मुझे याद आता है सन ८८ की बात होगी उन दिनों मैं
इलाहबाद में अपनी पढ़ाई पूरी कर रहा था..उन्हीं दिनों बाबा साहब डा० आंबेडकर की
मूर्तियों को जगह-जगह स्थापित करने के साथ ही इस सम्बन्ध में कुछ विवाद भी होते हुए दिखाई
देते थे...और डा० अम्बेडकर का राजनीतिकरण जैसे होते हुए दिखाई दिया था...लेकिन
मेरे मन में उनकी ऐसी छवि नहीं थी उन्हें संविधान निर्माता के साथ ही एक ऐसे सामजिक
आन्दोलन की भावनाओं को इसके पन्नों में उकेरते हुए पाया था जो इन्हें भारत के
राष्ट्र-नायकों के अग्रिम पंक्ति में स्थापित करता था...और इस तरह सभी का उनपर बराबर का
अधिकार था| लेकिन उन दिनों ऐसा लगा था जैसे इनका भी राजनीतिकरण किया जा रहा है तथा इन्हें किसी एक विशेष जाति वर्ग के लिए आरक्षित कर दिया गया हो, इससे
मन खिन्न सा हो गया था...तब इसी पीड़ा को मैंने नवभारत टाइम्स में पाठकों के पत्र
के रूप में भेजे जाने अपने पत्र में व्यक्त किया था जो उसमें प्रकाशित भी हुआ
था... आज बाबा साहब डा० आंबेडकर का जन्मदिन है. दैनिक हिन्दुस्तान’ में उदित राज
जी का लेख ‘अंबेडकर की सोच है असल राष्ट्रवाद’ पढ़ा. वास्तव में अम्बेडकर किसी एक
जाति या वर्ग के ही महानायक नहीं हैं बल्कि वे भारत के आधुनिक लोकतांत्रिक
राष्ट्र-राज्य के निर्माता हैं; सबको बराबरी का हक दिलाने वाले पर सब का बराबर
अधिकार है और आज समाज का हर वर्ग इस बात को स्वीकार रहा है, यह देश के सामाजिक, आर्थिक
और लोकतांत्रिक प्रगति के लिए शुभ लक्षण है...जय भीम जय भारत...!