शनिवार, 4 अक्तूबर 2014

कम से कम अच्छे संस्कारों को निर्मित होने दें...

          आज दशहरा है...! और कल दो अक्टूबर था...! एक तरह से स्वच्छ भारत अभियान का श्रीगणेश....! और...ये दोनों दिन प्रत्येक वर्ष आते हैं…आते रहेंगे...! लेकिन...क्या फर्क पड़ता है...कुछ तो लोग कहेंगे..उनका काम है कहना...पुनः लेकिन..! फिर भी प्रतीकात्मक ही सही इन दोनों दिवसों का अपना महत्व तो है ही....
           
       "अहिंसा परमो धर्मः"
       
        एक कार्ड-बोर्ड पर करीने से उकेरा गया यह वाक्य गाँव के कच्चे घर की कोठरी के दीवालों पर टंगा होता था..! निहायत छोटा था...! सुबह-सुबह सूर्य की पड़ती किरणों में मैं रोज ही उसे देखा करता...! कई वर्षों तक मैं अबोध..! उसका अर्थ ही नहीं समझ पाया था..! फिर..एक दिन मैंने माँ से इसका अर्थ पूँछा था..मेरी माँ ने बताया था.. "बेटा..! इसका मतलब होता है किसी भी जीव-जंतु को मत मारो और किसी आदमी को कष्ट मत दो..और हाँ झूठ भी मत बोलो..." फिर कुछ-कुछ उसका अर्थ समझ में आने लगा था..उसके बाद भी कई वर्षो तक एक बालक के रूप में मैं देखता रहा था...

           संयोग से मेरी माँ शिक्षिका भी थी..शायद तब मैं पाचवीं या छठी कक्षा में रहा होऊँगा माँ के संदूक से एक किताब निकल कर मैंने बड़े चाव से उसी समय पढ़ी थी..किताब थी.. "महात्मा गांधी की जीवनी" अब "अहिंसा परमो धर्मः" का मतलब मेरे लिए एक-दम साफ हो चुका था..!
   
     फिर मेरे दादा जी...! बचपन से ही मैं उनसे यह सुनते आया था....
   
                   जो तोको काँटा बोवै, ताहि बोव तू फूल
                   तोको फूल को फूल है वाको है तिरशूल
हाँ..दादा जी से इसका अर्थ भी जान गया था..।
   
         फिर...दादा जी गाँव से कुछ दूर पर प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले दशहरे के मेले में मुझे ले जाया करते थे ..! शाम के धुंधलके..में जलते रावण को उनकी उँगली पकड़ कर मैं कौतूहल से देखा करता..! दादा जी समझाते.."रावण जल रहा है क्योंकि वह बुरा था..!" बाद में धीरे-धीरे बात समझ में आने लगी थी...!
     
          इन घटनाओं से मैं कितना सीखा..यह बताना पाखंड हो सकता है...लेकिन इतना मैं स्वयं समझ सकता हूँ...एक संस्कार निर्मित तो हुआ ही..! मैं मानता हूँ कि हर चीज का अपना महत्त्व है...हम बड़े उम्र के लोगों लिए हो सकता है ये सब दिखावे या फोटो-बाजी की चीजे हों लेकिन...उन अबोध बालकों के लिए जो इन चीजों को देख रहे हैं इन सबसे उनमें अच्छे संस्कारों का श्रीगणेश भी हो सकता है...!
          और..! चलते-चलते..एक बात बता दें मृत्युशैया पर पड़े रावण से भी सीख या कहे उपदेश प्राप्त करने के लिए लक्ष्मण को श्री राम ने उसके पास भेजा था...!
          आइए...! किसी भी बौद्धिक-पूर्वाग्रह से मुक्त होकर हर अच्छी चीजों को आज की जटिल होती दिनचर्या में स्वीकार करे....

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