मंगलवार, 10 सितंबर 2019

क्या बेवकूफी की बातें हैं!

         ऊपरवाला बड़ा करामाती होता है, नीचे वालों को नचाता रहता है। यह नीचे वाला बाकायदे बाजे-गाजे के साथ नाचता है। हालांकि यह ऊपरवाला कहीं नजर नहीं आता, इसके ऊपर होने का यही प्रमाण है कि हम इसे मानते हैं कि यह ऊपर है। कभी-कभी लोग हममें-तुममें सबमें इसके होने को प्रमाणित करते हैं, मतलब यह ऊपरवाला ऊपर-नीचे सबमें है। ऐसा हम इसे स्वप्रमाणित भी मानते हैं, हाँ इसके होने के लिए किसी प्रमाण की जरूरत नहीं, सोच लेने भर से यह सिद्ध हो जाता है, नहीं तो ऐसा हम सोचते ही न, कि यह है। इसीलिए इस जगती का प्रत्येक चिंतनशील प्राणी अपने तर्कों को अपना परम सत्य मानकर स्वीकार किए बैठा है। ये अंतहीन लत्तेरे की-धत्तेरे की बहसें, इसी ओर संकेत करती है कि मेरी बात मेरे दिमाग से निकली है, तो जरूर मेरी बात का अस्तित्व है, बाकी, सारा डिबेट बेवकूफ बनाने के लिए होता है। 
       
         अब होना और करामाती होना दो चीजें हैं, किसी के होने से ही वह करामाती सिद्ध नहीं होता। ऐसे तो सभी हैं, तो क्या सब करामाती हैं? नहीं हैं न ! तो करामाती होने के लिए ऊपर होना जरूरी है, ऊपरवाला ही करामाती हो सकता है। यह ऊपरवाला ही है, जो नीचे वालों को अपनी अंगुलियों पर नचाता है, भले ही उसकी अंगुलियाँ किसी ने न देखी हो। दरअसल नीचे वालों को तमाम व्याधियों से बचे रहने के लिए, ऊपरवाले की अनदेखी-अंगुलियों के इशारे पर नाचना ही होता है। एक बात है इस ऊपरवाले के चक्कर में ये नीचे वाले ऐसे झूमते-गाते हैं जैसे मनोरोगी!
       
         यह ऊपरवाला वाकई करामाती है, और नहीं तो इसकी माया के वशीभूत हम नाचते न। यह मनोरोग नहीं, मायामय हो जाना है, इसी से ऊपरवाले का अस्तित्व पहचान में आता है !! इस ऊपर वाले के चक्कर में एक बात कहना है, ऊपरवाले और नीचे वाले के बीच इस मनोरोग या यूँ कह लें माया का ही संबंध है। यह संबंध हमें वहां तक ले जाता है कि प्रत्येक ऊपरी चीज हमें इस ऊपरवाले से कम प्रिय नहीं होती। यही कारण है, सब इसके लिए नाचते हैं और इसको पाने के लिए ऊपरवाले का संरक्षण चाहते हैं, जो अदृश्य होते हुए भी अपने नीचे वालों को संरक्षित किए रहता है।
       
        कभी-कभी हमें यह भी आश्चर्य होता है कि जिसके लिए हम इतना कूदते-फांदते हैं, रोते-गाते-हँसते हैं, छीना-झपटी पर भी उतरते हैं , वह तो सिद्ध-असिद्ध से ऊपर की चीज है। वैसे भी ऊपर की चीजें सिद्ध-असिद्ध के पचड़े में नहीं लाई जा सकती। बस इसपर केवल नाचा या कूदा-फांदा जा सकता है, और इसे देखकर ही ऊपरी-तत्त्व के अस्तित्व का अनुमान किया जा सकता है, क्योंकि ऊपर की हवा जिसे लग जाती है, उसकी हालत विचित्र हो जाती है।

           आजकल सकल हिन्दुस्तान को ऊपर की हवा लगी हुई है। सभी को दिव्य अनुभूति प्राप्त हो रही है, सब नाच-गा और कूद-फांद रहे हैं। बड़ी विचित्रता है अपने हिन्दुस्तान में !  एक अजीब सा आध्यात्मिक भाव पसर आया है हिन्दुस्तान में !! हां बड़ा शोर है यहां, कुछ भी पकड़ में नहीं।

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