सामाजिक जीवन में जिस व्यक्ति से हम ईर्ष्या, द्वेष या प्रतिद्वंद्विता का भाव रखते हैं जब वह व्यक्ति किसी समस्या या परेशानी में पड़ता है तो हम खूब चटखारे के साथ मजे ले-लेकर उसकी चर्चा करते है..आज केंद्र सरकार के आलोचक विभिन्न विवादित मुद्दों पर यही कर रहे हैं| खैर..
अभी-अभी ताजा-ताजा मामला कश्मीर में NIT का है| यहाँ तिरंगा फहराने से लेकर ‘भारत माता की जय’ बोलने तक की तुलना शेष भारत की ऐसी ही घटनाओं से नहीं किया जा सकता| किसी देश में युद्धकाल में जो नीतियाँ उसके नागरिकों के लिए जायज है वही शांतिकाल में नाजायज मानी जा सकती है अर्थात शांतिकाल में अनायास तोप और गोले लेकर चलना या चलाना नाजायज है तो यही युद्धकाल में जायज हो जाता है...कश्मीर में तिरंगा फहरे या भारत माता की जय बोला जाए इस पर बखेड़ा नहीं होना चाहिए...सभी हिन्दुस्तानियों के लिए यह एक अहम् और जायज मसला है|
किसी देश के इतिहास में कुछ वर्षों का कोई मोल नहीं होता कि इसके आधार पर हम उस देश की दशा और दिशा तय करने लगें, लेकिन यह दुर्भाग्य है कि यहाँ के बुद्धिवादी या सेक्युलरवादी कुछ बातों-घटनाओं का विश्लेषण इसे देश का नियति-निर्धारक मानकर करते हैं...
हाँ एक बात और है, कश्मीर में किसी चुनी हुई सरकार का काम न करना भारत नामक राष्ट्र की एकता के लिए उचित नहीं माना जाएगा और अगर ऐसा होता है तो ‘कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है’ भारत का यह दावा भी कमजोर माना जा सकता है तथा इससे अलगाववादियों का ही मन्तव्य पूरा होता| इसलिए कश्मीर में सरकार का गठन एक व्यापक परिपेक्ष्य में राष्ट्रीय हित के महत्त्व का विषय है, और NIT जैसी घटनाओं का आधार लेकर इसकी आलोचना नहीं हो सकती|
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