शनिवार, 23 जुलाई 2016

न्याय की लड़ाई

             उस दिन श्रीमती जी ने मुझे बताया कि एक महिला स्वयंसेवी संस्था ने एक बलात्कार पीड़िता को सम्मानित करने के लिए उस पीड़िता को मुहल्ले में बुलाया था और उन्हें भी इसमें सम्मिलित होने का अवसर मिला। उस पीड़िता ने न्याय पाने के लिए दस वर्षों तक निरन्तर संघर्ष किया था और अन्ततोगत्वा न्याय पाने में सफल हुई थी। श्रीमती जी बता रही थी कि उस पीड़िता लड़की ने कहा कि "यदि मेरा मामला इतना चर्चित न हुआ होता तथा स्वयंसेवी संगठनों से मदद न मिली होती तो शायद मुझे न्याय मिलना नसीब न होता।" लड़की ने यह भी बताया कि उसे ब्लैंक चेक भर लेने का लालच भी दिया गया था लेकिन वह न्याय के लिए अडिग रही थी।
        उस पीड़िता के अनुसार न्यायालय के अन्दर सुनवाई के दौरान भी उसे कई बार पीड़ादायी स्थितियों से गुजरना पड़ता था। पत्नी ने मुझे बताया कि वह लड़की (पीड़िता) कह रही थी कि एक बार न्यायालय में सुनवाई चल रही थी तो स्वयं जज उससे बयान लेते हुए बहस कर बैठे थे और जब उसने जज से कहा कि सर आप मुझसे इतना सब कुछ पूँछ रहे हैं लेकिन मेरा बयान नोट नहीं कर रहे हैं तो जज साहब बोले, "हाँ..हाँ..जाकर यह बात भी मीडिया को बता दो.."
       पत्नी ने यह भी बताया कि उस पीड़िता के अनुसार न्यायालय में सुनवाई के दौरान उसकी जैसी ही कुछ अन्य बलात्कार-पीड़ित लड़कियां भी आया करती थी लेकिन उन सब का मामला मीडिया या स्वयंसेवी संस्थाओं के बीच इतना चर्चित नहीं था, वे लड़कियाँ बेहद दुखी मन से उससे कहती कि "तुम्हारा मामला इतना चर्चित है! तुमको तो न्याय मिल जाएगा लेकिन हमारा क्या होगा? वे लड़कियाँ भयभीत भी रहती थी तथा न्याय पाने का उनका हौसला भी दिनों-दिन घटता जा रहा था।"
         पीड़िता ने बताया कि न्याय पाने की उसकी लड़ाई में मीडिया और स्वयंसेवी संगठनों ने भी खूब साथ दिया, यहाँ तक कि उसने अपनी पूरी लड़़ाई इस मीडिया और स्वयंसेवी संगठनों के बलबूते लड़ी। घटना के समय झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाली उस अनपढ़ लड़की को इस दौरान स्वयंसेवी संगठनों ने स्नातक स्तर तक शिक्षित होने में सहयोग किया तथा कम्प्यूटर चलाने में भी उसे दक्ष बनाया गया।
        वास्तव में अपने बलबूते न्याय की लड़ाई लड़ना बेहद दुष्कर और उबाऊ प्रक्रिया बन चुकी है! और अगर यह लड़ाई किसी बलात्कारी के विरुद्ध लड़ी जा रही हो तो फिर कुछ नहीं कहा जा सकता! अकसर यह लड़ाई अधूरे रास्ते में ही दम तोड़ देती है। इस लड़ाई में पीड़िता को ही हर स्तर पर हिकारत भरी नजरों का सामना करना पड़ता है और यहाँ तक कि न्यायालय में भी जैसे इन्हें ही कठघरे में खड़ा किया जाता है, तथा जैसे पूरा समाज बलात्कारी के ही पक्ष में आ खड़ा होता है!
           -vinay
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