आज स्वतन्त्रता दिवस की वर्षगांठ थी एक सभा में मुझे भी बोलने के लिए पुकारा गया. मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या बोलूं क्योंकि उस सभा में बैठे सभी लोग स्वतंत्रता दिवस और इसे क्यों मनाया जाता है इसका मतलब बखूबी समझते थे और मुझे इसका भी अहसास था कि जो मैं बोलना चाहता हूँ उसके विरुद्ध हम सब क्या करते हैं, फिर भी मुझे बोलना था मैंने बोलना प्रारंभ किया , ''सभा की अध्यक्षता कर रहे आदरणीय......और सम्मानित......आज हम प्रत्येक वर्ष की तरह स्वतंत्रता दिवस की वर्षगांठ मना रहे हैं....इस वर्षगांठ के मनाने के पीछे के उद्देश्य को हमें समझना होगा......आजादी के समय की भावनाओं, संघर्षों एवं आजादी के लिए किए गए त्याग को समझना होगा और उन्हें अपने अन्दर जीवित रखना होगा तभी इस वर्षगांठ मानाने का कोई मतलब है....नहीं तो इसे हर साल मानाने का मतलब किसी कवि के शब्दों में, 'क्या आजादी केवल तीन थके हुए रंगों का नाम है....' प्रत्येक वर्ष हम तिरंगा ही फहराते चले आ रहे हैं लेकिन हमने क्या बदलाव लाया...आज भी हमारा देश मानव जनानंकीय विकास के सर्वेक्षणो में लगभग अंतिम पायदान पर आता है....हम क्या खास बदलाव कर पाए हैं...? आखिर हमने किया क्या...केवल तिरंगा फहराने तक सीमित हो चुके हैं...एक कवि की दो लाइनें हम सुनाते हैं...हमने जीवन क्या जिया / लिया लिया बहुत ज्यादा/दिया दिया बहुत कम/मर गया देश/ जीवित रह गए तुम हमें आजादी की भावना को समझना होगा उसे आत्मसात करना होगा ...जय हिन्द'' इस प्रकार मैंने अपना भाषण समाप्त किया...लोगों ने ताली बजाई मैंने नोटिस किया मैंने भी ताली बजाई....शीघ्र मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ कि स्वयं मुझे अपने भाषण पर ताली नहीं बजानी चाहिए.....मैं अपने इस नादान हरकत पर मन ही मन शर्मिंदा होने लगा और सोचने लगा किसी ने इसका नोटिस तो नहीं लिया....खैर मैंने मन ही मन इसका विश्लेषण करना शुरू कर दिया कि मैंने अपने ही भाषण पर स्वयं ताली क्यों बजाई...मैंने पाया कि मेरे पूर्व के जो वक्ता बोलते थे उनके भाषण समाप्त होने पर लोग ताली बजाने लगते थे ...और सबकी देखादेखी और कुछ औपचारिकता निभाने हेतु मैं भी ताली बजाने लगता था....शायद मेरे अवचेतन में इसका प्रभाव था और इसी प्रभाव के कारण मैंने स्वयं अपने ही भाषण पर ताली बजाई....मुझे सजग रहना चाहिए था....
फिर मैंने अपने दिए भाषण का मन ही मन श्रोताओं पर पड़ने वाले इसके प्रभाव का विश्लेषण करने लगा....मुझे लगा कि जैसे मैंने एक मानसिक त्रुटिवश अपने ही भाषण पर ताली बजाई वैसे ही अन्य लोगों ने या तो उसी मानसिक त्रुटिवश ताली बजाई होगी या फिर औपचारिकता वश......इस भाषण ने किसी पर कोई प्रभाव नहीं डाला होगा....क्योंकि यहाँ बैठा हर शख्श केवल बैठने की औपचारिकता निभा रहा है...ऐसे में भाषण से प्रभावित होने का कोई प्रश्न ही नहीं है...अगले दिन बैंक बैलेंश कैसे बढे मेरे समेत सभी इसके तरीके पर सोच रहे होंगे....और.... ऐसे ही किसी अन्य अवसर पर देने वाले भाषण की मन ही मन तैयारी कर रहे होंगे.....जय हिन्द...! ....पुन: ताली.......लेकिन सचेत होकर !
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