उन दिनों बैलेट पेपर से वोटिंग का जमाना था, हम भी बूथ-बूथ मजिस्ट्रेट बने फिर रहे थे तब नौकरी के भी शुरुआती दिन थे, तो ठसक भी था। ऐसे ही वोटिंग के दिन मजिस्ट्रेटी करते-करते जब एक बूथ पर पहुँचे तो दिन के लगभग इग्यारह बज रहे होंगे पीठासीन अधिकारी जी ने बीस-पच्चीस पर्सेंट वोटिंग बताया था और मतदाताओं की कोई लाइन-वाइन भी वहाँ नहीं लगी थी, मतलब एकदम सुचारू ढंग से परिपूर्ण शान्तिपूर्ण दृश्य था...मैं इत्मीनान के साथ दूसरे मतदान केंद्र की ओर निकल पड़ा था। करीब एक घंटे बाद मैंने फिर इसी मतदान केंद्र की ओर रुख किया था। उस बूथ की ओर जाते हुए मुझे रास्ते में उसी बूथ की ओर से लौटते हुए एक नेता जी अपने लाव-लश्कर के साथ दिखाई पड़े थे। खैर, मैं बूथ पर पहुँचा बूथ पर शांतिपूर्ण सन्नाटा था, पीठासीन अधिकारी ने अबकी बार मतप्रतिशत सत्तर प्रतिशत बताया! मैं इस मतप्रतिशत से उचक कर पीठासीन से बोल बैठा, “एक घंटे में ही मतप्रतिशत पच्चीस से सत्तर कैसे पहुँच गया, जबकि यहाँ मतदाताओं की लाइन भी दिखाई नहीं दे रही?” इस पर पीठासीन ने बताया कि मतदाता लोग मत डालकर चले गए हैं, हमें कोई समस्या नहीं है। खैर..
पीठासीन की बातों से मैं विचलित सा हो गया था, निश्चित रूप से अचानक बूथ से लौटते नेता जी ही बढ़े मतप्रतिशत का कारण थे। मैं समझ नहीं पा रहा था, शायद, उनके कुर्ते की जेब में ही मतदाता भरे रहे हों, तब वो नेता जी मुझे यूटोपिया के गुलिवर जैसे विराट पुरुष नजर आने लगे थे, और वोटर सहित हम स्वयं, नेता जी के जेब में समाने वाले बौने नजर आए ! खैर, तब मैं उदास सा एक पेड़ की छाया में आ खड़ा हुआ अपने अकर्त्तव्यनिर्वहन पर मन मसोसकर सोचने लगा था। उस समय मेरा ड्राइवर मेरे पास आया और बोला, “साहब, जब पीठासीन सब ठीक बता रहा है तो आपको क्या पड़ी है, आइए दूसरी ओर चलें, यहाँ खड़े रहना ठीक नहीं” और फिर मैं भी अपनी मजिस्ट्रेटी अपने जेब में रख वहाँ से खिसकना ही उचित समझा था।
खैर, ये हुई बैलेट पेपर की बात अब आते हैं ईवीएम पर। अभी बीते चुनाव में मैं स्वयं जिले भर के मतदान कार्मिकों के प्रशिक्षण का प्रभारी था, मतलब जनपद के सभी मतदान कार्मिकों को ईवीएम का प्रशिक्षण दिलवाना था, जनपद भर के इंजीनियरों को मास्टर ट्रेनर बनवाया और इनसे प्रशिक्षण कार्य कराया गया। सबको माक पोल द्वारा बताया गया कि देखो, “जिसको वोट दिया जा रहा है उसी को वोट जा रहा है।” चुनाव सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ, और इधर अपने प्रशिक्षण कार्यक्रम पर मुझे भी गर्व हुआ।
लेकिन कहते हैं न, काम की सफलता से उपजी खुशी किसी से देखी नहीं जाती और ईवीएम पर ही वोट चोरी करने का आरोप मढ़ दिया गया। बेचारी एक मशीन, जिसे किसी राजनीति से कोई मतलब नहीं, कोई जीते कोई हारे, उस पर कोई फर्क नहीं, उसी बेचारी मशीन पर आरोप! किसी ने मशीन को हैक कर लिया, मशीन में छेड़छाड़ कर दिया..!! या यह ईवीएम न हुई नेता जी की जेब हो गई, जिसमें मनचाहा वोट भर लो और अपने ठप्पे लगा-लगा बैलेट-बाक्स में डाल दो जैसा, उन नेताजी ने बैलेट पेपर वाले चुनाव में किया था।
इस आरोप के बाद तो मेरे ईवीएम प्रशिक्षण पर पानी फिर गया..अब तो प्रशिक्षण का श्रेय लेने में भी धुकधुकी उठ रही है, कि कहीं छेड़खानी का आरोप हमीं पर न मढ़ दिया जाए। इस ईवीएम ने तो हमें भी धोखा दे दिया..! आखिर, मेरे सामने ईवीएम का व्यवहार सौ टके ईमानदारी वाला था, जिसका वोट उसी को मिलता हुआ इसने दिखाया था…तो फिर, यह गड़बड़ कहाँ हुई..! खैर.. ईवीएम बेईमान कैसे हो गई इस खोज में मैं निकल भी लिया..
