शनिवार, 3 अगस्त 2019

मीडिया के जुलाहे

गजब  है भाई इस देश की मीडिया ! हाँ 'मीडिया' को लेकर कन्फ्यूजियाइए मत, आज के जमाने में इसका दो ही मतलब निकलता है; एक न्यूज चैनल और दूसरा सोशल मीडिया, बस। 

        अगर यह चैनल वाला मीडिया किसी बात पर जोश में है तो समझिए पूरा देश जोश में है और अगर शोक में है तो तय मानिए अक्खा भारत शोक में डूब रहा होगा। मने यदि यह कहे कि आज पूरा देश रो रहा है, तो रोने वाले को छोड़िए, मान लेना होगा कि रोने वाले को रूलाने वाला भी रो रहा है। वहीं, अगर मीडिया उत्सव मनाता दिखाई पड़े, तो फिर यही मान लेना उचित है कि पूरा देश उत्सव के मोड में है और रोने वाला भी उठकर भांगड़ा कर रहा होगा। और हां, अगर यह न्यूज चैनलीय मीडिया मान रहा है कि देश गु्स्से में है, तो बिना किसी किंतु-परंतु के स्वीकार कर लेना चाहिए कि निरहू, कतवारू, घुरहू तक खाने-पीने और रोजी-रोटी की चिंता छोड़ गुस्से में है। 

      हां, कभी-कभी यह मीडिया दुखात्मक लहजे में जब 'जनता मांगे न्याय' कहे, तो देश की जनता को इसमें थोड़ा सुधार करके इसे इस रूप में समझना होगा कि जानता तो जनता, बेचारे मीडिया वाले को भी न्याय चाहिए।

           बाकी सोशल मीडिया पीछे थोड़ी न रहेगा! यहां भी तो एक से बढ़कर एक महारथी भरे पड़े हैं, ये भी सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठम-लट्ठ मचाये पड़े रहते हैं। लेकिन नहीं नहीं ! सोशल मीडिया के इन जुलाहों के बीच जूतम-पैजार दर्शाता है कि एक सौ तीस करोड़ देशवासी इनके लिए सूत-कपास ही हैं ! अगर ये जुलाहे न हों, तो इनके अपने-अपने कौम या जाति और यहां तक कि इनके देश पर महासंकट छा जाए !! 

          कुल मिलाकर इस मीडिया पर ये ज्ञान के परम तत्त्वी लोग, ऐसा ज्ञान बूंकते हैं कि अगर इनकी बात मान ली जाए तो भारत नामक यह देश पता नहीं कौन सी प्रक्षेपक गति हासिल कर ले कि बड़े से बड़े महारथी तक देखते रह जाएं !! क्योंकि इस देश की समस्या का समाधान इन्हीं के विचारों से है। ये अपनी कौम और अपनी जाति को तारने की अद्भुत क्षमता रखते हैं। आखिर जब इनकी कौम और जाति तरेगी, तभी न देश तरेगा !! मेरे विचार से सोशल मीडिया के इन जुलाहों की बातों को इनके कौम वाले देशवासी यदि मानने लग जाएं तो निश्चित ही इस देश का सामाजिक-आर्थिक विकास 'पलायन-वेग' की  गति से उर्ध्वाधर की ओर उन्मुख होगा, जिसके लिए भारत सदियों से तरसता आया है और जिसे राजे-महराजे तो क्या, मुगलिया सल्तनत से लेकर अंग्रेज तक हांसिल नहीं कर पाए । वाकई, फिर तो दुनियाँ के देशों को हमारी बराबरी करने के लिए दुनियां के नक्शे में नहीं, ब्रह्मांड के नक्शे में भारत को खोजना पड़ेगा। 

            इसीलिए मेरी सलाह है कि अगर देश की सारी समस्याओं का समाधान चाहते हैं तो, प्रिंट मीडिया पर ज्यादा नहीं, केवल अपने मतलब भर का भरोसा करिए। बाकी इधर-उधर न जाइए, केवल और केवल इन न्यूज चैनलीय और सोशल मीडिया के खलीफाओं के जैसा अपने अंदर फीलिंग लाइए ! क्योंकि अगर देश के सभी लोग जोश, क्रोध, शोक और रोने आदि में मशगूल होंते रहेंगे, तो देश की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होकर हंड्रेड परसेंट निर्यातोन्मुखी हो जाएगी और अर्थव्यवस्था में 'आयात' जैसा शब्द एक भूला-बिसरा शब्द होगा। क्योंकि फिर तो भूख-प्यास से निफिरिक मीडिया-ओरिएंटेड देशवासियों को कुछ नहीं चाहिए। बाकी ज्ञान-वान अपने लोक-परलोक और कौम-फौम की चिंता के लिए सोशल मीडिया पर एकटक फोकस्ड रहिए। अब जियादा समझाने की जरूरत नहीं, जितना कहा उतना ही समझिए। कल्याणमस्तु।

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