शनिवार, 17 सितंबर 2016

समाज की परवाह

               कल, मन कुछ भारी था, बस यूँ ही महोबा में स्थित रहेलिया के सूर्यमंदिर की ओर निकल गए थे। मंदिर के भग्नावशेष कभी के इसकी भव्यता की कहानी बयाँ कर रहे थे। वहाँ नियुक्त कर्मचारी ने बताया कि इसकी पुरानी भव्यता को पुनः वापस लाने के लिए बजट आवंटित किया गया था, लेकिन बजट व्यय हो जाने के बाद काम रुक गया है...अब फिर से बजट आने पर काम होगा। देखा, थोड़ा काम हुआ भी था। काम यही था कि मंदिर के बिखरे पड़े पत्थरों को पुनः अपने पुराने स्थान पर रखते हुए मंदिर को पुराना स्वरूप दे देना! लेकिन कुछ लोग कहते हैं कि मंदिर का स्ट्रक्चर समझने में परेशानी हो रही है। लेकिन आज ऐसी बात कहना समझ की बात नहीं मानी जाएगी। हाँ.. यदि मंदिर फिर से अपने पुराने स्वरूप को ग्रहण कर लेता है तो पर्यटन की दृष्टि से अच्छा होगा। मेरे देखते-देखते दो-तीन और कार सवार यहाँ आ गए थे। 
             
              इस वर्ष अच्छी बारिश होने से मंदिर के सामने का बड़ा सा तालाब भी भर गया है। अभी हम यहाँ के चौकीदार से यही सब बातें कर रहे थे कि पास के गाँव का एक साठ-पैंसठ की उम्र का व्यक्ति जानवर चराते-चराते आ गया था। हमारे साथ श्रीमती जी भी थी। अचानक उन्होंने हमसे पूँछ लिया कि यह मंदिर कब बना होगा तो मैंने उन्हें बताते हुए कहा कि खजुराहो के मंदिर जब बने होंगे उसी के आसपास या उससे थोड़ा पहले बने होंगे। असल में यह मंदिर आठवी-नौंवी सदी में बना था। अभी हम यह बातें कर ही रहे थे कि वह चरवाहा बोल उठा, "अरे! खजुराहो तो हम पहले गये हते..देखै लायक नहीं.." फिर इस व्यक्ति ने खजुराहो के मंदिरों को बनाने वालों को तमाम गालियों से नवाजने लगा था, हाँ..गालियाँ भी ऐसी कि खजुराहो की मूर्तियां ही शर्मा जाएं! उसकी गालियों को सुनते हुए मैंने सोचा, "हम आम भारतीयों का चरित्र ऐसा ही होता है...खजुराहो की मूर्तियों से शर्म तो आती है लेकिन, ऐसी गालियाँ बकने में कोई शर्म नहीं...!" खैर.. मैंने इस पर ध्यान नहीं दिया। 
               
               हाँ..फिर इस व्यक्ति ने ओरछा का जिक्र करते हुए बताया कि वहाँ बहुत अच्छा स्थान है, वहाँ का मंदिर देखने लायक है। हरदौल के मंदिर के बारे में बताते हुए उसने हरदौल की कहानी सुना...असल में जुझार सिंह और हरदौल दो भाई थे। जुझार सिंह बड़ा था। हरदौल जब पैदा हुआ तभी इनके माता-पिता की मृत्यु हो गई थी। उस समय जुझार सिंह की पत्नी यानी हरदौल की भाभी ने हरदौल को अपना दूध पिलाते हुए पाला-पोसा। बाद में, युवा होता हरदौल ताकतवर और सुन्दर था। जुझार सिंह के कुछ खास मंत्री उसके बढ़ते प्रभाव से चिन्तित से हो गए थे। तब इन लोगों ने जुझार सिंह के कान भरने शुरू कर दिए कि हरदौल का अपनी भाभी यानी जुझार की पत्नी के साथ अवैध रिश्ता है..और जुझार सिंह ने अपनी पत्नी के हाथों हरदौल को जहर खिलवा दिया..। मतलब हरदौल अपनी भाभी के हाथों जहर खा लिया। हाँ... चरवाहे ने आगे यही बताते हुए कहा....
       
           "मंत्री-अन्त्री रहईं ओनके...उनने चुगली कर देई...कहई, मैंने अपनी आँखों से देखा है..और फिर भी...जुझार सिंह न मानो!  तब भी चुगली करत-करत उनने कर दिया...और हरदौल ने कहा..मैं जिन्दा न पूरा करता रहा तो, मरने पर इनका क्यों पूरा करता रह ना?" (शायद हरदौल का आशय यही था जो बात जिंदा रहते सच नहीं थी तो मरने पर कैसे सच हो जाएगी..!) 
               
                इसके बाद चौकीदार ने आगे इसी में जैसे जोड़ते हुए हमें समझाने के अंदाज में कहा, "जब खा नहीं रहा था जहर तो उसमें यो हो जाता कि ये बात सच्च है.. इससे उनके मन में कि मैं जहर खाऊँ...मर गये..." मेरे फिर पूँछने पर कि जहर किसने दिया तो उसने कहा, "भाभी से दिलवाया"!
         
                आगे उस ग्रामीण ने फिर बताया, "मरते-मरते बारह-तेरह को मार गये और कहा...मेरे मरने के बाद मेरे वंश परिवार में कोई नहीं रह जाएगा और ये संन्त्री के भी कोई इनके न रह जाएगा।"
               
                   मैंने कहानी सुनी...सोचता रहा...
                 कल की #दिनचर्या बस यूँ ही बीत गई थी। 
और चलते-चलते -
              समाज में कोई क्या कह रहा है, हमें इन बातों की परवाह नहीं करनी चाहिए...कहने वालों के अपने-अपने स्वार्थ होते हैं। 
                               --Vinay 
                               #दिनचर्या 13/13.9.16

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