रविवार, 25 सितंबर 2016

हड़बड़ाहट

             इस बीच जैसे सब गड़बड़ा गया हो..हाँ, वही अपनी #दिनचर्या..!  अभी बीती रात के पहले वाली रात में निशाचर था। असल में रात आठ बजे घर छोड़ नौकरी पर निकल लिए थे, घर वाले जेन नहीं  ले जाने दिए, नहीं तो अगले दिन सबेरे ही निकलते। घर वालों का तर्क था बहुत ट्रैफिक होता है, बस से जाइए, सो रात में ही निकलना पड़ा। अगर सबेरे बस से निकलते हैं तो नौकरी पर पहुँचने में दिन के बारह बज जाते हैं, और जब तक नहीं पहुँच जाते दिल ऊग-बीग करता रहता है...देर से आफिस पहुँचने पर..! और लोगों की नजरों से बचना भी पड़ता है। खैर... 
             अकसर हड़बड़ी में चीजों को भूल जाता हूँ; जैसे कि उस दिन मोड़ पर सामने से आती बस देख उसे पकड़ने की हड़बड़ी में कार से कूद कर भागा...और बस रोकने के लिए हाथ से इशारा किया ही था कि ध्यान आ गया, "अरे! मोबाईल तो कार ही में छूट गया है..." हाथ तुरन्त नीचे किया, फिर उल्टे पाँव कार की ओर भागा..! सुपुत्र जी वापस जाने के लिए कार मोड़ ही रहे थे, साथ में उनकी माता जी भी थी, इस तरह मुझे हड़बड़ी में देख वे कुछ समझती, कि इसके पहले ही मैंने कार का दरवाजा खोल सीट पर छूटी मोबाइल हाथ में लेते हुए उन्हें दिखाया और उतनी ही तेजी के साथ मुख्य सड़क की ओर पुनः भागा..लेकिन वह बस दूर जाती हुई दिखी, सोचा, "बस का ड्राइवर सोच रहा होगा कि कितना बेवकूफ आदमी है.. हाथ देकर भाग खड़ा हुआ...!" भाग्य अच्छा था (हम छोटी-छोटी बातों में भी भाग्य को कष्ट देने से नहीं चूकते), कुछ ही क्षणों बाद दूसरी बस आ गई थी।
           बस में सवार हो गया। कंडक्टर मेरे पास आया..फुटकर नहीं था..पाँच सौ का नोट दिया...बहुत सलीके से उसने मेरा टिकट बनाया..और किराए से बचे पैसे टिकट के पीछे न लिख, उसी समय वापस भी कर दिया। कई बार भीड़ न होने पर भी कंडक्टर, तुरन्त पैसा वापस करने की बजाय टिकट के पीछे लिख देते हैं और गंतव्य आने पर ही वापस करते हैं.. ऐसे में हड़बड़ी में भूलवश बिना पैसा वापस लिए हुए ही बस से उतर गए हैं..एकाध बार तो टिकट खो जाने पर संकोचवश कंडक्टर से पैसा वापस लिया ही नहीं क्योंकि प्रमाण के लिए टिकट के पीछे लिखे बाकी के पैसे दिखाना होता है, और वह दिखा नहीं पाया था। लेकिन, आज का यह बस कंडक्टर मुझे सभ्य लगा था।
              बस में बैठे-बैठे मेरा दिमाग उरी हमले पर चला गया...शहीद सैनिकों को लेकर मन कुछ भावुक भी हो चला था.. पाकिस्तान पर इतना गुस्सा आया कि लगा, भारत को तुरंत पाकिस्तान पर बमबारी शुरू कर देनी चाहिए लेकिन देश की राजनीतिक उठापटक पर भी ध्यान चला गया, लगा यह समस्या आज की ही नहीं है। ऐसी समस्याओं के पीछे "मन" होता है, और किसी देश का मन जब गड़बड़ा जाता है तो, या तो वह दूसरों के लिए समस्या पैदा करता है या, समस्या का शिकार होता है..हम एक तरह की समस्या के शिकार हैं!  कल सबेरे मैंने जो कविता पोस्ट की थी भावुकता में इसी बस के सफर के दौरान लिखी थी..फिर कब कानपुर आ गया था, मुझे पता ही नहीं चला..!
        जैसे ही बस से उतरा, महोबा वाली बस तुरन्त मिल गई..वाकई..! देखिए न, ये भी बेचारे बसवाले दिन-रात की परवाह किए बिना अपनी ड्यूटी बजाते रहते हैं..! जब इन बसों को कहीं किसी आन्दोलन के दौरान जला दिया जाता है तो, हमें बड़ा कष्ट होता है...जैसे अभी, कावेरी विवाद में बैंगलुरू में चालीस बसों को जला दिया गया था! वास्तव में, ऐसे अपराधियों को खोजकर इन पर हत्या का अभियोग चलाया जाना चाहिए और कम से कम आजीवन कारावास से कम की सजा नहीं मिलनी चाहिए। हमारा चरित्र ऐसा!! और चलें हैं पाकिस्तान को सबक सिखाने..! सरकार कुछ नहीं कर रही..सरकार मौन है.. सरकार के चरित्र को देखने के पहले भाई लोग हम लोगों ने अपने चरित्र को देखा है..? आजादी के इतने दिनों बाद भी एक नागरिक बनने का सऊर तो आ नहीं पाया, पाकिस्तान को सबक सिखाएंगे? पहले अपने को इस लायक तो बनाओ कि आप पर हमला करने के पहले कोई लाख बार सोचे। 
