किसी भी व्यक्ति की एक राजनीतिक विचारधारा हो
सकती है लेकिन यह जरूरी नहीं कि इसके लिए वह किसी एक खास राजनीतिक दल से स्वयं को
सम्बद्ध करे। राजनीतिक विचारधारा के क्रियान्वयन के लिए जरूरी नहीं कि राजनीतिक
कार्यकर्ता ही बना जाए। राजनीतिक दल सत्तावादी विचारधारा के होते हैं और इनके
कार्यकर्ता भी सत्ता के आकांक्षी होते हैं। ऐसी स्थिति में सत्ता की आकांक्षा में
राजनीतिक उद्देश्य विश्रृंखलित हो सकते हैं।
वैसे भारतीय संविधान स्वयं में एक राजनीतिक
विचारधारा ही है। यदि इसे सफलतापूर्वक क्रियान्वित कर सकें तो शायद हम अपने
राजनीतिक विचारधारा के उद्देश्य को प्राप्त कर सकते हैं। इससे इतर कोई निजी
राजनीतिक विचारधारा लेकर चलना एक तरह से अलोकतांत्रिक हो सकता है। वैसे हम एक आम
वोटर हैं दलीय कार्यकर्ता नहीं और यदि हम एक जागरूक मतदाता हैं तो राजनीतिक दलों
के प्रति हमारी निष्ठाएँ भी बदलती रह सकती हैं क्योंकि अपने नागरिकों के लिए एक
राष्ट्र की जरूरतें भी देश-काल और तमाम परिस्थितियों के अनुसार बदलती रहती हैं।
तथा एक तटस्थ मतदाता ही विश्रृंखलित राजनीतिक उद्देश्यों को राष्ट्रहित में
संतुलित कर सकता है।
अतः कृपया मुझे मतदाता ही बने रहने दें। देश को एक राजनीतिक कार्यकर्ता से
अधिक एक जागरूक मतदाता की आवश्यकता है।
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