सोमवार, 11 अप्रैल 2016

एक ‘बागड़बिल्ले’ की ‘बागड़पन' जैसी बातें

       उस दिन मैंने एक ‘बागड़बिल्ले’ से बस ऐसे ही पूँछ लिया था, “क्या सम्राट अशोक या अकबर महान थे..?
     
       ‘बागड़बिल्ले’ ने कुछ क्षण सोचा और मुझे जवाब दिया, “नहीं ये लोग तिकड़मी थे..!”
       
       बात मेरे समझ में नहीं आई..मैं उत्सुकता से ‘बागड़बिल्ले’ की ओर देखने लगा था और बागड़बिल्ला मेरी उत्सुकता भाँपते हुए बोला, “देखिए महानता जैसी कोई चीज नहीं होती..और अगर होती भी है तो यह तिकड़म से ही अर्जित की जाती होगी..मतलब ‘महानता’ एक प्रकार की ‘कूटनीति’ ही है...”
      
       बागड़बिल्ले की ‘महानता’ पर इस नए ‘दर्शन’ से मैं थोड़ा अचंभित सा हुआ और साथ में ‘बतरस’ की अनुभूति भी हुई..! सो मैंने वार्ता को आगे बढाते हुए पूँछा, “तो...अशोक...और अकबर..” हाँ अभी मैं अपने इस वाक्य के आगे बस यही जोड़ने वाला था कि “महान नहीं थे?” उसके पहले ही ‘बागड़बिल्ला’ बोल उठा, “हाँ..हाँ..अकबर और अशोक महान नहीं थे..!! केवल कूटनीतिक थे..राज करने के लिए तिकड़म भिड़ाए थे..!”
      
       बागड़बिल्ले की इस बात को मैं कहाँ मानने वाला था....सोचा.. “कल का यह लौंडा हमें महानता का दर्शन सिखा रहा है..?” और मैं कह उठा, “क्यों नहीं महान थे..? इतिहास तुमने पढ़ा भी है या बस ऐसे ही बके जा रहे हो..?”
     
       ‘बागड़बिल्ला’ ने मुझे देखा और हँस पड़ा..हाँ, उसकी हँसी मुझे बहुत नागवार गुजरी..जैसे उसने मुझे अल्पज्ञानी समझते हुए कहा हो, “ऐसा है..अशोक ने लाखों लोगों को युद्ध में मार दिया था..उस समय का जनमानस उससे बेहद नाराज था..लोग उसे सत्ता से बेदखल कर देना चाहते थे..लेकिन उसे शासन करना था..लोगों का आक्रोश शांत करने के लिए ही उसने ‘बौद्ध धर्म’ अंगीकार किया था...और अकबर..! उसे भी भारत पर पर राज करना था, ऐसे में ‘महानता’ की कूटनीति के बिना यह संभव न होता..”
       
       “फिर तो महात्मा गांधी के बारे में भी तुम्हारा कुछ ऐसा ही ख़याल होगा..? बागड़बिल्ला से महात्मा गांधी की ‘महात्मापने’ को खतरे में डाल कर जैसे मैंने पूँछा हो|
       
        बागड़बिल्ला मुस्कुराया “देखिए, मान लीजिये एक साधारण इंसान गांधी जैसा ही काम करता है, तो क्या लोग उसे महात्मा कहेंगे...? नहीं न, ‘महात्मा’ बनने के लिए आपको ‘कूटनीतिक’ भी बनना पड़ेगा..! हाँ, ‘महात्मा-वहात्मा’ जैसी कोई चीज होती भी नही...और अगर होती भी हो तो सिवा ‘तिकड़मगीरी’ के यह कुछ नहीं है...यह ‘महानता’ तिकड़म से ही अर्जित होती है..! और किसी ‘तिकड़म’ को आप महानता मानोगे..?”

       
        मैं अब एकदम चुप था, सोचा, “चलो मान लेते हैं कि ‘महानता’ ‘तिकड़मगीरी’ ही है..लेकिन ‘बागड़बिल्ला’ की बात से इतना तो सिद्ध होता ही है कि ये ‘तिकड़मबाज महान लोग’ अपने समकालीन व्यक्तियों से आगे की सोच रहे होंगे” और ‘बागड़बिल्ले’ की ‘बागड़पन-बात’ सुन मन ही मन मुस्कुरा उठा.... 

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