मेरे गन्तव्य का एक तिहाई दूरी तय कर चुकने के बाद बस अपने उस अड्डे से चलने ही वाली थी कि अचानक एक सत्ताईस-अट्ठाईस साल के नौजवान ने मुझे नमस्कार किया। मैं उसे पहचान नहीं पाया। फिर उसने अपना परिचय दिया -
"सर आप ने पहचाना नहीं? चुनाव के दौरान आपने मेरी पत्नी की ड्यूटी काटी थी.. "
मैं उसका मुँह देखने लगा था। उसने फिर कहा-
"मेरी पत्नी टीचर है उस दिन उसे चुनाव ड्यूटी पर जाना था लेकिन उसे मधुमक्खी ने काट लिया था.. मैंने आपसे उसकी ड्यूटी काटने के लिए अनुरोध किया था और आप ने उसकी ड्यूटी काट दी थी.."
हालाँकि, उस दौरान मैंने कुछ लोगों की समस्याग्रस्त परिस्थितियों के दृष्टिगत उन्हें चुनाव कार्य से विरत किया था लेकिन मधुमक्खी काटने के कारण किसी को इस ड्यूटी से मुक्त किया किया हो यह बात मुझे पूरी तरह से याद नहीं थी, फिर भी उस युवक का मान रखने के लिए मेरे मुँह से निकला-
"हाँ..हाँ... याद आया...मैंने ड्यूटी काटी थी..!"
इसके बाद वह युवक आकर मेरे बगल की खाली सीट पर बैठ गया। शायद उसे मेरी सहजता प्रभावित कर रही थी। बस इस छोटे से शहर के टूटे-फूटे सड़क पर हमें हिचकोले खिलाते हुए चल चुकी थी। हम दोनों के बीच कुछ क्षणों के मौन को तोड़ते हुए युवक ने हमसे कहा -
"सर, आपसे एक सलाह लेना चाहता हूँ..यदि आप..?"
मैंने बिना उसकी ओर देखे बोला-
"पूँछो..पूँछो..! कोई बात नहीं.." बाहर बस की खिड़की से झाँकते हुए ही मैंने कहा।
"सर, बात यह है कि मेरी पत्नी का आयकर विभाग में स्टेनोग्राफर के पद पर भी चयन हुआ था और आजकल वह वहीं काम भी कर रही है लेकिन इधर प्रशिक्षु शिक्षक की अवधि पूरी होने के बाद शिक्षक पद पर भी नियुक्ति होनी है.. उसे दोनों में से किस नौकरी में जाना चाहिए?"
युवक की इस बात से उसकी द्वन्द्वात्मक परिस्थिति का आभास कर मैंने उस बेचारे को सलाह देने के लिए उत्साहित हो उसकी ओर देखा। मुझे उसके चेहरे पर चिन्ता की लकीरें स्पष्ट दिखाई दे रही थी। फिर उसे चिन्तामुक्त करने की गरज से मैंने सलाह देने के अन्दाज में कहा-
"देखो, प्राइमरी टीचर की नौकरी उस स्टेनोग्राफर की नौकरी से बेहतर तो है ही; एक तो टीचर में वेतन भी अधिक होगा और दूसरे छुट्टियाँ भी मिलती रहेंगी, महिलाओं के लिए टीचर की नौकरी ही सबसे बढ़िया होती है।"
"यही तो मैं भी कह रहा था सर! इसमें वेतन तो अधिक है ही परिवार और आगे बच्चों के देखभाल के लिए भी समय मिल जाएगा।" युवक ने मेरी ओर देखते हुए कहा।
युवक के अनुसार उसकी पत्नी स्टेनोग्राफर की ही नौकरी करना चाहती है, बहुत समझाने पर शिक्षिका की नौकरी के लिए मन बना रही है। लेकिन उसके पिता अपनी बहू अर्थात उसकी पत्नी को आयकर विभाग में ही स्टेनोग्राफर की नौकरी कराने पर तुले हुए हैं। वह पत्नी की सहमति से अपने पिता को बताए बिना उसके टीचर पद पर नियुक्ति हेतु काउंसिलिंग के प्रमाण-पत्र जमा करने आया था जिससे किसी विद्यालय में उसके पत्नी की नियुक्ति हो सके। उस युवक की बातों से मुझे लगा कि उसकी पत्नी ने भविष्य में स्वयं के आयकर अधिकारी बन जाने की बात घरवालों को समझा रखा है। जब मैंने बताया कि स्टेनोग्राफर का प्रमोशन अधिकारी में नहीं हो सकता तो फिर उसने विभागीय परीक्षाओं का हवाला दिया। अब मैं समझ गया था कि स्वयं उसकी पत्नी प्राइमरी स्कूल की शिक्षिका नहीं बनना चाहती है।
इसके बाद मैंने पूँछा, "क्या तुम्हारी पत्नी किसी बड़े शहर मैं नौकरी कर रही है?" युवक ने हामी भरी। और आगे उसने बताया कि स्टेनोग्राफर की इस नौकरी में उसे सुबह निकलना होता है और कभी-कभी तो लौटने में देर शाम भी हो जाती है।
मैंने कुछ सोचते हुए उससे पूँछा, "इसका मतलब तुम्हारी पत्नी शहर में रहना चाहती है, टीचर वाली यह नौकरी तो गाँवों के लिए है!"
