गुरुवार, 26 अगस्त 2021

रिश्तों का डिजिटलाइजेशन

        नया साल आ गया। आधी रात से लेकर लगभग शाम तक शुभकामनाओं का रेलमपेल लगा रहा। वैसे बचपन में तो नहीं, लेकिन जब कालेज लगभग छोड़ चुका था, तब पता चला था कि न‌ए साल में ग्रीटिंग-कार्ड दिया जाता है। लेकिन वह जमाना भी कब का बीत चुका है। भ‌ई, एक बात यह भी है अब कोई जमाना ज्यादा समय तक ठहरता ही नहीं! जमाना आया नहीं कि गया। बल्कि मैं तो कहूं जमाना भी अब सरपट भाग रहा है जैसे कि आदमी भागता है! आखिर आदमी से ही तो जमाना है। पल-पल छिन-छिन बदलते आदमी का कोई ठिकाना नहीं तो जमाना ही अपना ठिकाना क्यों बनाए? इसीलिए जमाना भी आया नहीं कि सरपट भागते हुए 'क्या जमाना था' में बदल जाता है, खैर।

          तो ग्रीटिंग कार्ड सजाने-सजने का जमाना चला गया और आया मैसेज का! हां मैसेज का!! न रंग लगे न फिटकरी और रंग चोखा। वैसे मैं नहीं जानता कि फिटकरी का चोखे रंग के साथ क्या ताल्लुक है। लेकिन मुहावरा है सो इसे लिखने में यूज कर लिया। मतलब यही कि बढ़िया से बढ़िया मैसेज रेडीमेड मिल जाता है, इसके लिए बेचारे हृदय को परिश्रम करने की अब जरूरत नहीं होती और वैसे भी आजकल के लोगों का हृदय भी कमजोर होता है, इससे जितना कम से कम काम लिया जाए उतना ही स्वास्थ्यवर्धक है। जबकि पहले ग्रीटिंग-कार्डों की दुकान पर जाना उनमें से बढ़िया ग्रीटिंग छांटना और फिर संबंधित तक इसे पहुंचाने में पर्याप्त जहमत उठानी होती थी। आज प्रदूषण के जमाने में इतनी तिकड़म भी स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता। खैर फिर बेहतरीन आप्सन के रुप में आया मोबाईल मैसेज का जमाना। इसमें मैसेज लिखने के लिए दिल और दिमाग को एक बार यूज कर उसे बहुतेरे स्वजनों को एक साथ फारवर्ड कर देने की सुविधा भी मिली। तब ये मैसेज भी किसी को बासी नहीं लगता था और लगे क्यूं? क्योंकि इसमें 'फारवर्डेड' का पता नहीं चलता था। मैसेज पाने वाला बेचारा मात्र इसे अपने लिए भेजा हुआ मानकर प्रेषक के वर्जिनल प्रेम से अभिभूत हो जाया करता था।

           लेकिन वह क्या जमाना था! और आज व्हाट्सएप का जमाना आ गया है। अब तो रेडीमेड बने-बनाए संदेश के ऐप भी बन चुके हैं, बस थोड़ी मेहनत कीजिए एक से एक ब‌ढ़िया संदेश या कहें बात, नहीं तो विचार ही कह लीजिए, मिल जाएंगे और व्हाट्स ऐप पर कापी पेस्ट कर अपने मित्रों-सुहृदयों को भेजते जाइए! मतलब शुभकामनाएं और मंगलकामनाएं लिखने के झंझट से भी मुक्ति! कहने का आशय यह है कि आज के महान तकनीकी दौर में डिजिटलाइज्ड मंगलकामनाएं और शुभकामनाएं उपलब्ध हैं जो सुहृदों के हृदय को सुहृदय बनाने के काम आती हैं। गजब का यह संबंधों के डिजिटलाइजेशन का जमाना है। लेकिन इसमें एक ख़तरा बस यही है कि थोड़ी सावधानी की जरूरत होती है क्योंकि 'फारवर्डेड' से आपका कोई अति संवेदनशील साहित्यिक टाइप का इष्ट-मित्र आपके 'फारवर्डेड' संदेश को "प्रकृति के यौवन का श्रृंगार/ करेंगे कभी न बासी फूल" जैसे साहित्यिक भाव से ओवरलुक न कर दे। आखिर ताज़गी तो सबको चाहिए ही होती है।

