यदि सोशल मीडिया पर हम अपने फॉलोअर और अपनी अभिव्यक्तियों पर दूसरों के लाइक, कमेन्ट गिनेंगे तो निश्चित रूप से हमारी अभिव्यक्तियाँ पूर्वाग्रही होंगी।
लेकिन हम सोशल मीडिया पर होते हुए अपने को किसी निश्चित विचारधारा, समुदाय या वर्ग का मानते हैं ; फिर तो यह प्रवृत्ति चल जाएगी क्योंकि तब हम किसी समुदाय या वर्ग या फिर किसी खास उद्देश्यों को लेकर काम कर रहे होते हैं, ऐसे में गिनना स्वाभाविक है और कम से कम गिनकर समझ लेंगे कि हमसे कितने लोग इत्तफाक रखते हैं तथा प्रसन्न हो लेंगे फिर दूसरों पर गिनती की अपनी धाक भी जमेगी।
अब यदि हम अपने को समाज का निष्पक्ष आलोचक मानते हैं तो सोशल मीडिया पर अपने लिए ऐसी गिनती करना समाज के लिए खतरनाक हो सकती है, क्योंकि तब हमारी अभिव्यक्तियाँ इसी गिनती से प्रभावित होती है। सोशल मीडिया पर कुछ खास विचारों या विश्लेषण पर किए गए लाइक, कमेंट की संख्या देखकर इसका अनुमान लगाया जा सकता है। इस संख्या में हमें स्पष्ट रूप से वर्ग भेद या ध्रुवीकरण जैसी स्थिति दिखाई देने लगती है जो सही तस्वीर प्रस्तुत नहीं करती। भारत जैसे बहुभाषी, बहुधार्मिक देश के लिए यह प्रवृत्ति बेहद खतरनाक है। यहाँ गिनती के प्रति नहीं बल्कि समान दृष्टि और निष्पक्ष विचारों के प्रति प्रतिबद्धता होनी चाहिए, अन्यथा हम गिनती करने वाले लोग किसी मुद्दे पर क्षणिक राजनीतिक उठापटक मचाकर चर्चित होने का तमगा तो हाँसिल कर लेंगे लेकिन राष्ट्र को स्थाई दिशा देने में असफल ही रहेंगे।
हमें कबीर वाली दृष्टि चाहिए; जो कबीर के इतने वर्षों बाद आज भी प्रासंगिक हैं, लेकिन हम हैं कि गिनती करने में ही व्यस्त हैं!
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