गुरुवार, 8 सितंबर 2016

बल्ले-बल्ले

          आज सुबह चार बजकर पचपन मिनट पर नींद  खुली..तय कर लिया कि अब आलस नहीं करेंगे और झटपट बिस्तर छोड़ उठ गए तथा पाँच जीरो आठ पर टहलने के लिए स्टेडियम की ओर निकल भी लिए। अँधेरा था, ठीक लग रहा था। इक्का-दुक्का लोग ही स्टेडियम की ओर जाते दिखाई दिए और एक-दो लोग स्टेडियम से लौटते हुए भी दिखाई दिए। पता नहीं कितने सबेरे ये उठ जाते होंगे!
           स्टेडियम का एक चक्कर लगा लेने के बाद देखा, टहलने वालों की संख्या बढ़ती जा रही थी, जिनमें, महिलाओं की भी अच्छी खासी संख्या हो चुकी थी। वैसे, ज्यादातर शहरी महिलाओं को ही "मॉर्निंग वॉक" के प्रति जागरूक पाया था, लेकिन यहाँ महोबा जैसे छोटे शहर में ग्रामीण महिलाएँ भी इस मामले में जागरूक दिखाई देती हैं। लड़कियों का तो कुछ कहना ही नहीं..स्टेडियम का एक चक्कर लगाते-लगाते कई लड़कियां दौड़ते हुए मुझसे आगे निकलीं। कुछ लोग वहीं स्टेडियम के एक जालीदार घेरे में व्यायाम करते दिखे तो, वहाँ भी महिलाएँ "जाँत" चलाती हुई नजर आई... यह जैसे, बाबा रामदेव का कमाल लगा। खैर...
        इसके बाद, कोई खास बात नजर नहीं आई..वही कार वाले, ग्रुप में टहलते हुए काफी पीछे नजर आए...आज मैं, इनसे पहले स्टेडियम पहुँच गया था। स्टेडियम से लौटते हुए मैंने दो स्त्रियों की आपस में बातें सुनी, आगे वाली अपने पीछे वाली से कह रही थी, "मेरा यही समय होता है"। वह सही कह रही थी। 
       
         हाँ, इस तरह बयालिस मिनट बाद मैं वापस आया। सुबह की चाय बनाई। चाय पीने के बीच मैंने "दैनिक जागरण"  पढ़ी। "विधायकों की बल्ले-बल्ले" पढ़कर लगा जैसे कानून के दिन बहुरे! तस्लीमा नसरीन के छपे लेख में, "चूँकि इस देश में मुक्त चिंताधारा वाले व्यक्ति को सम्मान मिलता है इसलिए मैं भारत लौटी" और "सभी धर्म एक न एक दिन इतिहास बनेंगे। उपयोगी नए धर्म आएंगे, तार्किक और विज्ञान-प्रेमी लोगों का विश्वास बढ़ेगा" पढ़कर अच्छा लगा। यहीं पर "सच्चा संंत" पढ़ी, नीचे लेख का फोटू दे दे रहें हैं, आप भी पढ़ना चाहें तो पढ़ लें। एक अन्य हेडिंग पर निगाह टिकी "बढ़ेगा 30 हजार करोड़ का खर्च" जिसमें सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के बाद राज्य में बढ़े खर्च का आकलन था। अब बल्ले-बल्ले होने की मेरी बारी थी। हाँ, विधायिका और कार्यपालिका दोनों की बल्ले-बल्ले..!

          इसके बाद "शादी के लिए देशभर में 31 हजार महिलाएँ अगवा" शीर्षक में महिलाओं की दुर्दशा रेखांकित कर, शादी के लिए देशभर में 64 पुरुषों, बच्चों और युवकों के अपहरण होने की बात कही गई थी। यहाँ घोर असमानता परिलक्षित हुई! मन खट्टा हो गया। फिर "हिन्दुस्तान" में "डिप्टी पीएम को झपकी लेने पर गोली से उड़ाया" पर नजर अटक गई....बाप रे!  यहाँ तो मीटिंग में हम रोज ही झपकी लेते हैं..!! ऐसे समाचारों से मन पहले से ही खट्टा तो था ही अब हलके से गुस्सा भी हो उठा। फिर तब तक "हिन्दुस्तान" अखबार में पढ़ा "गुस्सा अच्छा है"। अब आगे की दिनचर्या शुरू..
            शाम को एक गाँव के चौपाल-कार्यक्रम में चले गए..यह देखने कि...जनता की भी बल्ले-बल्ले हो रही है कि नहीं..इसके बाद आप सबसे कोई बात छिपी नहीं है....
                        
                     --Vinay 
                     #दिनचर्या

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