संयोग से मुझे गली के किसी नुक्कड़ पर, नेता जी अपने उसी पुराने टाइप वाले दबंगई के अंदाज में वोटर से ईवीएम में डाले गए उसके वोट का पता पूँछते दिखाई पड़ गए, मरियल सा वोटर उनके सामने खड़ा रिरिया रहा था, नेता जी की मैंने भी आवाज सुनी, “क्यों बे, तू अगर हमें वोट दिया होता तो हम हारते कैसे..?” अपने मूँछों को ताव देते नेता जी की ओर देखते हुए वोटर रिरिया रहा था, “अरे नहीं नेता जी, ऊ मशीनवा में वोटवा हम आपही को दिये रहे, जरूर ऊमा कुछ गड़बड़ रहा होगा..ऊ तोहार वोट ऊनका मिलि गवा..” बस फिर क्या था नेता जी को भी जैसे अपने हारने के कारण का क्लू मिल गया, “अब ई ईवीएम ही तो है, यह अपने ऊपर लगे आरोप पर सफाई देने के लिए थोड़ी न प्रेसकांन्फ्रेंस करेगा” और, नेता जी के चेहरे पर चुनावी हार के बाद पहली बार खुशी छलक उठी थी,चेहरे का पसीना पोंछते हुए झट से हाईकमान को अपना मोबाइल लगा दिया, “अरे ऊ का है कि ईवीएम में भोट आप ही को पड़ा था, लेकिन ईवीएम ने ही अन्दरखाने गड़बड़ कर आपका सारा भोट विरोधी पक्ष मे ट्रांसफर कर दिया!” वाह भाई नेता जी! वोटर को तो आपने कहीं का न छोड़ा, मतलब चुनाव हारे तो ईवीएम ने हराया और चुनाव जीते तो ईवीएम ने जिताया..! गोया, वोटर गया तेल लेने।
वाकई, इस ईवीएम ने अब पाशा उलट दिया है यह मशीन न होकर महानायक हो गया है, गुलिवर की तरह विराट मानव! इस ईवीएम को जाति-धर्म का गुणा-गणित नहीं मालुम, इसने तो निश्चित ही अपना काम ईमानदारी से किया होगा अन्यथा बैलेट-पेपर वाले जमाने के विराट मानव आज असहाय टाइप के बौने न बन गए होते !! खैर, भैलेट-पेपर से भोटिंग होता तो कम से कम इनके लिए एक घंटे में दो-चार सौ वोट बैलेट-बक्स में ठूँसने में आसानी रहती, लेकिन ससुरा ईवीएम, ऐसा काम झटापट नहीं निपटाता, दूसरे सीटी भी बजाता रहता है…
अब यह बात मेरे समझ में आ गई, ईवीएम ने वोटर को उसका वोट सौंप दिया है, किसी और को, उसके वोट पर कब्जा जमाने नहीं दे रहा! बौखलाए लोग इस ईवीएम को ही रास्ते से हटाने के प्लान में लग गए हैं, अन्यथा वोटर की बजाय नेता जी इस बेचारी मशीन के विरोध में न होते। मैं तो ईवीएम के विरोधी नेताओं से बस इतना ही कहुँगा, “नेता जी..ई.अब आप भी ऐसा साफ्टवेयर डेवलप करें कि यह ईवीएम, चोरी हुआ आपका वोट, आपको वापस लौटा दे।”
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें