गुरुवार, 7 अप्रैल 2016

वैसे मित्रों, किस मुँह से हम भारत माता की जय बोलें...?

वैसे मित्रों लिखना तो नहीं चाहता था क्योंकि इस पर चर्चा करने से उन्हीं का उल्लू सीधा होगा और हम नाहक ही उनके ही प्लान का हिस्सा बन जाएंगे| खैर होने दीजिए उनकी रणनीति का हिस्सा, पर हमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता और हम ‘भारत माता की जय’ पर थोड़ा बहुत तो लिखेंगे ही, आखिर मन जो नहीं मान रहा है...

इसी के साथ हम अपनी एक बात बता रहे हैं; जब कोई स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस या ऐसे ही किसी राष्ट्रीय महत्त्व के अवसर पर ‘भारत माता की जय’ का नारा लगवाता है तो मैं थोड़ा असहज हो उठता हूँ..क्यों..? यह तो मुझे नहीं पता, लेकिन इतना जरूर होता है कि मैं ‘भारत माता की जय’ बोलना तो दूर इस नारे को बुदबुदाता भी नहीं..! कहीं बहुत गहराई से मेरे लिए यह नारा बहुत बनावटी और कृत्रिमता लिए होता है, जैसे मैं यह बोलकर अपनी माँ को धोखा दे रहा होऊं..! या यह नारा लगाने वाले लोग मुझसे अपने हिस्से की आजादी की छिनैती करना चाहते हैं, ठीक वैसे ही जैसे यही नारा लगा लगा कर आजादी के दीवानों ने अंग्रेजों से आजादी छीन ली थी...इसीलिए तब मैं चुपकर रह जाता हूँ...हो सकता है मैं देशद्रोही होऊं!! हाँ मैंने वास्तव में माँ को धोखा दिया है..| आजादी का सारा सुख तो हम जैसे लोगों ने ही लूट लिया हैं..और उनके हिस्से में 'भारत माता की जय' दे दिया है...फिर किस मुँह से हम भारत माता की जय' बोल पायेंगे ? खैर..
आप तो जानते ही होंगे एक बार गांधी जी ने कहा था कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद राजनीतिक पार्टी के रूप में कांग्रेस को समाप्त कर देना चाहिए..अब ऐसा उन्होंने क्यों कहा होगा इस पर आप चिंतन करिए, मैं तो इसी फार्मूले पर मानता हूँ कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ‘वन्दे मातरम्’, ‘भारत माता की जय’, ‘इंकलाब जिंदाबाद’ जैसे नारों का अब कोई औचित्य नहीं..! इन नारों को हमें भूल जाना चाहिए| क्यों..?

क्योंकि ये आजादी की लड़ाई के हथियार थे..जब लड़ाई ख़तम तो फिर हथियारों का क्या काम..? आखिर ऐसे नारों को अब किसके विरुद्ध बोला जाए...? अंग्रेज तो चले गए! अच्छा चालिए मान लेते हैं आपके अंतस में देशभक्ति की भावना हिलोरे ले रही है..और बिन इन नारों के बोले आप अपनी इस भावना को अभिव्यक्त नहीं कर पायेंगे, तो यह भी मान लीजिए कम से कम आप ऐसे नारे लगाने का हक खो चुकें हैं..आखिर क्यों खोया है आपने अपना यह हक़..?
भाई मेरे इसलिए खोया है कि आप बहुत ऊँचे पायदान पर पहुँच चुके हैं..हाँ अपने देशवासियों को भूलकर..!! क्योंकि आपने उन्हें वहीँ छोड़ रखा है जहाँ से सभी ने साथ-साथ शुरुआत की थी..लेकिन आपने उनके हिस्से की आजादी को डकार लिया है, और आजादी के बाद आप सरपट दौड़े लेकिन देश नहीं दौड़ा..वे बेचारे आप के साथी नहीं दौड़े..!! यदि सब एक साथ दौड़े होते तो मेरे एक मित्र Rakesh Kr Pandey ji ऐसा न लिखते..

महँगाई व्यभिचार बढ़ा हैं, भौतिक भ्रष्टाचार बढ़ा हैं-
दीन-दुखी कु-विचार बढ़ा हैं, केवल अत्याचार बढ़ा है-
संविधान अधिकार बढ़ा हैं, उल्लंधन आचार बढ़ा हैं-
कथनी-करनी भेद बढ़ा हैं, अवसर वादी न्याय बढ़ा हैं-
सामन्ती अब भेष बदलकर, सत्ता अब भी पाये हैं-
नित्य नया नव-वाद खड़ा कर, जनता को भरमाये हैं-
अजगर जैसे भरकर कुण्डली, कुर्सी को हथियाये हैं-
कभी किसान वणिक व्यापारी, हितकर दलित कहाये हैं-
सत्ता पाते भूल सभी को, निज सामन्ती रूप दिखाये हैं-
बाँट-बाँट कर जन मानस को,हित साधक बनते आये हैं-
पर दुख हैं हम भारत वासी, अब भी समझ न पाये हैं-
कुटिल चाल-चारे में इनके, मछली से फँसते आये हैं-
सुनों सपूतो भारत माँ के, अदभुत भारत देश हमारा-
शस्त्र-शास्त्र विज्ञान विशद हैं, पुरा काल से न्यारा-
ऋषियों मुनियों सब विद्वत जन को, यहीं मिली हैं धारा-
अखिल लोक ब्रहमाण्ड देव को, भारत में मिला सहारा-......क्रमशः...
राकेश कुमार पाण्डेय

इसीलिए आप द्वारा निगली हुई आजादी को उगलवाने के लिए ‘भारत माता की जय’ तो उन बेचारों को ही बोलना था..लेकिन बोल आप रहे हैं..आप गजब के चालाक व्यक्ति हैं..कर दिया न ‘भारत माता की जय’ के दो फाड़...!! हो सकता था पुनः इन नारों के बल पर वे एकजुट होकर अंग्रेजों के बाद आप द्वारा हथिया ली गई उस आजादी को आप से मुक्त करा लेते...लेकिन....अब इन बेचारों के हिस्से की निगली हुई आजादी को कौन उगलवा पाएगा? आखिर यह ‘भारत माता’ जो बंट गई, फूट डाल दिया गया..!

और अब मेरा डर भी निकल गया है..कम से कम ‘भारत माता की जय’ बोलकर मुझे कोई शर्मशार तो नहीं करेगा और ऐसे समय की असहजता से भी मुझे मुक्ति मिली! हाँ, तमाम लोगों की छीनी हुई आजादी से लकदक करता मैं ऊँचे पायदान पर निडर खड़ा हुआ मन ही मन अपनी कुटिल चालाकी पर मुस्कुराए जा रहा हूँ... ‘भारत माता की जय’..!

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