शुक्रवार, 23 जून 2017

योगा-वोगा

           आज बहुत दिन बाद स्टेडियम की ओर टहलने निकला था... लगभग पौने पाँच बजे..! वैसे तो रोज ही टहलने का प्रयास कर लेता हूँ, लेकिन जब स्टेडियम जाने का मन नहीं होता, तो अपने आवासीय परिसर में ही कुएँ की मेढक की भाँति कई चक्कर काट लेता हूँ...
          आवास से निकलते ही पता चला कि देर रात बारिश भी हुई थी, क्योंकि परिसर पूरी तरह भींगा हुआ था। इस बारिश से मन को थोड़ी खुशी हुई... स्टेडियम की ओर जाते हुए मुझे दादुर के टर्राने की आवाज सुनाई पड़ रही थी...मैंने ध्यान दिया, एक खाली पड़े प्लाट की जमीन में, बारिश से हुए जलजमाव के बीच से यह आवाज आ रही थी...हाँ, याद आ गया...बचपन में ऐसे ही पहली बारिश के बाद छोटे-छोटे गड्ढों और तालाबों से मेंढकों के टर्राने की आवाजें खूब सुनाई दिया करती थी...बड़ा अद्भुत अहसास होता था...लगता था...इस धरती पर हमारे साथ कोई और भी है..! लेकिन धीरे-धीरे आज हम अकेले होते जा रहे हैं...हमारे कृत्यों से धरती पर यह जीवन सिमटता जा रहा है...जीवन के स्पेस कम हो रहे हैं, उस पर तुर्रा यह कि, हम ब्रह्मांड में जीवन खोज रहे हैं...! खैर...हमारे एक फेसबुक मित्र श्री Rakesh Kumar Pandey जी हैं.. प्रकृति के प्रति उनकी अनुभूतियाँ बहुत ही गहरी हैं...उन्हीं की रचनाएँ पढ़कर, हम भी बदलते मौसम या प्रकृति के आँगन में, गुजारे अपने बीते पलों की यादें ताजा कर लेते हैं... 
          हाँ तो, स्टेडियम पहुँच गए थे....यहाँ भी बगल के गड्ढों से वही मेंढकों के टर्राने की आवाजें आ रही थी...तथा..ऊपर आसमान में उड़ते हुए टिटहरी की "टी..टुट.टुट.." की आवाज सुनाई पड़ी...साथ में कुछ अन्य पक्षियों की चहकने की भी ध्वनियाँ सुनाई पड़ने लगी थी जो, सुबह के खुशनुमा अहसास को द्विगुणित किये दे रही थी...एक बात है..! योगा-वोगा तो करते रहिए, लेकिन जरा सुबह-सुबह निकल कर टहल भी लिया करिए...मजा आएगा...!! 
           टहल कर लौटे..चाय-वाय पीते हुए मोबाइल चेक कर रहे थे, तभी घर से फोन आ गया... मैंने तुरन्त रिस्पांस दिया...असल में सुबह फोन मैं बहुत कम उठा पाता हूँ, बाद में मिस्ड हुई काल देखकर फोन करना पड़ता है...तब डाट भी खानी पड़ती है...फिर उधर से पूँछा गया, "आज बड़ी जल्दी फोन उठ गया..!" मैंने मारे डर के यह नहीं बताया कि फेसबुक चेक कर रहा था, मैंने उन्हें यही बताया कि "एक हमारी दोनों बच्चों के साथ की बहुत पुरानी तस्वीर, हमें देखने को पहली बार मिली है...वही देख रहा था.." फिर उलट कर मैंने ही पूँछा, "वह तस्वीर कब की होगी..?" मुझे बताया गया कि "जब हमारा छोटा बच्चा एक माह का था, शायद तब खींची गई थी.." बेचारी ये महिलाएं..! इन्हें बड़ी आसानी से बरगलाया जा सकता है.. ये आसानी से भुलावे में भी आ जाती हैं.. खैर.. 
            घर से फिर बात होने लगी...उन्होंने कहा, "ये योग के चक्कर में यहाँ लखनऊ में करोड़ों रूपए बर्बाद कर दिए गए...बाद में इसकी भरपाई कहीं गैस के दाम बढ़ाकर करेंगे या अन्य टैक्स बढ़ा देंगे..ये सब ऐसे ही जनता की भावनाओं से खेलते हैं..! लेकिन, अब सब समझदार हो रहे हैं... बनारस की दशा वैसी ही है.. कोई खास सुधार नहीं...गाड़ियां वैसे ही सड़क पर हिचकोले ले लेकर आगे बढ़ रही थी... वहाँ घाट पर खड़ा वह लड़का कह रहा था...कि...अभी तक 2019 तक बनारस को ठीक कर देने की बात कही जा रही थी...अब 2024 की बात कही जाने लगी है...लेकिन..जनता इतनी बेवकूफ नहीं है" हाँ, श्रीमती जी बनारस, बाबा विश्वनाथ के दर्शन करके आई थी...वही बता रहीं थीं... वैसे, बेचारी इन औरतों को अपने चूल्हे-चक्के की कुछ ज्यादा ही चिन्ता होती है... खैर.. 
         इधर योग को भी एक सरकारी कार्यक्रम जैसा बना दिया गया...डर लगा, कहीं यह योग भी, कोई "योजना" न बन जाए...!! याद आया उस दिन योग कार्यक्रम में अंत में मुझे इसपर कुछ बोलने के लिए कहा गया... मैं ढंग से नहीं बोला था.. क्या बोलता.. अगर कहता "कर्म में कुशलता ही योग है" तो वहाँ उपस्थित तमाम "योगी-जन" अपने अब तक करते आए काम को, और कुशलता से करने लगेंगे..! और अगर कहता "योग चित्तवृत्तियों का निरोध है" तो ये "योगी-जन" अपने अन्दर की रही-सही, बाकी थोड़ी बहुत संवेदना के लिए भी निरोधात्मक उपाय करना शुरू कर देंगे, और भोगेगी बेचारी यह वियोगी जनता..!! इसीलिए, मैं योगोपरान्त दिए गए अपने वक्तव्य में ऊल-जुलूल ही बकता रहा...हाँ आज की सुबह इन्हीं बातों में गुजरी...लेकिन आप इन बातों को लेकर अपना मूड खराब मत करिए... अब धूप तेज हो चुकी है...अगर सुबह टहलने न निकले रहे हों तो, घर में बैठे-बैठे ही योगा-वोगा कर डालिए...बाकी सब चलता है... टेंशन काहे का.... 
          #सुबहचर्या 
           23.6.17

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