मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

भाई मेरे मैं किसी 'इज्म' को लेकर नहीं चलता...

भाई आप चाहे जिस विचारधारा के माननेवाले हों आप से मित्रता में मुझे कोई हिचक नहीं होगी..लेकिन किसी कोरे 'इज्म' से मित्रता स्वीकार करने में मुझे बेशक हिचक होती है...अकसर मैंने देखा है; कोई भी विचारधारा जब 'वाद' का स्वरूप ग्रहण करती है तो सबसे पहले उस विचारधारा को ही महती क्षति पहुंचती है, जिसका 'वाद' बनता है..! इतिहास भी इस बात का गवाह है...
 वैसे तो मैंने देखा है 'मनुस्मृति' एक राज्यविहीन सामाजिक जीवन को आत्मनियंत्रित करनेवाला दस्तावेज है..लेकिन 'मनुवाद' ने अपने सामाजिकों को एक कमरे में बंदकर बाहर से सांकल चढ़ा दिया..और अन्दर ही अन्दर जातिवाद की ऐसी दीवार खड़ी हुई कि इस दीवार को गिराना आधुनिक राज्य व्यवस्था के भी वश के बाहर की बात हो गई है...हाँ इसमें किसी 'स्मृति' का दोष नहीं, दोष तो इसमें निहित विचार के 'वाद' बन जाने का है..और जब कोई विचार 'वाद' बन जाता है तो उसके सारे तर्क इस 'वाद' को स्थापित करने के लिए ही होते है...ऐसे में शायद ही किसी 'वाद' से समाज को कोई दिशा मिल पाए..?
एक बात है और है...किसी 'विचार' से तो लड़ा जा सकता है लेकिन 'वाद' से लड़ना असंभव सा होता है..क्योंकि 'विचार' के परिमार्जित होते जाने की संभावना भी इस 'विचार' में ही निहित होती है जबकि 'वाद' में 'आक्रामकता' का भाव होता है जिसकी प्रवृत्ति 'संहारक' की होती है अर्थात स्वयं को ही स्थापित करने की होती है...
अभी पिछले दिनों किसी विद्वान् मित्र की फेसबुक की एक पोस्ट में ही पढ़ा था कि यह हमारा 'हिन्दुइज्म' न जाने कैसा है किसी एक पर तो टिकता ही नहीं...हम किसे अपना 'धर्म' कहें..? वैसे इस सम्बन्ध में मेरा मानना है कि आज के 'मजहबों के आपसी टंटे' में 'पार्टीबंदी' जैसा मनोभाव बनने लगता है कि हम भी अपनी पार्टी के साथ खड़ा होने का सुख लूटें लेकिन अफसोस कि इस 'हिन्दुइज्म' में 'इज्म' को नाहक ही जोड़ दिया गया जबकि हम किसी एक पर तो टिक ही नहीं सकते..हमारे ऐसे संस्कार ही नहीं हैं..हम तो सभी संस्कारों, विचारों को सम्मान देते हुए अपने भी विचार रखते आए हैं...हाँ हम 'विचारों' के व्यापारी भी नहीं रहे हैं; हम अपनी मानते हैं और आप अपनी मानते रहो..मुझे कोई समस्या नहीं..कम से कम इस 'भूमि' से इतने संस्कार तो हमें मिले ही है..यही मेरा 'धर्म' है, और मैं किसी भी 'इज्म' या 'मजहब' को नहीं मानता.. ऐसे में हम किसी 'वाद' को अपना मित्र नहीं बना सकते....

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