मैं गुस्से से हार्ड-कापी को अपनी टेबल के किनारे सरकाते हुए बिफर पड़ा था। मेरे बिफरने की बात और कुछ नहीं केवल इस हार्ड कापी की सीडी का न मिलना था। हार्ड कापी मेरे सामने थी, लेकिन इसकी सीडी नहीं थी। असल में आजकल सब कुछ डिजिटल हो चुका है, अब हार्ड नहीं साफ्ट की जरूरत होती है, जो पल भर में सीडी से कम्प्यूटर और फिर इंटरनेट की दुनियाँ में पहुँच जाती है। लेकिन कुछ सीडी ऐसी भी होती है जिसकी हार्डकापी बन ही नहीं सकती। वह केवल वायरल की जा सकती है। ऐसी सीडी किसी खास परिस्थिति या क्षण में ही बनती है, जिसका रिक्रियेशन दुबारा संभव नहीं होता जैसे कि उस दिन मेरी बस-यात्रा की बातें थी।
उस दिन की बस-यात्रा में कंडक्टर और एक यात्री के बीच होती बहस का स्टिंग कर मोबाइल पर रिकार्ड कर सीडी न बना पाने का मलाल रह गया था। और अगर इस बहस जैसी छोटी घटना का स्टिंग कर पाता तो कैसी सीडी बनती जरा आप भी देखिए -
परिवहन विभाग का उड़नदस्ता बस की जाँच कर उतर चुका था और बस चल चुकी थी तथा कंडक्टर बस में यात्रियों की गिनती कर रहा होता है, तभी एक यात्री कंडक्टर से पूँछ बैठता है,
यात्री - "कंडक्टर साहब, बस चारबाग तो जाएगी न?"
कंडक्टर - "हाँ"
यात्री - बस आगे पॉलिटेक्निक चौराहे से ही तो होकर गोरखपुर जाएगी न ?
कंडक्टर - हाँ, पॉलिटेक्निक चौराहे से ही होकर जाएगी।
यात्री - पॉलिटेक्निक चौराहे पर हमें उतार दीजिएगा।
कंडक्टर - आपका टिकट चारबाग तक का है, आपको आगे नहीं ले जा सकते। चारबाग में ही उतर लीजियेगा। बस चेक हो जाने पर एक सौ दो रूपए का टिकट कट जाएगा। हम नहीं ले जा सकते।
यात्री - अरे, शहर के अन्दर की ही तो बात है.. कौन मिल जाएगा! कोई नहीं मिलेगा।
कंडक्टर - देखा नहीं, यहाँ पर गाड़ी चेक हो गई! हम नहीं ले जा पाएंगे।
इस पर यात्री हाथ में मोबाइल लेकर किसी को नंबर मिलाने का दिखावा करते हुए कंडक्टर से कहता है-
यात्री - सुनो कंडक्टर, तुम्हारा महाप्रबंधक हमें जानता है.. फलाने ही हैं न, लो अभी मैं बात कराए देता हूँ..
कंडक्टर उस यात्री को ध्यान से देख रहा है! इस बीच यात्री फिर कहता है -
"अच्छा तुम्हारे विभाग में वित्तीय अधिकारी फला हैं न, उनसे तुम्हारी बात करा देता हूँ... तुम्हारे विभाग में हमें सब जानते हैं।"
इधर कंडक्टर के ऊपर यात्री का बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था, वह भी यात्री की बातों की उपेक्षा करते हुए आगे बढ़ गया था। यह हुई यात्री और कंडक्टर के बीच के वार्तालाप का घटनाक्रम जो मेरे स्टिंग में सीडी में रिकार्ड हो जाती।
खैर, मान लीजिए उस यात्री को, परिवहन निगम विभाग की बसों का ब्रांड एम्बेसडर चुनना होता, तो उसके विरोधी इस सीडी को वायरल कर उसे परिवहन निगम को चूना लगाने वाला घोषित करा कर अपना उल्लू सीधा कर लेते।
अब आते हैं एक दूसरी सीडी पर, यह सीडी भी, अगर अपने स्टिंग कौशल से इसे बना पाता, जो मेरी बस-यात्रा से ही जुड़ी है, तो कुछ इस प्रकार की होती। इसे चालू करते हैं, आप इसके दृश्य पर अपना दृष्टिपात करिए -
दृश्य - एक व्यक्ति बस में अनायास भद्दी-भद्दी गालियाँ बके जा रहा था। शायद वह नशे में था। बस में महिलाएँ भी सवार थीं। उसकी गालियों के कारण बस में बैठे लोग बहुत असहज हो रहे थे, फिर भी कोई उसे रोक नहीं रहा था। अंत में जब मुझसे नहीं रहा गया तो, उसे डाट कर पुलिस बुलाने की धमकी दी और चुप रहने की बात कही। फिर वह चुप हुआ था। बाद में, बस से उतरते हुए मेरी ओर देखते हुए उसने कहा, "मैं भी पुलिस हूँ...समझे।"
