शनिवार, 19 मार्च 2016

बस यूँ ही !

               इस छोटे से आर्टिकल में लिखा है "समय और गति के सिद्धांत के अनुसार अगर दो वस्तुएं अलग गति से घूम रहे हैं तो जो धीरे घूम रहा होगा उसके लिए समय ज्यादा तेजी से गुजरेगा" इसे पढ़ते ही मुझे मेरा अपना वह अनुभव या एहसास याद हो आया-
              ...कई बार तेज गति से चलते हुए मुझे घड़ी की सूईयाँ स्थिर सी लगती हैं, यानी जैसे समय ठहरा हुआ दिखाई देने लगता है! हो सकता है यह केवल मनोवैज्ञानिक अनुभव हो, लेकिन इसका कोई अर्थ तो है ही।
           वास्तव में मैं भी मानता हूँ कि समय का पैमाना घड़ी की सूईयाँ नहीं होती बल्कि समय और कुछ नहीं केवल गति का ही नाम है। मतलब जब आप स्थिर होते हैं तो आप के आसपास की सारी चीजें गुजर रही होती हैं और तब ऐसा प्रतीत होता है जैसे समय गुजर रहा है, लेकिन जब आप गतिशील होते हैं तो लगता है आप समय के साथ हैं, तब समय आपके लिए स्थिर हो जाता है।
           इसे आप गतिशील बस के उदाहरण से ऐसे समझ सकते हैं ; आप बस के बाहर खड़े होते हैं तो बस गुजरती हुई दिखाई देती है और जब आप इस बस पर सवार होते हैं तो यही बस आपके लिए स्थिर हो जाती है।
          शायद समय और स्पेस, इस गति में ही उलझे हुए हों और इसी में ब्रह्मांड का रहस्य भी छिपा हुआ हो सकता है.! लेकिन इतना तो निश्चित ही है कि गति ही जीवन है, यही समय भी है। गति में समय स्थिर हो जाता है। यह गुजरता हुआ समय मृत्यु है क्योंकि तब गति नहीं होती केवल समय गुजरता है।
           यहाँ एक रहस्य और है यदि आप समय का एहसास करना चाहते हैं तो स्थिर होना पड़ेगा मृत्यु से गुजरना पड़ेगा जैसे कि यह ब्रहमाण्डीय नियम! हाँ सृष्टि का आभास स्थिरता का ही आभास है। ग्रह, नक्षत्र और ये तारे ब्रहमाण्डीय स्थिरता के परिणाम हैं। वैसे ही जैसे उर्जा संघनित होकर पदार्थ बन जाता है मतलब पदार्थ बन जाना ही स्थिरता है। और समय का अस्तित्व मात्र पदार्थों के लिए ही होता है या समय का अस्तित्व है भी तो इन पदार्थों के रूप में ही। जहाँ पदार्थ नहीं वहाँ समय नहीं।
          यहाँ एक विशेष बात है ब्रहमाण्डीय गति ही चेतना होती है समय पर इसका प्रभाव नहीं पड़ता। बल्कि सब कुछ इसी में निहित है और इसी में अनन्त संभावनाएं भी छिपी होती है। वैसे यह विषय बहुत जटिल और गूढ़ रहस्य समेटे है इसकी व्याख्या में कभी-कभी ऐसा भी होता है जैसे जहाँ से शुरू किए थे वहीं फिर पहुँच रहे हैं। लेकिन व्याख्या आगे भी जारी रहेगी।
        फिलहाल हमें सदैव गतिशील रहना चाहिए, चेतन रहना चाहिए तभी हमारे अन्दर अनन्त संभावनाएं होंगी और यह गतिशीलता विचार, कर्म जैसे सभी क्षेत्रों में होनी चाहिए। अन्यथा स्थिरता माने पदार्थ बन जाने का क्या का हश्र होता है हम समझ गए होंगे।

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