बुधवार, 14 जनवरी 2015

गोडसे तो हत्यारा था.....

           गोडसे और गाँधी दोनों की कोई तुलना नहीं है, लेकिन बचपन से ही यह सुनता आ रहा हूँ, “अरे.…ऊ गोडसवा बेचारा देश-भक्त रहा..इही बदे गांधी के मारे रहा...ऊ गंधिया न..पाकिस्तान क रुपिया देवावई के चक्कर में पड़ा रहा..” हाँ..अकसर यह चर्चा जाड़े में कौड़ा(अलाव) के चारों और आग ताप रहे होते परिवार के बड़े लोगों के मुख से सुना करता था। संयोग से उन्हीं दिनों माँ के बक्से से निकाल कर गांधी जी की जीवनी भी पढ़ लिया था। लेकिन उन लोगों के सामने इतना छोटा था कि इस चर्चा में भाग लेने लायक नहीं समझा जाता। हाँ....गांधी जी की उस जीवनी का यह प्रभाव ही था कि उस वार्ता का मुझपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। 
           आज सोचता हूँ...मैंने तो गांधी जी की जीवनी पढ़ ली थी और उस वार्ता का प्रभाव मुझ पर नहीं पड़ा।  लेकिन यह निश्चित है कि कौड़े के चारों ओर आग तापते परिवार के वे बड़े सदस्य भी गोडसे की देशभक्ति सिद्ध करने वाला कोई आलेख नहीं पढ़े रहे होंगे फिर भी कहीं से उनके दिमाग में यह बैठाया गया होगा कि गोडसे इस कारण देशभक्त था और किसी न किसी प्रचार के वह शिकार बने थे...! एक बात है हमारे समाज में कई बातों का इस प्रकार प्रचार किया जाता है कि साधारण जन उन बातों को ही सत्य मानकर अपने विचार बनाने लगते हैं। 
         गोडसे ने गांधी जी को जिस भी कारण से मारा हो लेकिन एक बात तय है कि वह हत्यारा था। गांधी...! वह स्वतंत्रता आन्दोलन की शांतिप्रिय राजनीतिक धारा के खेवनहार होने के साथ ही मानवता के संवाहक भी थे..! पाकिस्तान के सन्दर्भ में उनका जो भी निर्णय रहा हो वह इसी कारण रहा होगा...और....वह इसीलिए गांधी भी थे। 
       गोडसे...! जब उसे कुछ करने की आजादी मिली तो उसने अपने एक संकीर्ण सोच के कारण गांधी जी की हत्या कर डाली। उसका यह अपराध भविष्य के भारत और उसके संविधान के प्रति भी था जिसमें उसकी जैसी सोच का...किसी तरह का कोई...अंगीकरण नहीं था। इस कारण वह विशुद्ध देशद्रोही और अपराधी भी सिद्ध होता है...! यदि उसे आतंकवादी भी माने तो किसके लिए...? एक आतंकवादी समझने पर इस भाव में दबे पैर आने वाले उसके महिमामंडन के भाव को भी समझना आवश्यक है क्योंकि आज ‘आतंकवादी’ शब्द किसी के ऐसे कृत्य को किसी के द्वारा महिमामंडन का अवसर प्रदान करता है..! यह महिमामंडन भी किसके लिए...? गोडसे तो हत्यारा है..विशुद्ध देशद्रोही हत्यारा...! एक क्षण के लिए माने तो आतंकवादी हत्यारा नहीं भी हो सकता है लेकिन सभी हत्यारे अपने में क्रूर आतंकवादी होते हैं क्योंकि वे अपनी किसी धारणा के कारण ही हत्या जैसे जघन्य कृत्य के लिए प्रेरित होते हैं, गोडसे हत्यारा है।   
        यदि हम गोडसे को महिमामंडित करते हैं तो फ़्रांस की पत्रिका शार्ली हेब्दो के अपराधियों को भी महिमामंडित करने की अनुमति देना होगा। फिर तो एक श्रृंखला चल पड़ेगी...! आज समस्या यही है कि ऐसे प्रचार प्रभावी क्यों होते जा रहे हैं? क्या हम सांस्कारिक कमजोरी की ओर बढ़ रहे है...? फिर तो ऐसे और इस जैसे ही अन्य प्रचार से भी सावधान रहना होगा जहाँ गोडसे और ऐसे लोग महिमामंडित हो रहे हों...! देशभक्त बने लेकिन इसके प्रचारक नहीं...अन्यथा धीरे-धीरे हम संविधान विरोधी होते जाएंगे। संविधान के रखवालों को भी इस पर सजग रहना होगा...!        

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