कहते हैं सबेरे चार-पाँच बजे के बीच उठ जाने के लिए रात को थोड़ा जल्दी सो जाना चाहिए है, सो कल रात साढ़े दस के आसपास सो भी गए थे। आज सुबह कल वाले टाईम पर ही स्टेडियम की ओर कदम बढ़ा दिए थे। आवासीय कैम्पस से निकलते हुए सड़क पर निगाह पड़ी। देखा, एक व्यक्ति लट्ठ लिए गायों को दूसरी ओर हाँक रहा था। असल में गाएँ रात भर या कहें शाम होते ही सड़क पर ही बैठ जाती हैं। सड़कों पर गौ-पशु इस तरह खड़े या बैठे होते हैं कि आप लाख हार्न बताएं ये हटने का नाम नहीं लेते। जैसे, मनुष्यों के साथ रहते हुए ये जानवर भी मनुष्यों की आधुनिक सभ्यता से परिचित होते गए हों, नहीं तो पहले सड़कों पर किसी वाहन को देखते ही ये पालतू जानवर भी भाग खड़े होते थे। अब वाहन चालक या खलासी गायों को अपने हाथों ठेलकर गाड़ी के सामने से हटाना पड़ता है।
अब मुख्य सड़क छोड़ अपने गंतव्य-पथ पर आ गया था। एक घर के सामने से गुजरते हुए वहाँ के एक झुरमुटदार पेड़ से चिड़ियों के चहचहाने की तेज आवाज कानों में पड़ी, जैसे सुबह का कोई संगीत बज रहा हो! अचानक, इस पेड़ को देखते हुए खयाल आया कि जिस दिन, भगवान न करे, यह पेड़ नहीं होगा तो इन चिड़ियों की चहचहाहटों का क्या होगा? यही सोचते हुए मैं आगे बढ़ गया। तभी पीछे से कार की हेडलाईट का आभास हुआ। मेरे आगे निकलती हुई यह कार स्टेडियम की ही ओर जा रही थी।
स्टेडियम का चक्कर लगाते हुए मेरा ध्यान अासमान की ओर उठ गया। पूरब दिशा में क्षितिज से थोड़ा ऊपर काले बादलों के टुकड़े तैर रहे थे और ठीक क्षितिज के ऊपर वाले बादल हलके सुनहले रंगों में रंग रहे थे और नीचे विजय सागर की जलराशि पिघली चाँदी जैसी चमक रही थी। वाकई! यह दृश्य किसी फ्रेम में मढ़ा हुआ लगा। मुझे लगा जो ऐसी सुबह मिस करने वाले एक गहरी अनुभूति से भी वंचित हो रहे होते हैं। "अब सड़क को और चौड़ा करना चाहिए, काफी ज्यादा वाहन चलने लगे हैं" हाँ, खरामा-खरामा समूह में टहल रहे व्यक्तियों के बीच की इस बात को सुनते हुए मैं उनसे आगे बढ़ गया। इसी समय मेरी निगाह मेरे से आगे-आगे चल रहे एक बच्चे पर पड़ी। सोचा! इतने छोटे बच्चे को इस तरह सुबह-सुबह टहलने की क्या जरूरत है? फिर उसके थुलथुल शरीर को देखकर लगा शायद इसी कारण उसके घर वालों ने उसे टहलने के लिए कहा हो। उस बच्चे से आगे बढ़ते हुए मैंने एक उड़ती हुई सी निगाह उस बच्चे पर डाली। फिर मैं चौंक पड़ा यह कोई बच्चा नहीं था। यह तो पूर्ण वयस्क व्यक्ति था। फिर मैंने एक बार उसे और ध्यान से देखा! हाँ, वह लम्बाई में एक दिव्यांग व्यक्ति ही था, जिसकी लम्बाई चार फीट से भी कम रही होगी।
वास्तव में किसी का शरीर छोटा हो सकता है लेकिन इससे मन छोटा नहीं हो जाता। लम्बाई में दिव्यांग वह व्यक्ति जिन्दादिल और जिजीविषा से भरा हुआ प्रतीत हुआ।
स्टेडियम से लौटते हुए मुझे कुछ लोग दिखे, जो मेरी ही तरह अपने निर्धारित समय पर निकले होंगे, क्योंकि वे आते हुए वहीं मिले जहाँ कल मिले थे।
फिर सुबह की चाय हुई और अखबार भी पढ़ी। चूँकि, हाकर दैनिक जागरण को सात बजे के आसपास फेंक जाता है तो पहले इसी को पढ़ा। कुछ सुर्खियों को देखते-पढ़ते "उर्जा" वाले कालम में "अदृश्य शक्ति" पर भी एक निगाह डाल ली। जिसमें "महानतम वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन भी इस तथ्य को मानते थे कि ऐसा लगता है कि कोई अदृश्य शक्ति इस अद्भुत ब्रह्मांड को संचालित कर रही है।" सुबह-सुबह विजय सागर के क्षितिज पर प्रकृतिक दृश्य में खोया हुआ सा मैं भी इसी बात को सोच रहा था। लेकिन इस "अदृश्य शक्ति" को किसी धर्म के ईश्वर से तुलना नहीं की जा सकती, क्योंकि धर्म वालों ने अपने-अपने ईश्वर को बहुत ही सीमित कर चुके हैं। इसके बाद "खतरनाक है रात में जल्द सोने की आदत" ये ल्लो कल रात में मेरे जल्दी सोने का यही तो कारण था कि सुबह जल्दी उठना है! ये रिसर्च वाले भी पता नहीं कब कौन सा रिसर्च कर डालें.. वैसे, जो आप का मन बेहतर कहे वही आप करिए।
"हिन्दुस्तान" भी पढ़ा, पर अन्य कोई बात उल्लेख करने लायक नहीं मिली...फिर आप भी तो पढ़े होंगे। अब ज्यादा ज्ञान बघारने की भी जरूरत नहीं...
बाकी दिन में कोई ऐसी बात सामने नहीं आई कि उसकी भी चर्चा करें..... शुभरात्रि..!
--Vinay
#दिनचर्या 3/2.9.16
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