         लेकिन आजकल के डिजिटलाइजेशन युग में संदेशों के आदान-प्रदान में परफेक्ट टाइमिंग का ख़्याल रखना चाहिए। मतलब किसी के डिजिटलाइज्ड सुख-दुख में तत्काल शरीक हो लेना चाहिए। ऐसा इसलिए कि एक बार मेरी नज़र एक फेसबुकीय फ्रेंड के पोस्ट पर पड़ी जिसमें किसी अतिप्रिय स्वजन के शोक में उनका इज़हार-ए-दुख कुछ ऐसा था कि उनके लिए यह पूरा संसार निरर्थक और बेमानी हो चला था। उनके दुख की इस घड़ी में साथ देने के लिए मैंने दुख में दुखी होने वाले एक सांत्वनापरक संदेश को गूगल से खोजकर कापी किया और उन दुःखी हृदय आत्मा के वाल पर पेस्ट करने ही जा रहा था कि मेरी दृष्टि उनके एक लेटेस्ट पोस्ट पर पड़ी, जिसमें वे डांस टाइप की मुद्रा में किसी पार्टी में मिले 'इंज्वॉय' का बखान करते हुए गौरवान्वित फील कर रहे थे। अब बताइए! मेरा हृदय कौन सी मुद्रा धारण करता? उन्हें सांत्वना देता या कि उनकी डांस मुद्रा के साथ मैं भी गौरवान्वित फील करता? कुछ डिसाइड न कर पाने की स्थिति में चुपचाप उनकी वाल से खिसक लेने में ही मैंने भलाई समझा। ठीक यही स्थिति डिजिटल प्लेटफार्म पर खुशी जाहिर करने वाले भी पैदा कर सकते है।  

           खैर, आजकल के क्षणजीवी इंसान के मनोभाव भी इस डिजिटल जमाने के साथ तालमेल बैठाने के लिए तैयार है। विकासवाद की सर्वाइवल आफ द फिटेस्ट की थियरी एकदम फिट बैठ रही है, क्योंकि इस ज़माने में युगानुरूप आदमी का हृदय आटोमेटिकली डिजिटलाइज्ड हो चुका है! इसीलिए उसके मनोभाव भी  डिजिटली ढंग से प्रवाहित होते हुए कट-पेस्ट की सुविधा का लाभ ले रहा है।  

         लेकिन मोबाइलीकरण के इस ज़माने में आदमी को तकनीक और वह भी कम्प्यूटर का ज्ञान होना बेहद जरूरी है। अन्यथा मानवीय संबंधों के निर्वहन में वह फिसड्डी साबित होगा। फिर भी इस ज्ञान का प्रयोग सावधानी से करना चाहिए। नहीं तो टच-बोर्ड आपके संबंधों को दूसरा आयाम भी दे सकता है। क्या है कि मनोभावों के इमोजीकरण के दौर में एकबार एक सुहृद मित्र ने मेरे उज्ज्वल भविष्य की कामना के साथ मुझे एक बेहद खूबसूरत संदेश भेजा। उसे देखते ही मैं आह्लादित हो गया और आव देखा न ताव विनीत भाव से उन्हें धन्यवाद ज्ञापित करने के लिए उतावला हो उठा। इस उतावलेपन में धोखे से टचस्क्रीन पर अंगुली एक बेहद गुस्से से लाल चेहरे वाली इमोजी पर टच कर गया और वह इमोजी सेंट भी हो गई। उस समय बड़ी असहज स्थिति का सामना करना पड़ा था मुझे! तबसे उनसे अपने लिए खूबसूरत मैसेज पाने के लिए तरस गया हूँ। दूसरी बार ऐसी ही एक और गलती मैंने एक अन्य मित्र के साथ किया। उन बेचारे ने अपनी सफलता का बखान करते हुए एक संदेश डाला। उनके साथ अपने संबंधों को उच्च आयाम पर पहुंचाने के लिए उनकी इस सफलता पर उन्हें तत्काल बधाई संदेश भेजने की आवश्यकता को महसूसा, लेकिन जल्दबाजी में मोबाइल के टच-स्क्रीन को ऐसा टच किया कि उनके खुशी के इस अवसर पर जार-जार आंसू बहाने वाला इमोजी सेंट कर दिया। मुझे अपनी इस गलती का अहसास होता उसके पहले ही मेरी वह दुखी होने वाली इमोजी उनके द्वारा 'सीन' भी हो चुकी थी! मेरी एक चुटकी बेवकूफी से मित्रता दांव पर लग गई।  

           वैसे हर ज़माने के ख़तरे भी अपनी तरह के ही हैं। लेकिन इन खतरों के पार हमारे डिजिटलाइज्ड सोशल मीडियायी संबंध लाइव रहने चाहिए। हां इतना ज़रूर है कि नव वर्ष पर शुभकामना संदेशों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन कर इन्हें वर्गीकृत किया जा सकता है। जैसे कि साहित्यकार और उसमें भी व्यंग्यकार का संदेश, श्रेष्ठ-जनों या विशिष्ट-जनों का संदेश, साहब का मातहत के लिए या मातहत का साहब के लिए, मतलब निकालने वाला, दोस्ती जताने वाला, औपचारिक-अनौपचारिक आदि-आदि टाइप से! 

         इस लेख को पाठक-गण कृपया दिल पर न लें बल्कि संदेशों का आदान-प्रदान करते रहें और इनका मज़ा लें। यह दुनिया है जमाना तो बदलता ही रहेगा।

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