रविवार, 16 अप्रैल 2017

नाहक ही जान चली गई!


        आज सुबह टहलने निकला तो देखा गायें, आराम से बैठी पगुरा रहीं थी, लगा इनका पेट भरा हुआ है। ये अन्ना जानवर हैं, मतलब इनका कोई मालिक नहीं या फिर इन्हें ऐसे ही लोग भटकने के लिए छोड़ देते हैं। इधर क्या है कि बुंदेलखंड में अन्नाप्रथा जोरों पर प्रचलित है, गौवंशीय पशुओं को लोग छुट्टा छोड़ देते हैं। यह एक तरह से सामाजिक कुप्रथा का रूप धारण कर चुका है। हमारे पूर्वांचल जौनपुर में, हम बचपन से जिस पशु का कोई राजी-गहकी न हो ऐसे पशु को बहेतू पशु कहते आए हैं। ये अन्ना पशु, बहेतू टाइप के ही पशु होते हैं।

         तो, इधर बुंदेलखंड में खेत अब धीरे-धीरे खाली हो चले हैं, फसलें कट चुकी हैं। इन बेचारे अन्ना गौपशुओं को चरने के लिए कम से कम फसल से खाली हुए खेत मिलने लगे हैं, नहीं तो, अभी कुछ दिन पहले झुंड के झुंड अन्ना पशुओं को कोई न कोई इनसे अपनी फसलों को बचाने के चक्कर में इधर से उधर हांकता दिखाई पड़ जाता। खैर आज ये यहाँ बैठे आराम से पगुराते दिखे। इन गौपशुओं को देखते ही मुझे ध्यान आया, कल की ही बात है, जब एक व्यक्ति मुझे बता रहा था, उसके मुहल्ले में एक पंडितजी हैं जो अपनी गाय को एक रोटी खिलाकर दूध दुह लेते हैं, इसके बाद उसे अन्ना पशु की तरह छोड़ देते हैं, और अगर वह गाय बेचारी जाना नहीं चाहती है तो पंडित जी उसके ऊपर पानी छोड़कर उसे जाने पर मजबूर कर देते हैं। यह उनका रोज का काम है, और वह गाय बेचारी दिनभर अन्ना पशु बनकर भटकती रहती है। खैर..
           
           मैंने कई बार यहाँ के लोगों से पूर्वांचल के बारे में बताया कि हमारे यहां जौनपुर में गौवंशीय पशुओं के प्रति ऐसी कोई कुप्रथा नहीं है। कोई अपनी गाय चाहे वह दुधारू न भी हों, फिर भी उन्हें पालते हैं, गौ-सेवा करते हैं। मुझे याद है बचपन में यदि कभी हमारे खेत में कोई छुट्टा जानवर फसल को नुकसान पहुँचाता मिलता तो हम उसे गांव के दूसरे छोर पर हाँक आते थे।

           इस बार अपने गाँव जाने पर मैंने बुंदेलखंड के अन्नाप्रथा की चर्चा करते हुए जब कहा कि अपने यहाँ ऐसी कोई प्रथा नहीं है और इसीलिए कोई छुट्टा गौवंशीय पशु दिखाई नहीं पड़ता, तो मुझे बताया गया, "अरे ऐसा नहीं है यहाँ भी लोग अब अपने बेकार हुए गौपशुओं को छोड़ देते हैं, जो फसलों को बहुत नुकसान पहुँचाते हैं, इन पशुओं को हाँक कर फला जगह की बाउंड्री में कर दिया जाता है, वहाँ ऐसे ही जब चार-छह पशु इकट्ठे हो जाते हैं तो फिर वहीं से उन पशुओं को बाहर भेज दिया जाता है इसके लिए पांच-छह हजार रुपये वे उठवाने के ले लेते हैं।" मैं सुनकर दंग हो गया था, सोचा यहां का अन्नाप्रथा तो बुंदेलखंड से भी क्रूर है, कम से कम बुंदेलखंड में ऐसा होता तो नहीं दिखाई देता। यहां हांकने, और पशुओं को चोरी से किसी छोटी गाड़ी में पैसों के लालच में भरकर ले जाने देने वाले सभी गौ को माता कहने वाले लोग ही होते हैं।

          उस दिन टीवी पर राजस्थान में गौ तस्कर के नाम पर एक हत्या पर परिचर्चा को देखकर सोचा था, कि इस बात को आपसे शेयर करुँगा, उस बेचारे की नाहक ही जान चली गई! लेकिन फिर भूल गया। सुबह गायों को पगुराते देखकर यह बात याद हो आई।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें