आज सुबह टहलने निकले, तो वही पाँच पैंतालीस पर..! मन नहीं कर रहा था..लेकिन मन का क्या ! वह ऐसे ही होता है। तो, मन के विरुद्ध मैं टहलने निकल लिया..वैसे भी हमें कभी मन के अनुकूल या कभी मन के विरुद्ध निर्णय लेना ही पड़ता है, यही नहीं जरूरत पड़े तो ऐसा निर्णय लेना भी चाहिए..बशर्ते यह हम पर निर्भर करता है कि हम ऐसा करके चाहते क्या हैं..? खैर
मैं स्वयं का स्वास्थ्य-शुभेक्षु बन सड़क पर पग-चालन करने लगा..सड़क पर चलते-चलते मैंने विकास भवन की एक तस्वीर ली..तस्वीर लेते हुए मन में आया कि तस्वीर खींचते हुए कोई देखेगा तो यही सोचेगा कि इस स्थान में ऐसी क्या खास बात है, जो तस्वीर खींची जा रही है..? अब किसी के लिए खास हो या न हो, मेरे लिए खास तो है ही..!! और किसी की सोच से बेपरवाह मैंने तस्वीर मोबाइल में कैद कर ली..।
चलते हुए सामने देखा..सड़क पर गौ-पशु समूह में खड़े थे, जैसे आदमियों के काम में व्यवधान डालने का ठान कर ही ये सब यहाँ खड़े हों..! मेरे सामने ही एकाध ट्रक और बस इन्हें बचाते हुए साइड से निकल लिए..। आगे गायों की देखा-देखी घोड़े भी सड़क पर अधिकार जमाए खड़े दिखाई पड़े..शायद इन घोड़ों को भी अपना अस्तित्व-बोध हो आया हो...कि..गाय ही नहीं हमारे भी कुछ जीवनाधिकार हैं..!! मैंने सोचा, इन घोड़ों की तरह अब अन्य सभी जानवरों को समझदारी से एक जानवर-संघ बनाकर सड़क पर आ जाना चाहिए..कि..आखिर गाय ही क्यों..? वैसे एक बात है, अगर जानवरों ने मिलकर अपना कोई संघ खड़ा किया, तो यह जानवर-संघ इंसानों पर अवश्य भारी पड़ेगा..! क्योंकि जातीय-धार्मिक आधार पर जानवरों की अपेक्षा इंसानों में प्रजातीय भिन्नता सर्वाधिक है..और..जो लगातार सुदृढ़ भी होती जा रही है...मेरा मानना है कि सभी जानवरों को समवेत रूप से इसका फायदा उठाना चाहिए, जो इन्हें मिल भी सकता है...!! खैर।
थोड़ा और आगे बढ़े, तो सड़क के आर-पार लगे लखनऊ, बहराइच, श्रावस्ती आदि शहरों की दूरी बताने वाले बोर्ड पर कई लंगूर अपने बच्चों समेत चहलकदमी करते दिखाई पड़े...इन्हें देखते हुए मुझे तुरंत ध्यान आ गया कि ये बंदर शायद इंसानों की फितरत को अच्छी तरह समझते हैं, इसीलिए सड़क पर नहीं उतर रहे..! थोड़ा और आगे चला, तो एक कुत्ता महाशय जानवर-महासंघ का विद्रोही टाइप बन आदमियों का सहयोग करते प्रतीत हुए..! ये महाशय अकेले ही सड़क के नियमों का पालन करते हुए चले जा रहे थे। इन्हें इस तरह जाते देख मैंने सोचा, "इनका काम तो कुत्तागीरी से ही चल जाता होगा..इन्हें जानवर महासंघ में सम्मिलित होने की क्या जरूरत है..शायद इसीलिए निश्चिंत हैं..!" खैर..
मैं अपने इन विचारों के साथ रात में हुई बारिश से उपजे ठंडकपने का फायदा उठाते पग-दर-पग चलता जा रहा था..अचानक देखा..! सामने कुछ दूर एक इंसान सड़क पर ही (पटरी नहीं) अपनी साइकिल छोड़ वहीं सड़क से खंती की ओर बढ़ गया, जहाँ एक छोटा सा तालाब भी था...मैंने ध्यान दिया तो पाया, अरे! यह तो यहाँ बैठा प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान को धता बता रहा है...किसी की निजता भंग करने वाला अवैधानिक कृत्य मानकर मैं सड़क पर गिरी-पड़ी साइकिल समेत उसके इस पर्सनल अभियान की तस्वीर नहीं ले पाया..! एक बारगी तो मैंने सोचा, "काश..! प्रधानमंत्री यहाँ लट्ठ लेकर खड़े होते, तो उनका स्वच्छता अभियान अवश्य सफल हो जाता..!!" लेकिन अगले ही पल मुझे इल्म हुआ, "प्रधानमंत्री ही नहीं प्रधानमंत्री के पुरखे भी खंती में बैठे उस व्यक्ति के स्वच्छता अभियान को नहीं रोक पायेंगे...बेचारे प्रधानमंत्री को हम नाहक ही दोष देते हैं..!!" खैर यह देश ही ऐसा है, यहाँ सब को जोर की लगी है..महान से महान प्रधानमंत्री भी इसे रोक नहीं सकता..!!!
अब मैं वापस लौट पड़ा था आवास के पास पहुँचने को ही था कि आर्त स्वर में बकरियों की मिमियाहट सुनाई पड़ी, मैं कुछ समझता तब तक सामने से आती एक मोटरसाइकिल पर निगाह पड़ गयी..मोटरसाइकिल पर पीछे बैठा व्यक्ति दो बकरियों को अपने गोंदी में बेरहमी के साथ दबाए बैठा था और वहीं मोटरसाइकिल के दोनों ओर टंगे बोरे में भी एक-एक बकरियां बँधी थी..मने उस मोटरसाइकिल पर कुल चार बकरियां और दो आदमी थे...!! इन्हें इस तरह जाते देख मैंने सोचा, "पता नहीं इन बकरियों की अम्मा इनका खैर मनाने के लिए बची भी होगी या नहीं..."
चलते_चलते
जिसको अपनी पड़ी होती है...उसे ऊँच-नीच कुछ भी नहीं सूझता..
#सुबहचर्या
(26.7.18)
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