शनिवार, 3 अगस्त 2019

अभिभूतिकरण

        घिसई अकसर नेताओं के भाषणों को "आरत के मन रहई न चेतू" टाइप से आब्जर्व करता है और उसी में अपना भाग्य तलाशता है। कभी-कभार मिलने पर इन भाषणों का जिक्र वह मुझसे जरूर करता है, और मैं इन बातों के बीच में छिपे पप्पू-गप्पू-पन से उसे परिचित भी कराता रहता हूँ। असल में क्या है कि डरता हूँ, आम आदमी से भी गया गुजरा अपना यह घिसई कहीं ऐसे भाषणों से अभिभूत होकर चकरघिन्नी में न फंस जाए..! क्योंकि यह चकरघिन्नी बड़ी रोमांटिक चीज होती है। 

        उस दिन गरीबों को जागरूक करने में लगे किसी स्वयंसेवी संस्था के एक नेतानुमा पदाधिकारी सामने बैठे घिसई टाइप आदमियों को समझाते हुए बोल रहे थे, "बोलो, योजनाओं की जानकारी लोगे कि नहीं..बोलो.." और  हुंकार के उठते समवेत स्वर के साथ उनसे नारा लगवाते, "जोर से बोलो..भारत माता की जय।" पहले तो "योजनाओं की जानकारी" और "भारत माता की जय" के बीच का कनेक्शन समझ में नहीं आया, लेकिन मैंने अहसास किया कि इस जयकारे के जस्ट बाद देशभक्ति की भावना में मेरा रोयाँ खड़ा हो चुका है! इस रोमांच के साथ ही मैं इन दोनों के बीच के कनेक्शन को जान गया। अब सभा विसर्जित होने के बाद नेता जी निश्चिंत होकर अपने पीछे 'भारत माता' को छोड़ जाएंगे, जो अपने इन लालों पर कृपा बरसायेगी। मतलब उन नेता जी की बातों से मैं भी अभिभूत था। तो, ऐसेई होता होगा अभिभूतीकरण और अभिभूतावस्था.!! 

          घिसई भी कभी-कभी भाषण सुन लेने के बाद ऐसा ही अभिभूत हुआ रहता है, तब उसका भूत उतारना मुश्किल होता है, और जब-तब समझाने के दौरान मुझसे कह बैठता है, "गुरू..तुहूँ पार्टीबंदी में फंसि गवा ह्यअ.." इसपर कहने को तो मैं उससे यह भी कह सकता हूँ, "मिस्टर घिसई जी..बुद्धिजीवियों की बुद्धि दरअसल पार्टीबंदी में पड़ने पर ही खुलती है, और तभी उनकी बुद्धि की गहराई का पता चलता है" लेकिन कहता नहीं, क्योंकि घिसइया ऐसी बातों को समझ ही नहीं पाएगा। हालाँकि मेरी पत रखने के लिए वह हाँ-हूँ के अंदाज में मूंड़ी जरूर हिलाता रहता है, खैर। 

           आज मिलते ही वह बोल पड़ा था, "गुरु अब तउ ई सरकार बदलै क पड़ी।" इस बात में उसकी दृढ़ता देख मैं समझ गया कि अपनी अभिभूतावस्था में वह ऐसा बोल रहा है, क्योंकि उसकी एकदमै वाली आम-आदमियत उसे इतने दृढ़-निश्चय पर कभी नहीं पहुँचा सकती! हाँ, आजादी के इतने वर्षों बाद पैदा हुए बेचारे घिसई जैसों को आज भी निर्णय लेने के लिए अभिभूतीकरण की प्रक्रिया से गुजरना और गुजारना पड़ता है।      

        मैंने अभिभूतीकृत घिसई का भूत अपने आप उतरने तक, उसे कुछ भी समझाना व्यर्थ समझा और उससे पूँछा, "ऐसा क्यों!" 

