आज अभी तक की #दिनचर्या यात्रा भरी सामान्य रही। लेकिन और दिनों की अपेक्षा स्टेडियम में टहलने वालों की संख्या में वृद्धि दिखी, जैसे कुछ नए चेहरे भी अब इस टहलबाजी में सम्मिलित हो गए हों। हाँ, युवाओं की संख्या कुछ ज्यादै दिख रही थी। वैसे, आज टहलबाजों में मुझे उत्साह भी दिखाई दिया। जब मैंने स्टेडियम का एक चक्कर लगाया तो कार वाला ग्रुप भी आ गया था। उन्हें पार करते हुए मैंने उनकी प्रशंसात्मक अन्दाज में भारतीय विदेशनीति पर आपस में हो रही वार्ता सुनी..जैसे अब किसी नए ढर्रे पर यह नीति चल निकली हो।
दूसरा चक्कर पूरा करते-करते मैंने देखा, एक अधेड़ टाइप के बुजुर्ग आधा बैठते और फिर खड़े हो जाते.. उनको देख दूसरी ओर निगाह फेरी...तो एक सज्जन पुशअप करते दिखाई दिए.. कुल मिलाकर स्टेडियम में चहल-पहल की अनुभूति हुई.. हालाँकि, अभी तक भानु-भाष्कर का लाव-लश्कर नजर नहीं आया था, लेकिन आने का संन्देशा धीरे-धीरे हो रहे उजाले से मिल चुका था। मैं, तीसरा चक्कर पूरा कर, अरुणोदय से पहले ही यहाँ से खिसक लेना चाहता था, सो तीसरा चक्कर पूरा होते ही मैदान से बाहर आ गया।
स्टेडियम के गेट तक पहुँचा तो देखा, खच्चरों का झुण्ड स्टेडियम के गेट की ओर बढ़ा आ रहा था। शायद ये भी टहलबाजी के उत्साह में आ गए हों? तभी मैंने देखा! झुंड के पीछे से एक खच्चर महाशय अचानक जैसे झुंड से असहमत होते हुए अकेले ही वापस मुड़ लिए...मैं थोड़ा अचंभित हुआ! पलट कर गेट की तरफ देखा, कोई हाथ में डंडा लिए झुंड को स्टेडियम के गेट से लौटा रहा था।
आगे बढ़ा तो कोई राम-राम कह रहा था.. वह वृद्ध मुझसे अपरिचित था..किसी को भी आते-जाते देख "राम-राम" करने की उसकी आदत सी है...उत्तर में मैंने भी राम-राम कहा..
आवास पर पहुँचते ही लान पर के खरपतवार को हटाने लगा। इस बीच आज रामकिशोर ने चाय बनाई। चाय पीने के बाद अखबार तो मैंने पढ़ा था लेकिन आज एक ही बात लिख पा रहे हैं - कल के शिक्षक दिवस पर फेसबुक वाल रंगे हुए दिखाई दे रहे थे, दैनिक जागरण की एक खबर के अनुसार एक शिक्षक महोदय ने अति उत्साह में एक छात्र की इतनी पिटाई कर दी कि छात्र के परिजनों को उन गुरूजी के विरुद्ध थाने में प्राथमिकी दर्ज करानी पड़ी। हाँ, आज इस अखबार को पढ़ने से एक अन्य तथ्य का ग्यान प्राप्त हुआ, वह यह कि, यदि कोई पिता अपने पुत्र को आत्मनिर्भर बनाना चाहता है तो उसकी तस्वीर के साथ वाली अपनी तस्वीर को निकाल पुत्र के तस्वीर को अकेला छोड़ देना चाहिए।
वैसे आज महोबा से लखनऊ तक की ड्राइविंग की। अगला दिनचर्या हमारे वश में नहीं है।
अन्त में, आज का "बतकचरा" समाप्त हुआ।
चलते-चलते -
जो अपने ईश्वर की आलोचना नहीं सुन सकता वह अपने ईश्वर से बहुत दूर होता है।
--Vinay
#दिनचर्या 7/6.9.8
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