सोमवार, 18 मई 2015

'मालिकपने' के शिकार....

                   उस दिन श्रीमती जी ने कहा, 'जो वह मजदूरिन है न..! है तो वह गरीब ही..लेकिन उसकी मालकिन ने उससे कोई काम कहा था...शायद उसने नहीं किया था...'
         
                यह सुन मैंने कहा, 'हाँ ये मजदूर ऐसे होते ही हैं...मन में आया काम किया मन में आया तो न किया..'

              श्रीमती जी ने कहा, 'यह बात नहीं..अरे, इनकी मजदूरी बढ़ा दो तो ये क्यों नहीं कहने पर काम करेंगे..?'

                 'लेकिन जानते हो उसकी मालकिन ने क्या कहा..उन्होंने कहा अरे इस मजदूरिन के पास भी पैसा हो गया है...यह तो बी.सी. भी चलाती है..उसी की बचत होगी इसके पास फिर क्यों सुनेगी यह..?'

                 श्रीमती जी की यह बात पूरी नहीं हुई थी कि मैंने कहा, 'अरे नहीं..! बी.सी.-ऊ सी का ये कौन सा बचत कर पाएंगी...लेकिन ये गरीब न अपनी इसी अकड़बाजी के चक्कर में आगे बढ़ नहीं पाते..और सरकार भी इन्हें मुफ्त का भोजन देती है, ये बी.पी.एल.कार्ड और अन्त्योदय कार्ड जो बिना काम के अनाज दे मुफ्तखोरी ही बढ़ा रहे हैं फिर ये काम क्यों करें..!'

                    'नहीं-नहीं...बात यह नहीं है...हमारा 'मालिकपना' इनकी अकड़बाजी बर्दास्त नहीं कर पाता...यदि सरकार की ये योजनाएं न हों तो हम इनके आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाते हुए इनसे काम लेने लगे....तथा कदम-कदम पर ये शोषित हों, कम से कम सरकार की इन योजनाओं के कारण ये मजदूर अपने आत्मसम्मान को बचाते हुए अपने लिए इच्छित कार्यों का चयन तो कर सकते हैं, इनकी यह अकड़-बाजी इसी कारण से है...' श्रीमती जी ने हमें जैसे विस्तार से समझाने की कोशिश की...

                  वास्तव में श्रीमती जी ने सही कहा था..कम से कम सरकार के इन सहारों की वजह से ये गरीब धीरे-धीरे कर ही सही आत्मसम्मान को समझने लगे हैं...और हो सकता हैं आगे चलकर ये उन मनोवृत्तियों से टकराएँ जो आज की इनकी स्थिति के लिए जिम्मेदार है...क्योंकि इनकी इस स्थिति का एक कारण यह भी रहा है कि वर्षों से ये हमारे 'मालिकपने' के शिकार बनते आ रहे हैं....

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