         छूटते ही घिसई बोला-

        "अइसा एहि बदे कि गुरू, ई सरकार हमई लोगन के लिए घपलऊ-घोटालऊ नाहीं करइ देत बा, हमरे बेरोजगारी का तनिकऊ खियाल ई सरकार को नाहीं अहै..आसमानी घोटाला कइके बड़कवन को जरूर फायदा पहुँतावत बा..फिर तउ सरकार बदलै क पड़िबइ करी..!" 

          उसकी इन तल्ख बातों से मैंने अनुमान लगाया कि जरूर किसी नेता के भाषण से इसका अभिभूतीकरण सम्पन्न हुआ होगा। लेकिन इधर चुनावी-कार्यक्रम सम्पन्न हो जाने से नेताओं के भाषणबाजी की भी संभावना नगण्य थी। फिर भी मेरे दिमाग में आया कि इस देश के नेता चिर-चुनावी-मुद्रा बनाए रखते हैं, जैसे रनवे पर उड़ान भरने के लिए तैयार खड़ा कोई विमान ! हो न हो, ऐसे ही चुनावी-मोड में किसी चिर-ऐक्टीवेटेड-पर्सन टाइप नेता ने इस घिसई को अपनी बातों से अभिभूत कर दिया हो.!!

        खैर, मेरा अनुमान सही निकला, दरअसल वह एक नेता के लान में घास छिलायी का काम करके वापस आ रहा था। उन नेता जी ने अपने घर पर ही उसे अपनी बातों से अभिभूत कर दिया था। उन्होंने उसे समझाया था कि अगर सरकार घपले-घोटाले करने देती तो शहर में खाली पड़े अपने बड़े "पिलाट" में वे "बेल्डिंग" बनवाते और उस निर्माण कार्य में उसे यानी घिसई को कई महीनों का रोजगार दे देते। साथ में घिसई ने मुझे यह भी बताया कि "गुरू, ऊ बड़ा दयालू हैं, कह रहे थे, पिछली बार हमने अपने पैसे से वृद्धाश्रम बनवाए जहाँ बूढ़े होने पर तुम भी रहि सकत हो और गुरू...ऊ कह रहे थे कि वैकुंठ-धाम को इतना भव्य बनवाया है कि ऊँहा जाने पर बहुत शांति मिलेगी..!" घिसई के ही अनुसार, अंत में नेता जी ने उसे यह भी समझाया था, "देख घिसइया, तुझ जैसे लोग किरांतिकारी-एपरोच नहीं रखते हैं, इसीलिए भुगतते हैं, सरकार बदलो और अबकी बार बड़के-चुनाव में मुझे जिताओ, आखिर तुम्हारे जीने-मरने तक का खयाल हमहीं रख सकते हैं, बताओ हमसे बड़कवा धार्मिक कउन होगा..!"

        मुझे ध्यान आ गया, शायद ये वही नेता जी रहे होंगे जिन्होंने एक दिन अपने द्वारा किए गए कार्यों के उद्घाटन के अवसर पर अपनी उपलब्धियों को गिनाते-गिनाते वृद्धाश्रम और वैकुंठ-धाम की सुख-सुविधा और उसकी भव्यता का ऐसे बखान किया था कि जैसे, सामने बैठी जनता में जल्दी-जल्दी वृद्ध होकर वृद्धाश्रम जाने और फिर मरकर वैकुंठ-धाम की सुख-सुविधा भोगने की लालसा जगा रहे हों..!! मैंने देखा था, उनके पी.ए.जी यह भाषण सुनकर मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे।

      खैर, मैं समझ गया कि आज घिसइया का अभिभूतीकरण कस के हुआ है और इसपर से "किरांतिकारी-एपरोच" वाला भूत इतनी आसानी से उतरने वाला नहीं है, क्योंकि इसकी अभिभूतावस्था दीर्घकालिक स्वरूप धारण किए प्रतीत हो रही है। और अपने इन्हीं विचारों के साथ, उसे समझाए बिना मैंने अपनी राह पकड़ ली। 
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