उसकी बात पर मैंने यही सोचा, "कभी, जब इसे पुलिस-पदक मिलना होता, तो इसे मजा चखाने के लिए मैं आज की बनाई इसकी सीडी लीक कर देता" अपने किए पर शर्मिंदा होता ही और पदक से भी हाथ धोता। आखिर, हम शर्मिंदा तभी होते हैं जब दूसरे हमें आईना दिखाते हैं।
खैर, इन दोनों घटनाओं के पात्रों के प्रति मुझे कोई ऐसा अंदेशा नहीं था कि ये भविष्य के नायक बन सकते हैं अन्यथा इनकी सीडी बनाता और इस सीडी का व्यापार भी करता।
एक बात और, उस दिन बस में घटित इन बातों के और भी प्रत्यक्षदर्शी थे, लेकिन वे सभी खामोश और प्रतिक्रियाविहीन थे। फिर भी, मैं जानता हूँ, यदि इन घटनाओं की सीडी रिलीज होती, तो यही तत्समय के खामोश और घटना के प्रति उदासीन लोग देश भर के नियम-कानून के ठेकेदार बने हुए इन व्यक्तियों को जरूर कोसते और इनके विरुद्ध माहौल बनाते। हम तो कहेंगे अब सरकार को सबकी सीडी के बारे में जानकारी लेनी चाहिए, मल्लब चुप रहने और शेखी बघारने वाले की भी।
इस देश में सभ्यता के नए चलन में किसी का काम नहीं, उसकी सीडी देखी जाती है! इसीलिए किसी व्यक्ति के काम से जले-भुने लोग उसकी सीडी ही ढूँढ़ते हैं और उस बेचारे की सीडी मिली नहीं कि एक मच्छर सारे तालाब को गंदा कर देता है टाइप से, एक सीडी उसके सब किए कराए पर पानी फेर देती है। हमारे देश में चीजों पर बहुत लोचा और नाइंसाफी है। किसी जज ने कभी सही कहा था, इस देश की जनता मूर्ख है। वाकई! जनता की मूर्खता के कारण ही अपने देश में आज भी तमाम टाइप की असमानता विद्यमान है, और कोढ़ में खाज की भाँति यह सीडी-पुराण भी इसमें खुजली की तरह है। लोग देश विकास की जगह सीडी-विकास में लगे पड़े हैं। यहाँ अच्छे-भले नई उर्जा वाले ऊर्जाहीन, और बिना कुछ किए धरे उर्जाहीन जैसे लोग उर्जावान हो रहे हैं।
अब जब सीडी की इतनी ही चर्चा और महत्व है, तो सरकार को भी चाहिए कि सबसे, बिना भेदभाव के, लोकतांत्रिक समानता के उद्देश्य से, किसी भी चयन प्रक्रिया, मतलब नेता से लेकर संत्री तक के प्रतिभागी से, उसकी सीडी के बारे में अवश्य पूँछा जाए। और, योग्यता के मानक निर्धारण की प्रश्नावली में एक नया प्रश्न, संलग्न नोट के साथ, इस तरह का भी होना चाहिए -
"प्रश्न - आपकी कोई ऐसी सीडी तो नहीं है जिसकी हार्डकापी न बनाई जा सके और, जो केवल वायरल हो सके? उत्तर केवल "हाँ" या "ना" में दें।
नोट - उत्तर देने में प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। भविष्य में सीडी मिलने की दशा में निम्न परिणाम होंगे - "नहीं" उत्तर देने वाला प्रतिभागी अयोग्य माना जाएगा। जबकि "है" उत्तर देने वाला प्रतिभागी योग्य बना रहेगा। अयोग्य माने जाने पर उम्मीदवारी या चयन स्वतः निरस्त समझा जाएगा।"
अब देखिएगा! नेता से लेकर संत्री तक के उम्मीदवार अपनी-अपनी सीडी होना स्वीकार कर लेंगे। सभी लोग इस प्रश्न का उत्तर "है" ही में देंगे! मतलब "हमाम में सब नंगे" वाली दशा प्रमाणित होगी। क्योंकि, क्या पता जाने-अनजाने, यदि कहीं से किसी की सीडी निकल आई तो उम्मीदवारी या सेलेक्शन से भी हाथ धोना पड़ सकता है !! हाँ इस देश के लोगों का यही हाल है।
ऐसी स्थिति का एक फायदा यह होगा कि जनता को सीडी-पुराण की झंझट से मुक्ति मिलेगी।
तो, यही है सीडी-पुराण की कथा! जिस सीडी से हार्डकापी न बन सके वही सीडी-पुराण है और उसी की कथा वायरल भी होती है, यह वायरल सीडी इंटरनेट पर आसानी से मिल जाती है। अब समय आ गया है कि अपने देश में लोकतंत्र को बचाए रखने के लिए सभी नेता से लेकर संत्री तक की सीडी बना हुआ मान लिया जाए। अन्यथा बड़ा अन्याय होगा।
अथ् श्री सीडी-पुराण कथा।
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