गुरुवार, 8 सितंबर 2016

बुद्धिमत्ता नंगई लिए होती है....

             "आलस बुरी बला नहीं ज्यादा बुद्धिमत्ता का संकेत" उस दिन अखबार में मैंने यही हेडिंग पढ़ी थी।
          
              इस बात से एक चीज तो तय है, जो व्यक्ति काम नहीं करता वह कुछ ज्यादै बुद्धिमान होता है, और जो काम करता है वह बेवकूफ! श्रीमती जी ने एक बार मुझे किसी के इस कथन - परिवार में कोई एक बेवकूफ हो जाए तो परिवार बखूबी चल निकलता है - से अवगत कराया था, मतलब परिवार आपसी प्रेम और सामंजस्य में बँधकर प्रगति करता रहता है! क्योंकि परिवार का वह बेवकूफ सदस्य बिना किसी बात की परवाह किए अपने काम में खटता रहता है, बाकी लोगों के लिए कोई समस्या नहीं बनता और परिवार के अन्य बुद्धिमान सदस्यों का काम निकलता रहता है।
              तो, तात्पर्य यह कि काम करने वाला बुद्धिमान नहीं होता, उसमें बेवकूफी के लक्षण होते हैं, और बुद्धिमान काम नहीं करता आलसी होता है। अब काम न करनेवाला धीरे-धीरे अकेला भी होता जाता है, क्योंकि बुद्धिमान चिन्तन-मनन में कुछ अधिक ही संलिप्त हो जाता है, नए-नए आइडिए देता रहता है, जिस पर बेवकूफ खटते रहते हैं। यही तो आलसी होने का फायदा होता है, और ये आइडिए अकेलेपन से ही आते हैं, अकेलापन भी बुद्धिमत्ता का प्रतीक है, वैसे ही जैसे आलसीपन! लेकिन यहाँ अकेलापन भी, एक दार्शनिक के अनुसार, जैसा मैंने अखबार में पढ़ा, "मानवीय स्थिति का मौलिक अंग" है। मतलब आलसीपने की तरह ही अकेलेपने को बुराई के अन्दाज में मत लीजिए। आपने देखा होगा न जाने कितने कवि, लेखक अपने अकेलेपन के चक्कर में बेशुमार साहित्य सृजन कर डालते हैं, वो तरह-तरह के अाइडिए की खान होते हैं! यही नहीं स्वयं उनका अकेलापन उनके साहित्य-सृजन का विषय-वस्तु बन जाता है। अब मेरे समझ में यह नहीं आता कि वो अपने को अकेला क्यों कहते हैं! लेकिन नहीं बात इसमें छिपी है, जब बुद्धिमान बनोगे तो अकेलापन आएगा ही..! अकेलेपन की भी तो अपनी मौज होती है; समस्त चराचर आपके साथ तो होता है, और आप भी अपने मौलिक स्वरूप में होते हैं, जैसे कोई निरवसन खड़ा हो, इससे तय है कि बुद्धिमान नंगई भी कर लेता होगा!
          जैसा कि जाम भी बिना साथियों के साथ के, नहीं छलकता..लेकिन मदहोशी अकेलेपन में ही आती है। मतलब बुद्धिमान बनने के पहले जाम छलकाना पड़ता है, चराचर की अनुभूति करनी होती है, और फिर, नशे में डूबना होता है! यही लेखकीय कौशल की भी पूर्वपीठिका है।
         यहाँ, अब यह मानने में कोई हर्ज नहीं कि, यदि आपके सामने कोई महान लेखक गुजरे तो निस्संदेह वह आलसपने, बुद्धिमानी और अकेलेपन और नंगई का शिकार होगा और उस पर कोई उँगली न उठा सके इसलिए वह साहित्यकार भी बना रहता है। यह ठीक उसी तरह से होता है, जैसे परिवार का कोई निठल्ला, बुद्धिमान बन परिवार में सलाहकार की भूमिका निभाने लगता है।
                                                        - Vinay

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