शनिवार, 17 सितंबर 2016

जिन्दादिली

           वैसे, यह तो सब जानते हैं कि परिश्रम से अर्जित फल सभी को प्रिय होता है। कल पौधों के बीच से घास निकाला और आज चाय पीने के बाद फिर से इन पौधों के बीच खड़े इन्हें यूँ ही देखे जा रहा था। इस बीच कालोनी के ही एक रिटायर्ड कर्नल साहब, हाथ में बैडमिंटन का  रैकेट लिए हुए, जो उधर से ही गुजर रहे थे, मुझे देख मेरी तरफ मुड़ लिए। हाँ, उनकी उम्र यही कोई लगभग अस्सी पार हो चुकी होगी, पिछले जाड़े में इन्होंने अपनी शादी की पचासवीं सालगिरह मनाई थी। कर्नल साहब सुबह-शाम पास में ही पार्क में अपनी पत्नी के साथ टहलने भी जाते हैं और वहाँ बैडमिंटन भी खेलते हैं। 
              कर्नल साहब इस उम्र में भी भरपूर जिन्दादिल इंसान लगते हैं। वैसे भी, सेनावाले भले ही सेना में रहते हुए "डू एंड डाई" के अलावा और कुछ न जानते हों, लेकिन इस चक्कर में इनके अन्दर जिन्दादिली घर कर जाती है, जिसमें रिटायर्मेंट के बाद भी कोई कमी नहीं आती। तो, यही कर्नल साहब मुझसे बतियाने लगे थे। इस कालोनी में शायद सबसे पहले वही आकर बसे थे। कर्नल साहब ने ढेर सारी बातें की। ये गढ़वाली रावत हैं जो राजपूत होते हैं। अपने एक कुमाऊँनी साथी को लेकर बताया कि गढ़वाली भाषियों को कुमाऊँनी भाषा समझने में समस्या होती है। गढ़वाली लोग कुमाऊँनी को "मीन माइंडेड" भी मानते हैं। 
      
           बातों-बातों में कर्नल साहब ने बताया कि आजकल लोग खासकर ब्राह्मण और क्षत्रिय अपने-अपने कर्तव्यों को भूल गए हैं। कर्नल साहब ने पहाड़ों पर प्रचलित बकरे की बलि देने की प्रथा के बारे में बताया कि वहाँ ब्राह्मण इस बलि का प्रसाद ग्रहण करने में सबसे आगे रहते हैं और इस बलि में उनके हिस्से में गर्दन सहित बकरे का सिर और एक टांग आती है। मतलब सभी धर्मों की वही कहानी, हिंसा के लिए किसी एक धर्म को दोष नहीं दे सकते। इस तरह हमारे बीच काफी देर तक बातें हुईं। 
            आज भी यहाँ हाकर ने अखबार नहीं दिया था। टी.वी. से पता चला कि कॉमेडियन कपिल शर्मा कोई आरोप लगा रहे हैं। यहाँ तो क्या शहर, क्या गाँव सभी जगह यही कहानी है। गाँव वाला यदि अपनी अज्ञानता या गरीबी के कारण ऐसी स्थितियों का शिकार है तो एक सुविधा-भोगी पढ़ा लिखा शहरी इसलिए शिकार बनता है कि उसके पास समय नहीं है, और उसे भी अपना काम निपटाना होता है। यह रोग दोनों जगहों पर भयानक रूप से फैला है। 
          वैसे, आज का मेरी यह #दिनचर्या मैंने बड़े बेमन से लिखा है...लिखना नहीं चाहता था। सोच रहा हूँ जिस दिन लिखने का मन न हो उस दिन न लिखा करूँ...हाँ, शायद अगले दो दिनों तक न ही लिखूँ...!
          चलते-चलते -
        जो धर्म किसी को हिन्दू, किसी को मुसलमान, किसी को सिख या किसी को ईसाई बनाता है, वास्तव में वह धर्म नहीं होता। 
                 -- Vinay 
                 #दिनचर्या 10/9.9.16        

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