शनिवार, 23 जुलाई 2016

आखिर विवाद की जड़ कहाँ है?

             वैसे आजकल सारा विवाद धर्म को लेकर नहीं अपितु पूजा-पद्धतियों और कुछ हद तक जीवनशैली को लेकर ही है। धर्म तो निर्विवादित चीज है। बचपन में पढ़ी कहानियों में छिपी नैतिक-शिक्षा और स्कूलों में पढ़ी नैतिक-शिक्षा की बातों को ही अब तक धर्म समझते आया था। जैसे "विद्या ददाति विनयम्" को सभी पूजा-पद्धतियों में ग्राह्य और सबके धर्म के रूप में समझा था भले ही यह संस्कृत श्लोक हो। वास्तव में एेसी ही नैतिक मान्यताओं को धर्म माना था। और इसी आधार पर मैं मानने लगा था कि दुनियाँ वालों का धर्म एक ही है। लेकिन अब हम यदि कोई किताब पढ़ लिए तो चाकू लेकर चलना सीख जाते हैं, पता नहीं आज की ये किताबें कैसी हैं?
            आखिर विवाद की जड़ कहाँ है? तो यह बुलेट ट्रेन में चलने या चलाने की मंशा रखना ही विवाद को न्यौता देने वाला हो गया है, और इसके लिए भाई सरकारें भी दोषी हैं। भाई लोग पैसेंजर ट्रेन में चलने के आदी हैं बुलेट ट्रेन में बैठे या बैठने की चाहत रखने वालों को देख इन्हें ईर्ष्या या कुढ़न तो होगी ही! फिर या तो बुलेट ट्रेन ही जला दी जाएगी या चाकू की नोक पर इस ट्रेन से उतार कर पैसेंजर ट्रेन में बैठने के लिए कहा जाएगा। इन्हें पता है ये बुलेट ट्रेन नहीं बना सकते क्योंकि इसे बनाने के लिए बहुत सारे विवादों से परे जाना होता है। इसे यूरोप वालों ने बहुत पहले समझ लिया था। ईसाइयत को लेकर मध्य-युग में बहुत मार-काट थी लेकिन बाद में इनने इसमें से "प्रेम" को पकड़ लिया फिर तो इनकी बुलेट ट्रेन तो चली ही क्वांटम थियरी पर भी ये सोचने लगे! और आप हम हैं कि अपनी पद्धति का चाकू लेकर अभी भी ट्रैक पर खड़े-खड़े सोच रहें हैं कि कौन सा पैट बदलें! और ज्यादा हुआ तो हम-आप जल्दी से ऊपर पहुँचने या पहुँचाने की पद्धति पर ट्रैक पर खड़े-खड़े विचित्र सी गर्वानुभूति के साथ काम करने लगे।
            यहाँ एक बात और मैं कहना चाहता हूँ, हमारे साथ पढ़े चाहे जिस पूजा-पद्धति के रहे हों आज भी जब उन्हें फेसबुक पर देखता हूँ तो यह सोचकर बहुत तसल्ली होती है कि ये सभी दुनियाँ को सुन्दर बनाने पर ही काम कर रहे हैं। शायद स्कूलों में पढ़ी नैतिक-शिक्षा की मान्यताओं का ही यह असर हो। खैर....
          फिर भी चलिए कोई बात नहीं.. ये अपने जो शिवाय हैं न इनमें भी बहुत सारे गुण-दोष है जैसा कि अजय देवगन ने अपने एक इंटरव्यू में कहा है - "वह सारे देवताओं में अकेले ऐसे हैं, जिनमें सारी खामियां हैं। वही खामियां आपमें और मुझमें हैं।.... बाकी सारे भगवान परफेक्ट हैं। अकेले शिव जी का आज के इंसान के साथ कनेक्शन है। इंसान में जैसी और जितनी अच्छी या बुरी चीजें हैं, वो भगवान शिव में भी हैं। वे विनाश करते हैं तो करते हैं। फिर आगे-पीछे नहीं देखते। अफसोस करते हैं तो करते हैं। आज हममें यही सारी खूबियां और खामियां हैं। आप उन खूबियों को खामी कैसे बनाते हैं और खामियों को खूबियों में कैसे तब्दील करते हैं। यह हम सभी पर निर्भर करता है।" संयोग से इसे मैंने कल ही पढ़ा और कल ही मध्य-प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित गौरीशंकर का दर्शन प्राप्त करने का अवसर भी मिल गया। अब आप इसे मेरी पूजा-पद्धति से जोड़कर मत देखिएगा क्योंकि मैं एक आम इंसानो के भगवान का दर्शन करने गया था जो दुनियाँ के लिए विष भी पी लेता है और स्वर्ग में धुनी रमाने की बात नहीं करता बल्कि यहीं प्रकृति की गोंद में खेलना चाहता है एक दम आम-इंसान की तरह और सभी को साथ लेकर!

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