हाँ, महोबा के गाँवों की ओर जब हम निहारते हैं तो पहाड़ों की तलहटी में कोई न कोई गाँव बसा हुआ दिखाई दे जाता है। या इसे हम इस प्रकार कह सकते हैं - महोबा जनपद के अधिकाँश गाँव पहाड़ों के ठीक नीचे ही बसे हैं! आखिर ऐसा क्यों है? इन गांवों का भ्रमण करते समय मैंने पाया है कि गांवों का पहाड़ों के नीचे बसने का एक खास कारण रहा है। ये गाँव ठीक पहाड़ों के नीचे की जिस भूमि पर बसे हुए होते हैं उस क्षेत्र की भूमि अन्य स्थानों की अपेक्षा नीची होती है जबकि जैसे-जैसे पहाड़ों से दूर जाते हैं भूमि ऊँची होती जाती है और गाँव से दूर पठार जैसा दृश्य उपस्थित करता है हालाँकि वह पठार जैसा नहीं होता लेकिन भू-जल की दृष्टि से कठिन होता है। जबकि पहाड़ के ठीक नीचे के जिस भू-भाग पर ये गाँव बसे होते हैं वहाँ का भू-सतह अासपास के स्थान से नीचा होने के कारण यहाँ के ग्रामीणों के लिए भू-जल प्राप्त करना आसान होता है तथा इसी कारण इस स्थान पर पर्याप्त मात्रा में हरियाली भी होती है।
यहाँ इस तथ्य का उल्लेख करना समीचीन होगा कि वर्षाकाल में इन पहाड़ों पर पड़ने वाली बारिश की बूँदें धीरे-धीरे पहाड़ के पत्थरों की दरारों और रन्ध्रों से होते हुए भू-जल को समृद्ध करता रहता है। यही कारण है, ठीक पहाड़ों के नीचे की भूमि नम और वहाँ भू-जल तथा हरियाली की उपलब्धता वर्षाकाल के बाद भी बनी रहती है। शायद इसी कारण से महोबा के लगभग सभी पहाड़ों के नीचे गाँव बसे हुए हैं।
हम देख सकते हैं कि महोबा जैसे जनपद के लिए इन पहाड़ों की बेहद उपयोगिता है। वास्तव में महोबा भारत के उस भू-भाग पर बसा है जहाँ मानसूनी हवाओं का प्रभाव काफी कम रहता है और यहाँ पर्याप्त मात्रा में बारिश भी नहीं होती। लेकिन यहाँ के पहाड़ वर्षा जल-संचयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। क्योंकि जो कुछ वर्षा होती है ये पहाड़ इसे अपने दरारों-रन्ध्रों के माध्यम से धीरे-धीरे संचित करते रहते हैं। और यहाँ इन पहाड़ों के आसपास ही जिन्दगी बसती है।
लेकिन दुख है ! पत्थर की खदानों से इन पहाड़ों के लिए अस्तित्व का संकट उत्पन्न हो चुका है। पहाड़ के पहाड़ गायब हो रहे हैं। इसी के साथ प्राकृतिक रूप से स्वतः जल-संचयन की प्रक्रिया भी प्रभावित हुई है। समय आ गया है, अब हमें ऐसे खदानों और पत्थरों का विकल्प तलाशना होगा।
--विनय कुमार तिवारी 
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