रविवार, 16 अप्रैल 2017

हम काम तो कर रहे हैं!

बुंदेलखंड में फँसे पड़े हैं और इस खंड में गर्मियों के दिनों में विकास विभाग की नौकरी कुछ ज्यादई दौड़-धूप वाली हो जाती है, मतलब यहाँ काम करते हुए दिखना बहुत जरूरी होता है। इधर यहाँ के लोग हैं कि, मतलब जिनके लिए काम करना है, उनकी जैसी यह चिर-मान्यता चली आ रही है कि सरकारें ही सब काम करती हैं, क्योंकि भाई, हम तो फिजिकल समस्या से पीड़ित हैं, हम तो कुछ कर ही नहीं सकते! यहाँ की राजनीति भी इन सब बातों का खूब फायदा उठाती है। यहाँ विकास का पहिया भी उसी तरह से चलने लगता है, कि देखो भाई, हम काम तो कर रहे हैं, अब तुम फायदा न उठा पाओ तो इसमें हमारी क्या गलती?

           जैसे सरकार ने यहाँ छोटी, बड़ी, मझोली जैसे कई स्तरों वाली कृषि मंडियाँ खूब बनवाई, अब अगर यहाँ के लोग इसका फायदा न उठा पाएँ तो बेचारी सरकार का क्या दोष..! एक बात है, मैंने इतनी कृषि उत्पादन मंडियाँ उन क्षेत्रों में भी नहीं देखी हैं जिन क्षेत्रों में बम्पर कृषि उत्पादन होता है। मैंने इन मंडियों को देखकर यही अनुमान लगाया हुआ है कि शायद कोई सरकार इन खाली पड़ी और विरानी मंडियों को देखकर पसीजते हुए अब सिंचाई संसाधनों का विकास करेगी, तब जाकर कृषि उत्पादन बढ़ेगा और मंडियों में उपज आएगी। यह तो निश्चित है कि इन मंडियों में उपज आने में अभी लंबा सफर तय करना होगा। लेकिन चिंता है, तब तक कहीं इन मंडियों की दशा इस क्षेत्र में भ्रमण के दौरान देखे गए अच्छे-भले उस हैंडपंप जैसी न हो जाए जिसे एक ग्रामीण ने चबूतरा बना कर ढक दिया था। नीचे हैंडपंप का फोटू दिए दे रहे हैं देख लीजिएगा।
     
            मैं तो कहता हूँ यहाँ बेचारी सरकारें विकास तो करना चाहती हैं लेकिन यहाँ के लोगों की मानसिकता ही खराब होती है। अब पता नहीं क्यों खराब हुई है यह मानसिकता? यह भी एक शोध का विषय है, या मंडियों जैसे विकास कार्यक्रमों का तो इसमें हाथ नहीं? खैर.. हमसे क्या हम तो काम करते हुए दिखना चाहते हैं, भाई यह हमारी रोजी-रोटी का प्रश्न है, नकारा बनने से बेहतर है कुछ काम करके दिखाओ, कृषि मंडी बनाओ, बावजूद इसके कि अभी तक खेतों तक पानी ही नहीं पहुँचा पाए हैं।
    
             हाँ तो मित्रों, इसी देखने दिखाने के चक्कर में कभी-कभी प्रापर नींद नहीं ले पाते तो सुबह का टहलना कैंसिल कर देते हैं। लेकिन कल जब सुबह पाँच बजे टहलने के लिए घर से निकलने लगे तो पहली ही नजर पतझड़ से पत्ती विहीन हुए पीपल के पेड़ की टहनियों के बीच से झाँकते खूबसूरत चाँद पर पड़ी, ऐसा प्रतीत हुआ जैसे किसी कैनवास पर कोई खूबसूरत चित्र दिख गया है, मतलब डंठलनुमा डालियों के बीच से यदि चाँद जैसी रोशनी छिटकते हुए दिखाई दे तो देखने वाले को ऐसा दृश्य, खूबसूरत दिखाई देने लगता है। खैर..अपनी पत्तियाँ खो चुके उस पेड़ को यह चमकाता चाँद कितनी खुशी दे पा रहा होगा यह बेचारा वह पीपल का पेड़ ही जाने..!
             
            अब आगे बढ़े तो एक गौ-माता अपने बछड़े के साथ सड़क के किनारे पालिथीन में कुछ तलाश रही थी, इधर मैं भी आज फोटू लेने के मूड में ही निकला था झट से फोटू खींच लिया। इसके आगे बढ़ा तो एक हैंडपंप से पानी भर कर सिर पर एक के ऊपर एक घड़ा रखे जाते एक महिला दिखी, पीतल टाइप का घड़ा रोशनी में खूबसूरत ढंग से चमक रहा था, सोचा इस दृश्य को भी अपने मोबाइल कैमरे में कैद कर लूँ, जेब से मोबाइल निकाल फोटू लेने को ही हुआ था कि अचानक ध्यान आ गया कि ऐसी गलती नहीं करनी है, और अगर कहीं इस फोटू लेने के चक्कर में रोमियो एंड कम्पनी का सदस्य समझ लिया गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे, फिर बिना फोटू लिए धीरे से मोबाइल को जेब में डाल लिया था।
        
            अंत में, चीजें ऐसे ही चलती रहती हैंं..या हम बदल नहीं पाए..किसी खूबसूरती में खो गए....!!!

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