मंगलवार, 26 सितंबर 2017

ब्राह्मणवाद

       उस दिन एक नए ज्ञान की प्राप्ति हुई थी...वह इस प्रकार है. एक बात तो है, जो ग्यानी-ध्यानी होते हैं लोग उनका बहुत सम्मान करते हैं। अब ग्यानी-ध्यानी कौन होता है? यह वह शख्स होता है जो सामनेवाले का कर्म-अकर्म और उसकी छल-छद्म जानने की शक्ति रखता है। इस शक्ति को वह अपने चिंतन-मनन और अनुभव से अर्जित कर लेता है, और यह तभी संभव होता है जब उसे करने को कुछ न हो। धीरे-धीरे ऐसे ही ग्यानी-ध्यानी को "ब्राह्मण" से नवाजा गया और ये समाज में सम्मान के पात्र और पूजनीय हुए। खैर..यहाँ मतलब किसी जाति से नहीं है और जाति वाले इसे दिल पर भी नहीं लेंगे। 
  1.             अब समाज में हर तरह के लोग तो होते ही हैं तो, प्राचीन काल से ही हमारे समाज में कुछ लोग ऐसे भी रहे हैं, जो अपने कर्म-अकर्म या छल-छद्म से अर्जित शक्ति के बल पर आमजन पर अपनी मनमानियाँ थोपते आए हैं। अपने यहाँ का आमजन निरा बेवकूफ जो ठहरा! वह ऐसी मनमानियों को डर वश कभी अपनी नियति माना तो कभी अपने कर्मों का फल और फिर सब कुछ सहता रहा। असल में हुआ यह कि यह ज्ञानी-ध्यानी "ब्राह्मण"  सदैव सम्मान का भूखा रहा है जैसा कि अकसर ज्ञानियों की आदत में होता है कि, जब तक इनका यथोचित सम्मान न हो जाए तब तक इन्हें अपने ज्ञानी होने का अहसास भी नहीं होता और इस प्रकार ये सदैव अपने ज्ञान का ही अहसास करते रहना चाहते हैं..! 
  2.             हाँ तो, अकर्मी-विकर्मी या छल-छद्मी की मनमानियों का शिकार आमजन, इन ज्ञानियों या कहें "ब्राह्मणों" की ओर, अपने ऊपर होते इन मनमानियों से त्राण पाने के लिए देखा भी होगा...लेकिन हुआ क्या..? हुआ यह कि, ये महाशय ज्ञानी-ध्यानी सम्मान के भूखे "ब्राह्मण" सम्मान पर बिक गए..क्योंकि अकर्मी-विकर्मी या छल-छद्मी जैसे लोग इन ज्ञानियों को विधिवत किसी आसन पर आसीन करा इनके पाँव पखारते हुए थाल में रोली-चंदन-अक्षत सजाकर चढ़ावे के साथ इनके माथे पर टीका लगाने लगे... और फिर इन ज्ञानियों का ज्ञान आशिर्वाद बन कर इन अकर्मी-विकर्मी और छल-छद्मियों पर ही फूटता रहा तथा यहीं पर इस सम्मान के समक्ष इनका ज्ञान मौन होता रहा। उधर मनमानियों के शिकार आमजन ऐसे "ब्राह्मणों" के ज्ञान से ठगे जाते रहे।
  3.            हाँ, होना तो यह चाहिए था कि इन ज्ञानी-ध्यानी "ब्राह्मणों" को अपने ज्ञान-शक्ति को, अकर्मी-विकर्मी तथा छल-छद्मियों की मनमानियों के शिकार लोगों के हाथों में हथियार बनाकर पकड़ा देना चाहिए था...लेकिन जो नहीं हुआ, बल्कि ये अपने "पूजनीयपने" में ही मस्त हो गए..! यही तो हुआ "ब्राह्मणवाद"..!!!
  4.           मतलब "ब्राह्मणवाद" और कुछ नहीं, बस किसी अत्याचारी-अनाचारी और छल-छद्मी की करतूतों को उजागर न कर उससे चढ़ावे के साथ अपने माथे पर रोली-चंदन-अक्षत का टीका लगवा लेना और इस सम्मान से गद्गद होकर उल्टे उसे ही आशिर्वाद देकर निर्भय बना देना है। 
  5.            मित्रों! इस "ब्राह्मणवाद" को किसी जाति-धर्म तक ही सीमित नहीं किया जाना चाहिए...यह प्रवृत्ति किसी भी समाज, संस्था या तंन्त्र में दिखाई पड़ सकता है...यह "ब्राह्मणवाद" ही है जो रोली-चंदन-अक्षत और चढ़ावा ग्रहण कर सब को मौन बना देता है..! और किसी पिछड़े क्षेत्र में यह प्रवृत्ति विशेष रूप से दिखाई पड़ती है। 
  6.            हाँ, एक बात और...जो "ब्राह्मणवाद" से प्रभावित नहीं होता मुखर होता है, उसके पग-पग पर काँटे बिछाये जाते हैं...कुछ कलम के सिपाही इसके शिकार हो जाते हैं और "ब्रह्मणवादी" लोग उन्हें अपने रास्ते से हटाने का प्रयास करते हैं। 
  7.               तो, अपने-अपने क्षेत्र के "ब्राह्मणवादियों" को पहचानिए...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें