गठबंधन के बिना यह दुनियाँ नहीं चल सकती, ऐसा मैं नहीं दुनियादारी कहती है..यहाँ कहाँ नहीं है गठबंधन! कोई बताए..? यह गठबंधन बिलावजह नहीं होता..हर कोई, या तो अपने फायदे के लिए, या किसी को जलाने के लिए, और नहीं तो सर्वाइव करने के लिए ही गठबंधन हेतु अभिशप्त है। वैसे गठबंधन के ये तीनों कारण भारतभूमि जैसे तपोभूमि-वासियों के लिए मुफीद साबित हुआ है। फिर भी हमारे यहाँ 'फायदे' और 'जलाने' वाले कारण विशेष कारगर है। लेकिन कुछ बेवकूफात्मक-दृष्टि वाले गठबंधन को हेयात्मक मान 'चोर चोर मौसेरे भाई' कह कर इसकी इज्जत खराब करते हैं। लेकिन जो देश कभी सोने की चिड़िया रहा हो, वहाँ इस चिड़िया को अपने-अपने जेब में लाने के लिए गठबंधनात्मक-तत्व की व्याप्ति होगी ही..! अंग्रेजों से संस्कारित होते हुए ही हमने इसे फिलासिफिकल टाइप का बंध माना है, मने इसके पीछे वह 'फिलासफी' है जिससे विकास प्रक्रिया गतिमान होती है।
देखा जाए तो प्रत्येक तीन में से दो, तीन इसलिए कि बगैर तीसरे की उपस्थिति के दो का गठजोड़ हो ही नहीं सकता, उस तीसरे के विरुद्ध ही गठबंधन करते हैं। ये गठबंधित-तत्व अपनी गाँठ के सहारे अपना आत्मबल मजबूत बनाकर तीसरे के आत्मबल को कमजोर करते हैं। इधर यह तीसरा इस गठीले-बंध की खुन्नस में अगड़म-बगड़म बोलता हुआ इसे अपवित्र बताकर स्वयं पुण्यात्मा टाइप की फीलिंग में डूब जाता है। लेकिन इस तीसरे एकाकी-तत्व के ऐसे जले-भुने विचारों से गठबंधनधारियों पर कोई फर्क नहीं पड़ता, बल्कि गठबंधितों की इतराहट और ही बढ़ती जाती है। शायद ऐसी ही इतराहटों को देख हमारे एक सीधे-सादे मित्र जो सरकारी मुलाजिम भी हैं, को अकसर घर में इस तरह के उलाहनों का सामना करना पड़ता है, जैसे -
"सबसे ही तो दोस्ती किए फिरते हो..तो बनते रहो फिर बेवकूफ..!!"
उस दिन जब अपनी इसी पीड़ा को बताकर वे खामोश हुए तो मैंने उन्हें समझाया था-
"बात सही है..आप दोस्ती के चक्कर में एक गाँठ विहीन आदर्शात्मक बंधन में फँस जाते होंगे..और बिना गाँठ के आप गाँठ के पूरे भी नहीं हो पाते..इसीलिए बेचारे आपके घर वाले अभावजनित पीड़ा में यह उलाहना देते हैं...देखिये..! दोस्ती-फोस्ती तोड़कर गठबंधन का गाँठ बाँध लीजिए..कुछ बुद्धिमान टाइप का भी बनिए..!"
बस, यह सुनते ही वे हमसे नाराज हो मुँह फेरकर चल दिए, जैसा कि वो अकसर करते हैं, खैर वे हमारे मित्र भी हैं लेकिन उनसे हमारा गठबंधनात्मक रिश्ता नहीं है, इसलिए नहीं बुलाएंगे..
लेकिन अगर वे मेरी पूरी बात सुनते, तो समझाता कि आज के जमाने में गाँठ वाला रिश्ता ही ज्यादा मुफीद और बुद्धिमानी भरा होता है, इसकी डोरी कहीं और से भले ही टूट जाए लेकिन गाँठ वाली जगह से नहीं टूटता...इसीलिए गाजे-बाजे के साथ अपने यहाँ गठबंधन का रस्म मनाया जाता है । खैर, यह तो पति-पत्नी के बीच का मामला हो सकता है, लेकिन आज लगभग सभी टाइप के रिश्तों में गाँठ पड़ना रिश्ते का आपद्धर्म हो चुका है। यदि रहीमदास जी होते तो अब यही कहते -
"रहिमन धागा प्रेम का, अब तोड़ लियो चटकाय
गठबंधन ते फिर जुड़ै, गाँठ न फिर तुड़ पाय ।।
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