"जी सर, आपने सही कहा, वह शहर में ही रहना चाहती है, लेकिन सर! यह बताइए स्टेनोग्राफर को तो साहबों के साथ कभी-कभी दूसरे शहरों में भी दौरा करना पड़ सकता है तथा अपने साथ वे देर तक काम करने के लिए भी रोक सकते हैं?"
जब मैंने यह कहा "हाँ यह भी हो सकता है" तो थोड़ा चिन्तित होते हुए वह बोला, "ऐसे में हमारे और पत्नी के बीच टकराव हो सकता है..रिश्तों में खटास..!"
मैं समझ गया कि यह मुद्दा उसके लिए बहुत संवेदनशील है इसे कुरेदना उचित नहीं है। फिर मैं उससे बोला-
"हो सकता है तुम्हारी पत्नी स्कूल के छोटे बच्चों का नाक न पोंछना चाहती हो लेकिन तुम अपनी पत्नी को यह समझाओ कि स्टेनोग्राफर की नौकरी में सदैव शहर में ही रहना पड़ेगा और घर के लिए छुट्टियाँ भी टीचर की अपेक्षा कम ही मिल पाएगी तथा शहरों के प्रदूषण से आदमी बीमार भी हो जाता है.. जबकि टीचर की नौकरी गाँव में ही करनी है जहाँ शुद्ध आबोहवा भी मिलेगी, और अगर छोटे-छोटे बच्चों को मन से पढ़ाएगी तो बच्चों का भविष्य तो सुधरेगा ही इसी बहाने थोड़ी समाज सेवा भी हो जाएगी!"
"सर समझाया तो हूँ लेकिन मेरे पिताजी तो उससे स्टेनोग्राफर की ही नौकरी कराना चाहते हैं। मैं तो परेशान हूँ..." युवक की इस बात पर मैं कुछ नहीं बोला। फिर उसने मुझसे कहा-
"सर, आप कहीं मेरी नौकरी लगवा देते तो..पहले मैं कम्प्यूटर का काम करता था इन दिनों उसे छोड़ दिया हूँ क्योंकि आर्थिक परेशानियों के साथ अपने शहर से दूर रहना होता था.. कहीं संविदा पर ही हो सके तो मुझे कोई काम दिला दीजिए.."
इसके साथ ही वह अपने नौकरी के लिए मुझसे काफी अनुनय-विनय करने लगा था।
अन्त में मैंने उससे कहा, "तुम नौकरी के लिए इतना परेशान क्यों होते हो? तुम्हारी पत्नी को तो नौकरी मिल ही गई है, तुम कम से कम अपने घर व बच्चों को सँभालोगे तो तुम्हारी पत्नी अच्छे से नौकरी कर लेगी।"
मेरी इस बात को सुनकर वह बस की दूसरी खाली पड़ी सीट पर जाकर बैठ गया। इधर मैं सोच रहा था कि शायद यह इसलिए आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनना चाहता हो जिससे अपने परिवार में होने वाले निर्णय-प्रकृया का हिस्सा बन सके या हो सकता है पत्नी को लेकर उसका अहं भी जाग रहा हो...खैर उसके पारिवारिक भविष्य के प्रति मुझे कुछ चिन्ता सी हुई क्योंकि युवक मुझे भोला-भाला सा लगा।
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