शुक्रवार, 25 मई 2018

भाईचारे के उन्मूलन में भाईचारे के साथ सहयोग करे!!

         कानपुर की ओर जा रही बस पर मैं चढ़ लिया। बस की साठ परसेंट सीटे भरी थी। एक खाली सीट पर मैं बैठ गया। बस में बैठे यात्रियों पर एक नजर फिरायी। कंडक्टर मेरे पास आया..उससे टिकट बनवाया, मेरे दिए पाँच सौ के नोट से बाकी के रूपए उसने उसी समय नहीं लौटाए। वापसी वाला रूपया टिकट पर लिख दिया..हलांकि, बस में भीड़ नहीं थी, चाहता तो पैसा उसी समय लौटा सकता था। अब मुझे बस से उतरते समय पैसा वापस लेने की बात याद रखना होगा। खैर, बस कंडक्टरों का, बाकी के पैसे तुरंत न लौटा कर इसे टिकट के पीछे लिख देना, एक शगल जैसा बन गया है। 

       सड़क पर बस कूदते हुए चल रही थी, जबकि सड़क चिकनी थी। बस का पहिया या फिर उसका टायर गड़बड़ हो..टायर में गर्टर पड़ा हो...। वैसे, कूद-फाँद करती चलती यह बस खूब खड़खड़ भी कर रही थी..। बस के आगे एक ट्रक चला जा रहा था..उस ट्रक के साथ ही मेरी निगाह अपने बस-ड्राइवर पर भी पड़ी! सोचने लगा, "देखो यह ट्रक को ओवरटेक कर पाता है या नहीं..क्योंकि बस की कंडीशन ऐसी नहीं लगी कि वह ट्रक को पार कर पाए...बस-ड्राइवर सिर पर कैप लगाए हुए था, लेकिन पता नहीं क्यों..!  हो सकता है कैप लगाना उसका शौक हो..। आखिर ड्राइवर ने ट्रक को ओवरटेक कर ही लिया। इस दौरान बस कुछ ज्यादा ही खड़खड़ करने लगी।

          बस में बैठे-बैठे मैं ऊब रहा था, मोबाइल चलाने लगा..बस अब रुक-रुक कर चल रही थी, मने चलती फिर रुकती और फिर चल जाती टाइप से..नहीं-नहीं!  बस खराब नहीं थी...सड़क पर ट्रकों के कारण जाम लगा हुआ था..इस हाईवे पर ट्रक बड़े बेतरतीब और बेढब चलते हैं, जैसे देश में राजनीति चलती है..! पता नहीं कब..कहाँ..किस बात पर निरर्थक जाम लग जाए...बस में कोई कहता सुनाई दिया...देश के एक सौ पैंतीस करोड़ जागेंगे तभी देश की समस्याएँ हल होंगी। मैं सोच रहा था...क्यों जागें बेचारे ये एक सौ पैंतीस करोड़ लोग..? जागेंगे तो असुरक्षित नहीं हो जाएंगे.? मेरे हिसाब से जागा हुआ व्यक्ति अकेले होता है, और जो अकेला होता है, उसे कोई पूँछने वाला नहीं होता..! अभी तो कम से कम इन एक सौ पैंतीस करोड़ लोगों को अपनी जाति, धर्म, क्षेत्र के भाईचारे का सहारा तो मिल जाता है..!!! और अन्य बचे-खुचे लोग माल-पानी के साथ भाईचारा निभाते हैं..। तो, ऐसे में जागने की गुंजाइश एकदम खतम..! कुल मिलाकर अगर ये जागे, तो समझिए देश में भाईचारा खतम..!! अभी तो इसी भाईचारे से बहुत काम होते हैं.! एक तो यही कि, सबको अपने मन का करने की छूट मिलती है...यही भाईचारा देश में स्वतंत्रता की गारंटी भी है..!! अगर नहीं तो, कोई सिद्ध करके दिखाए इसे..!!! 

           बस रुकी थी..ककड़ी वाला आ गया, एकाध-दो ने उससे ककड़ी खरीदी, तब तक बस चल दी, ककड़ी वाला बस से उतर गया..बेचारा ढ़ग से बेच भी नहीं पाया..फिर खड़-खड़ करते हुए बस चलने लगी। कंडक्टर हाँथ में टिकट मशीन और कांधे पर बैग लिए अपनी सीट से खड़े होकर "घाटम पुर से कौन चढ़ा बस में.." कहते हुए मेरे बगल में आकर खड़ा हो गया। मेरे पीछे किसी का टिकट बनाकर "किसी का टिकट बाकी तो नहीं..?" कहते हुए जाकर अपनी सीट पर बैठ गया और अपने बेबिल पर बस-यात्रियों के आँकड़े भरने लगा। कंडक्टर चश्मा पहने हुए था। मेरा ध्यान मेरे आगे सीट पर बैठे महिला -पुरुष पर गया, वे लगातार आपस में बतियाये जा रहे थे, पुरुष बीच-बीच में अपना सिर खुजलाने लगता। हाँ..ऐसे ही जब पत्नी जी मेरे समक्ष कोई समस्या रखती हैं और मैं उसे नहीं सुलझा पाता, तो मैं भी अपना सिर खुजलाने लगता हूँ। अब तो बिना किसी समस्या के ही मुझे अपना सिर खुजलाते देख कह पड़ती हैं "कोई समस्या सुलझ नहीं पा रही है क्या..!" और मैं सिर खुजलाना बंद कर देता हूँ। 

