गुरुवार, 8 सितंबर 2016

परमीशन की आवश्यकता

                       जब कोई #दिनचर्या लिखने बैठे तो मान लीजिए वह #बतकचरा कर रहा है। ऐसे ही, मैं भी अपनी दिनचर्या लिखता हूँ। यह बतकचरा ही है। लेकिन दिनचर्या लिखना मेरे लिए इतना आसान नहीं है, जब दिन अपना न हो। जैसे, कोई सरकारी सम्पत्ति, सार्वजनिक ही होती है, ठीक वैसे ही परिवार के बीच में होने पर मैं भी सरकारी हो जाता हूँ, मुझपर मेरा कोई अधिकार नहीं रह जाता और ऐसा कोई भी दिन तब मेरा अपना नहीं रह जाता। हाँ, जब दिन हमारा होता है तभी मैं दिन की चर्या लिख पाता हूँ.. आज का दिन मेरा अपना नहीं है, इसलिए आज की चर्या भी मेरी अपनी नहीं है। अगर ऐसे दिन को मैं अपनी चर्या मान भी लूँ तो इसके लिए परमीशन की आवश्यकता होती है ठीक उसी तरह जैसे कोई सरकारी नौकरी में छुट्टी और कार्यस्थल छोड़ने की परमीशन की जरूरत होती है, नहीं तो आरोप झेलने पड़ जाते हैं। बस यही हाल हमारा घर में होता है। 
                   आज तो अखबार भी नहीं पढ़ पाए। यहाँ लखनऊ में हाकर चार-पाँच दिनों से हड़ताल पर हैं। तो, आज की मेरी दिनचर्या स्थगित जैसी ही रही। 
                    वैसे फेसबुक की वाल खंगालते हुए खाट लूट लेने का जिक्र कई जगह देखा। खाट ही क्यों, यहाँ ऐसी कोई चीज नहीं जिसकी लूट न हो! कभी साड़ी, तो कभी कुछ! अब खाट की लूट भी सामने आई है। बात यह कि इस देश की जनता को हमने यही कुछ तो दिया है, और वह भी वोटों की खातिर! लूटनेवाले भी ऐसी नीयत पहचानते हैं। बचपन की कहानियों में भी पढ़ा था -
                    "राजा, जब कोई चीज उछालता है तो प्रजा उसे लूटने को टूट पड़ती है। 
                      आज की #दिनचर्या समाप्त। 
                                                                 --Vinay 
                                                                 #दिनचर्या 8/7.9.16

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