             मन दुखी था..मौन था..बस होठों को चबाए जा रहा था... युद्ध लड़ने की इच्छा मन से निकल चुकी थी..कविता को अगले दिन सबेरे पोस्ट किया। 
           आज सबेरे पाँच बजकर पाँच मिनट हुए थे जब स्टेडियम की ओर टहलने निकला था। रास्ते में स्टेडियम की ओर काफी लोग जाते हुए दिखाई दिए..अब सबेरे-सबेरे टहलने वालों की संख्या में काफी इजाफा हो चुका है! दस दिन बाद मैं स्टेडियम की ओर गया था। कुछ देर बाद स्टेडियम में कार वाला ग्रुप भी आ गया था, तेजी से चलते हुए उन लोगों की यह बात सुनी "कार्यवाही का अधिकार सेना को दे दिया गया है..अब सेना भी नहीं कह सकती कि हाथ बँधे हुए हैं" इतनी ही बात मैं सुन पाया था और उनसे आगे निकल गया। 
स्टेडियम का तीन चक्कर पूरा करने के बाद वापस चलने को हुआ तो बिना घड़ी देखे ही, निकलने वाले समय से हिसाब जोड़कर मन ही मन  अनुमान लगाया कि पाँच बजकर सैंतालिस मिनट पर आवास के दरवाजे पर पहुँच जाएँगे। आवास के दरवाजे पर पहुँचते ही समय देखा, अनुमान एकदम सही था। मतलब कभी-कभी गुणा-गणित से सटीक निष्कर्ष निकल आते हैं, तो भाई! किसी जवाब में हड़बड़ी की जरूरत नहीं, गुणा-गणित कीजिए और करने दीजिए..हड़बड़ी में चीजें मिस हो जाती हैं। 
          आज जल्दी चाय बना लिया था..चाय पीने के बाद ही अखबार आया..जागरण में पहली हेडिंग "पाक पर प्रहार को तैयार" पढ़ने के बाद "मुस्लिम पर्सनल लॉ में दखल सरासर गलत" पढ़ते हुए मन में विचार उठा, "काश! हमारे देश के लिए भी कोई पर्सनल लॉ होता...ले देकर जो संविधान है, वह तो, सब को पर्सनल पर्सनल सा किए दे रहा है..!"  खैर, आगे "इतना आसान भी नहीं है युद्ध का फैसला" में बताया गया था कि "भारत पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध की दशा में दोनों ओर से एक करोड़ बीस लाख लोगों की मृत्यु हो जाएगी, पाकिस्तान तो नेस्तनाबूद तो हो ही जाएगा।" यह भी एक गुणा-गणित है। लेकिन युद्ध से शान्ति शायद मरघट वाली ही शान्ति होती है। "युद्ध से शान्ति" इसे मैं आदिम विचार भी मानता हूँ..तब शायद, शान्ति स्थापना के लिए एकमात्र विकल्प युद्ध ही रहा होगा। आज बहुत सारे विकल्प हैं। 
           बाद में घर से फोन भी फोन आया.. बोलीं, "इस बार इंडिया टूडे में महोबा के पहाड़ों के खनन पर रिपोर्ट आई है..." मैंने मन ही मन पूर्व में फेसबुक पर इस सम्बन्ध में किए गए अपने कुछ पोस्टों के बारे में सोचा... "वाकई! बात निकलती है तो दूर तलक जाती है..! चाहे कोई पढ़े या न पढ़े, सुने या न सुने। हाँ, बातों ही बातों में उन्होंने एक बात और कही, " सेना में भी बड़ा भ्रष्टाचार है...शहीद होने वाले सैनिक बेहद गरीब घर के ही होते हैं " इस बात पर कुछ सैनिक अधिकारियों के परिवारों के बी एम डब्ल्यू से चलने की बात याद आई। खैर, हम भारतीय हृदय से अपने सैनिकों का सम्मान करते हैं। 
          हाँ, यही आज की दिनचर्या थी..पता नहीं यह #बतकचरा तो नहीं है...!
        चलते-चलते -
       
         कोई भी निर्णय, हड़बड़ाहट में, पूर्वाग्रह में, क्रोध में, भावना में और बिना गुणा-गणित के नहीं लेनी चाहिए। 
                     --Vinay 
                     #दिनचर्या 14/20.9.16
        

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें