को सजग करना भी तो होना चाहिए..!