हमारी संवैधानिक संस्थाओं में जब किसी
प्रतिष्ठित या शक्तिशाली राजनीतिक व्यक्ति के विरुद्ध कोई मामला जाता है तो प्रायः उस व्यक्ति
द्वारा यह कहते हुए सुना जा सकता है कि वह इस संस्था की इज्जत करता है इसलिए सम्बंधित संस्था को इसका उत्तर देगा, क्या प्रकारांतर से उसका यह कथन उसके इस अहं
को नहीं दर्शाता कि वह चाहे तो इस संस्था को उत्तर ही न दे ? जैसे न्यायालय से कोई बड़ा सजायाफ्ता व्यक्ति यदि यह कहे कि वह न्यायालय के निर्णय का सम्मान करता है..और आगे इसे देखेगा...! क्या कोई एक कमजोर या गरीब व्यक्ति के मुँह से यही वाक्य निकलेगा..? अरे भाई..तुम न्यायालय या इसके जैसे किसी संवैधानिक संस्था की बातों का सम्मान करो या न करो लेकिन वह तुम्हारे सम्मान की मोहताज भी नहीं है..
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