शनिवार, 17 सितंबर 2016

घास छीली

                हाँ, आज हमने जम कर घास छीली...। सुबह अलसाए हुए से थे, नहीं उठे, श्रीमती जी अकेले ही वाक पर निकल गई। चाय पीते-पीते आठ बज चुके होंगे...आज भी अखबार नहीं आया था। ध्यान आया बाहर घर के किनारे कुछ पेड़ लगाए हैं, वहाँ बड़ी-बड़ी घास उग आई है ; सो खुरपी लेकर आठ बजे से घास छीलना शुरू कर दिए। डेढ़ घंटे लगातार घास छीलते रहे। तब तक अच्छी खासी धूप हो आई थी। काम समाप्त कर उठे तो चक्कर सा आ गया फिर वहीं बैठ पाइप से जमकर चेहरे पर पानी का फव्वारा मारा। पूरी तरह भींग गए। जब राहत मिली तो घर में आए। प्यास लगी थी। श्रीमती जी लोटे में पानी और गुड़ का एक टुकड़ा देते हुए बोली, "लो अगर किसान होते तो ऐसे ही हल जोत कर आते तो गुड़-पानी देती"। खैर, गुड़ का टुकड़ा मुँह में डाल गटागट लोटे से ही पानी मैंने पिया।
               वैसे, यदि कोई कह दे कि वह किसानी करता है तो, उसे देखने वाले हेय दृष्टि से ही देखेंगे। 
          
              वास्तव में आज की #दिनचर्या कुछ ऐसे ही शुरू हुई थी। इसके बाद कुछ अन्य घरेलू कार्यों में लग गया था।
              कभी-कभी सहज होना बड़ा अच्छा लगता है। यह सहजता अपने में जीना है और यह "अपने में" सभी चीजों या परिवेश से जुड़ना होता है। जीवन में सहजता हमारे लिए दुर्लभ चीज बन चुकी है। लेकिन एक मिनट भी इस सहजता को जी कर देखेंगे तो बड़ा मजा आएगा! 
                 चलते-चलते -
             सहजता केवल घास छीलना भर नहीं होती...इससे आप पर्यावरण और परिवेश में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे होते हैं, जहाँ जीने की जगह बनती है। 
               इसी के साथ आज की राम-राम...

                                                                 --Vinay 
                                                                  #दिनचर्या 9/8.7.16

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