             कंडक्टर की आवाज कानों में पड़ी "जिसका पैसा बाकी हो ले ले.." कंडक्टर के प्रति प्रशंसित भाव से मैंने सोचा...बेचारा बिना कहे पैसा लौटा रहा है..!! मैंने भी कंडक्टर से अपने बकाए के पैसे लिए...इस खड़खड़िया बस में खड़खड़-ध्वनि के सिवा बाकी शांति है...हलांकि, एक साथ बैठे रहने के अलावा यात्रियों के बीच कोई भाईचारा परिलक्षित नहीं हो रहा है..! एक बात तो है, अगर देशवासियों के बीच भाईचारा न हो, तो देश में बहुत शान्ति रहे..! देश में मचा चिल्ल-पों, शायद आपसी भाईचारे का ही परिणाम है..! मैं तो कहता हूँ, इस देश में भाईचारा अशान्ति का नहीं, जिन्दादिली का पहचान है..!! देश में अमन-चैन या कानून-फानून का पालन होते हुए देखने वालों को, मैं भाईचारे का दुश्मन मानता हूँ..!! आईए!  हम देश से भाईचारे को नहीं कानून-फानून को मिटाएँ..। अगर ऐसा नहीं करेंगे, तो देश से भाईचारा मिटने का भय रहेगा..!! 

            बस के पीछे से टीं-टीं की एक तीखी आवाज कानों में पड़ती है। किसी तरह पास मिलने पर वह बस के आगे आ गई..अपने हार्न के मुताबिक वह "साबुनदानी" ही थी..अकसर ट्रक वाले मारुति की छोटी कारों को "साबुनदानी" ही कहते हैं। इधर बस में थ्री सीटर पर मैं अकेला बैठा था..कमर में हलके दर्द का अहसास होने पर मैं किसी का लिहाज किए बिना उस पर लेट जाता हूँ...वाकई, यहाँ सब को अपनी ही दर्दानुभूदि की पड़ी है..! इन्हीं वजहों से अपने देश में एक-दूसरे का लिहाज करना भी खतम हो रहा है..।

          बस कूदते हुए चली जा रही है और लेटे-लेटे ही मैं, देश में व्याप्त भाईचारे की चिन्ता में निमग्न टाइप का हो रहा हूँ...इधर क्या है कि कुछ असामाजिक तत्व देश में व्याप्त भाईचारे को समाप्त करने का कुचक्र रचते प्रतीत हो रहे हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता, सरकार भी भाईचारे के बल पर ही चलती हैं..!! ये नाहक ही सरकार के दुश्मन बनते हैं..! सरकार में रहते हुए वहाँ भाईचारे की भावना से जो काम नहीं करते सरकार दुश्मनी वश ही उन्हें बाहर का रास्ता दिखा देती है..! अलबत्ता कोरट-कचहरी और मीडिया-फीडिया भी कभी-कभी भाईचारे और सरकार दोनों के दुश्मन बनते प्रतीत होते हैं..! और सरकार को भाईचारे के खिलाफ कर देते हैं...! मजबूरन सरकार को भी भाईचारे का दुश्मन बनना पड़ता है..लेकिन, ई कोरट-कचहरी और मीडिया-फीडिया में भी तो भाईचारा का कीटाणु घुस रहा है..!! और ये भी भाईचारे के संरक्षण हेतु सन्नद्ध हो जाते हैं.. 

           चलती बस का पूरा डल्ला-पल्ला हिल रहा था..! बस के खड़खड़ेपना से कुछ ज्यादा ही परेशान होकर मैंने सोचा, "कहीं ई खड़खड़िया बसवऊ न, भाईचारे की देन हो.." और इस विचार के साथ ही भाईचारे से आतंकित होते हुए मैंने सोचा..इस भाईचारे ने तो देश को खड़खड़िया बना दिया है...एक बात बताना जरूरी हो जाता है, कुछ नहीं तो कम से कम आपको सावधान करने के लिए ही...जब कहीं बहुत ज्यादा ही "भाई-भाई" गूँजता हुआ सुनाई पड़े, तो निश्चित मानिए वहाँ भाईचारे का अन्डरवर्ल्ड टाइप से पूरा कुनबा होता है..! फिर यहीं पर भाइयों के भाई भी तो होते हैं..!! 

            बस चली जा रही है...निश्चित ही मुझे यह झकरकट्टी बस अड्डे तक पहुँचा देगी.. फिर तो लखनऊ पहुँचा ही समझिए..! मैं यही सोच रहा था कि एक बार फिर जाम से बस का चक्का जाम हो गया..! यह जाम में फंसे एक दूसरे से भाईचारा निभाते हुए इत्मीनान से खड़े थे कि तभी मेरा बस-ड्राइवर किसी ट्रक-ड्रावर को गरियाने लगता है..! मन ही मन मैं बस-ड्राइवर के हिम्मत को दाद देता हूँ..वह साथ वह ड्राइवरी के भाईचारे से मुक्त हुआ तो बस का पहिया भी थोड़ा ढीला हो गया और उचकते हुए बस चल पड़ी...इधर आप भी मेरी इस बस-यात्रा में मेरे साथ खूब भाईचारा निभा चुके हैं, अगर आपको भी कहीं पहुँचना है तो, इस संदेश के साथ बस से उतर लीजिए, कि "इस देश को गति देने के लिए देश से भाईचारे के सम्पूर्ण उन्मूलन हेतु भाईचारे के साथ आपस में सहयोग करें...!!!"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें