बुधवार, 30 मार्च 2022

बदलता भारत

       अभी हाल ही में टीवी पर मैं भारत में प्रस्तावित और निर्माणाधीन आर्थिक गलियारे पर एक रिपोर्ट देख रहा था। इसे देखते हुए मैंने भविष्य में भारतीय अर्थव्यवस्था के स्वरूप और विश्व में उसकी आर्थिक हैसियत की कल्पना कर रहा था। यहां इस आर्थिक गलियारे की चर्चा हम बाद में करेंगे पहले प्रधानमंत्री मोदी के 2019 में देखे उस विजन की बात करते हैं, जिसमें उन्होंने 2024-25 तक भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर और विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने की कल्पना की थी। लेकिन लगता है इसकी तैयारी उन्होंने 1 जनवरी 2015 से ही नीति आयोग (National Institution For Transforming) के गठन के साथ ही प्रारंभ कर दिया था। क्योंकि बदलते वैश्विक अर्थव्यवस्था में योजना आयोग की भूमिका कम हो रही थी। अब आवश्यकता एक ऐसे थिंक टैंक की थी जो मानव विकास के विभिन्न आयामों के साथ एक स्थिर विकास की आकांक्षा को पूरा करने के लिए नवीन अवधारणात्मक दृष्टिकोण देने के साथ उसे क्रियान्वित भी करा सके। नीति आयोग ने अपने गठन के साथ ही इसपर काम करना आरंभ कर दिया था। नीति आयोग का उद्देश्य राष्ट्रीय विकास की प्राथमिकताओं को तय करने के साथ ही वंचित समाज के कमजोर वर्गों पर विशेष ध्यान देने का था। इसके लिए आवश्यक था कि दीर्घावधि के लिए नीति तथा कार्यक्रम विकसित करने के साथ साथ एक न्यायसंगत विकास का ढांचा खड़ा करने पर काम किया जा‌ए। इस प्रकार नीति आयोग ने बदलते समय के अनुसार भारत के विकास एजेंडा का कायांतरण करने की भूमिका में आया।

        भारत के कायांतरण के लिए तथा वैश्विक अर्थव्यवस्था से तालमेल और प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए आधारभूत ढांचे के विकास के साथ रोजगार के अवसर बढ़ाने और विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए अनुकूल औद्योगिक वातावरण तैयार किए जाने की आवश्यकता थी। इसके लिए आर्थिक गलियारा निर्माण की नीति अपनाई गई है। इस नीति के क्रियान्वयन से भविष्य में भारत को ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने और समग्र विकास का रास्ता प्रशस्त होगा तथा इससे कौशल विकास, रोजगार के अवसर बढ़ने के साथ ही साथ औद्योगिक क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा भी बढ़ेगी। 

       विश्व के कुछ प्रमुख औद्योगिक गलियारों पर यदि दृष्टि दौड़ाएं तो आर्थिक रूप से समृद्ध देशों में उनकी अर्थव्यवस्था में आर्थिक गलियारे का महत्वपूर्ण योगदान है। जैसे अमेरिका में 500 मील का बोस्टन-वाशिंगटन आर्थिक गलियारा दुनिया का सबसे लोकप्रिय आर्थिक गलियारा है। अकेले इस कॉरिडोर से कुल 3.7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का आर्थिक उत्पादन होता है, जो जर्मनी के सकल घरेलू उत्पाद और संयुक्त राज्य अमेरिका के सकल घरेलू उत्पाद के 19-20% के बराबर है। यहां तक ​​​​कि संयुक्त राज्य अमेरिका में इस तरह के सबसे छोटे गलियारों में, 29-मील डेनवर-बोल्डर औद्योगिक गलियारा, आर्थिक उत्पादन में 256 बिलियन डॉलर का उत्पादन करता है। आज 13.2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के आर्थिक उत्पादन पर, संयुक्त राज्य अमेरिका में बारह औद्योगिक गलियारे चीन के सकल घरेलू उत्पाद का 86.8% हिस्सा हैं। इसी तरह जापान में ओसाका और टोक्यो को जोड़ने वाला 1,200 किलोमीटर का कॉरिडोर अकेले जापान के सकल घरेलू उत्पाद का 80% हिस्सा है।

        कहा जाता है कि अर्थव्यवस्था में हर मील का पत्थर अतीत से उपजता है, अर्थात पूर्व की आर्थिक नीतियों की नींव पर बड़ा लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। भारत में औद्योगिक गलियारे की पृष्ठभूमि वर्ष 2007 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित दिल्ली मुंबई औद्योगिक गलियारा परियोजना की स्वीकृति के साथ ही पड़ गई थी और यह परियोजना 2011 में प्रारभ हुई। लेकिन इस क्षेत्र में तेजी तब आई जब इसे एक नीतिगत विषय मानकर वर्ष 2016 में "राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा कार्यक्रम" के रूप में एक व्यापक योजना पर कार्य शुरू हुआ। औद्योगिक आर्थिक गलियारा एक आर्थिक पारिस्थितिकी तंत्र है जो परिवहन गलियारे के चारों ओर विकसित किया जाता है। इसके पीछे निवेश आकर्षित कर रोजगार के अवसर सृजित करना, सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र के योगदान को बढ़ाना, समान औद्योगिकीकरण और शहरीकरण को बढ़ावा देना तथा श्रम उत्पादकता और आय के स्तर में वृद्धि जैसे उद्देश्य थे। निश्चित रूप से, आर्थिक गलियारों के पूर्ण होने पर भारत में औद्योगीकरण और नियोजित शहरीकरण के साथ समावेशी विकास को बढ़ावा मिलेगा।  

          वर्तमान में, 11 औद्योगिक गलियारा परियोजनाएं हैं जिनमें से भारत सरकार ने पाँच औद्योगिक गलियारा परियोजनाओं के विकास को मंज़ूरी दे दी है, जिन्हें राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास और कार्यान्वयन ट्रस्ट (National Industrial Corridor Development and Implementation Trust- NICDIT) के माध्यम से क्रियान्वित किया जा रहा है। भारत के प्रमुख आर्थिक केंद्रों को जोड़ने वाले ये पांच प्रमुख आर्थिक गलियारे हैं, 1. दिल्ली मुंबई औद्योगिक गलियारा (डीएमआईसी 1504 किमी),। 2. चेन्नई बेंगलुरु औद्योगिक गलियारा (सीबीआईसी 560 किमी), 3. बेंगलुरु-मुंब‌ई आर्थिक गलियारा (1000 किमी), 4. विजाग- चेन्नई आर्थिक गलियारा (800 किमी), 5.अमृतसर कोलकाता औद्योगिक गलियारा (एकेआईसी 1839 किमी)। इन पर "राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा कार्यक्रम" योजना के रूप में समग्र स्वीकृत कोष 20,084 करोड़ में रु में से अब तक 6,115 करोड़ का उपयोग किया जा चुका है और इसके अतिरिक्त अन्य प्रस्तावित परियोजनाओं, हैदराबाद नागपुर औद्योगिक गलियारा (एचएनआईसी), हैदराबाद-बेंगलूरू औद्योगिक गलियारा, ओडिशा इकोनॉमिक कॉरिडोर,  दिल्ली नागपुर इंडस्ट्रियल कॉरिडोर को स्वीकृति प्रदान की गई है।

         यहां एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है, वर्तमान में उद्योगों और रोजगार के अवसर का संकेंन्द्रण कुछ विशेष क्षेत्रों या शहरों तक ही सीमित है तथा श्रमिक पलायन करने के लिए बाध्य होते हैं। लेकिन औद्योगिक कोरीडोर के पूर्ण और विकसित हो जाने पर देश के पिछड़े क्षेत्रों में भी विकास के साथ रोजगार के अवसर सृजित होंगे। इस प्रकार देश के आर्थिक प्रगति में क्षेत्रीय असमानता दूर होगी तथा भारत के सकल घरेलू उत्पाद में तेजी के साथ उछाल आएगा। आज कोविड काल जैसी विपरीत परिस्थितियों के बाद भी इसका अनुमान 8.3 प्रतिशत लगाया गया है, जो देश के आर्थिक विकास के लिए एक शुभ संकेत भी। लेकिन यहां हम यह भी कह सकते हैं कि आज भारत जी डी पी चाहे जो हो, यदि देश में आर्थिक गलियारे विकसित हो जाते हैं तो भारत की अर्थव्यवस्था 5 ट्रिलियन डॉलर से भी कहीं अधिक बड़ी होगी।  
         
        किसी भी राष्ट्र को एक बड़ी अर्थव्यवस्था में बदलने के लिए, कृषि सुधार, भूमि और श्रम सुधार, रोजगार के अवसर और कौशल विकास के लिए रोड मैप बनाए जाने की भी आवश्यकता होती है। नीति आयोग इस एजेंडे पर रणनीति के साथ काम कर रहा है और ऐसा लगता है कि भारत एक ऊँची अर्थव्यवस्था में छलांग लगाने के लिए तैयार बैठा है। भारत के विमुद्रीकरण (नोटबंदी) की हम चाहे जितनी आलोचना करें लेकिन इसके बाद देश लगभग 1 अरब डेबिट/क्रेडिट कार्ड, 2.25 अरब पीपीआई (प्रीपेड पेमेंट इंस्ट्रूमेंट्स) और कई नए पेमेंट मोड के साथ सबसे बड़े और तेजी से बढ़ते डिजिटल पेमेंट बाजार में से एक होने वाला है। मोबाइल से दुकानों में पेमेंट करने के मामले में भारत 20.2 फीसदी के साथ दुनियां में छठे स्थान पर है जबकि अमेरिका सातवें नंबर पर है। यह हमारे कौशल विकास की एक बानगी भर है। 
      
        उस दिन संसद टी वी पर भारत में प्रस्तावित और निर्माणाधीन आर्थिक गलियारे पर डाक्यूमेंट्री देखकर मैं बदलते भारत के उज्ज्वल भविष्य के प्रति आश्वस्त हो गया था। अंत में एक बात और कहना चाहता हूं, जातिवादी और साम्प्रदायिक शक्तियां अकसर आर्थिक रूप से विपन्न और कमजोर वर्गों का सहारा लेकर ही आगे बढ़ती है। लेकिन भविष्य में, देश में जिस आर्थिक वातावरण का सृजन होने जा रहा है, निश्चित ही ऐसी शक्तियों की धार कुंद होगी तथा आगे चलकर ऐसी विचारधाराएं औचित्यहीन हो जाएंगी।

              (इस लेख के कुछ अंश गूगल से प्राप्त जानकारी के आधार पर है)

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