रविवार, 2 सितंबर 2018

ज्ञान का ज्ञान

          आज जब बाहर सड़क पर टहलने निकले तो वातावरण में धुँधलका छाया हुआ था, एकदम कुहरा के माफिक..इस मौसम में सुबह के छह बजे जैसे कुहरा पड़ रहा हो..! सड़क पर चलते हुए मेरे आगे पीछे से मोटरसाइकिल या अन्य छोटे वाहन आ जा रहे थे..इन्हें देखते हुए मन में खीझ उठ रही थी कि सबेरे की ये शान्ति भंग कर रहे हैं..और इतने सबेरे ही इन सब के निकलने की ऐसी कौन सी आवश्यकता आन पड़ी है..? इस बीच एक मोटरसाइकिल जबर्दस्त ढंग से धुँआ छोड़ते हुए मेरे आगे बढ़ गयी..उसके धुएँ और गंध से मेरे नथुने भर गए..एक अजीब से गुस्से और खीझ में मैं वापस लौटना चाहा, लेकिन मन में आया किसी तरह अपने टहलने का कोटा पूरा कर लें..वैसे भी आजकल टहलने का रूटीन सही नहीं चल रहा है..खैर..
         अखबार पढ़ते हुए "वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर का निधन" पर निगाह पड़ी..
         ....हाँ..अखबार पढ़ने का चाव तो मुझे बचपन से ही रहा है, लेकिन धीरे-धीरे समझदारी बढ़ने पर सम्पादकीय पृष्ठों पर लेख भी पढ़ने लगा था..जिनके लेख मुझे अतिप्रिय होते उनमें कुलदीप नैयर भी थे..! उन दिनों इंटर कालेज में पढ़ रहा था..किसी विषय पर कुलदीप नैयर का लेख छपा था..उस लेख के बारे में उस दिन घर पर मेरे दादा जी समेत अन्य लोग बतिया रहे थे..क्योंकि आज से तीस-पैंतीस वर्ष पहले बिना लाग-लपेट के फुर्सत में आपस में लोग खूब बतियाते भी थे..! मैं कुलदीप नैयर का वही लेख पढ़ रहा था...तभी उस बातचीत के दौरान किसी ने मुझसे कहा, "अरे यह कुलदीप नैयरवा तअ.. वामपंथी..है एकर लेख तअ ऐसई ऊटपटांग रहथअ.." और यह कहते हुए मुझे उनके लेख पढ़ने से हतोत्साहित किया गया...लेकिन इस घटना के बाद कुलदीप नैयर के लेख पढ़ने में मेरी जिज्ञासा और बढ़ गई..और आज तक यह जिज्ञासा बनी रही..इस घटना के बाद से धीरे-धीरे मेरे अंदर अपनी बनायी हुई किसी धारणा के विपरीत वाली धारणा को जानने की जिज्ञासा भी बढ़ चली थी...असल में घटनाओं और बातों पर नैयर जी का बौद्धिक विश्लेषण तार्किक हुआ करते थे..उनके लेखों को पढ़ने से सोचने की एक और दृष्टि का पता चलता था...

             #चलते_चलते 
            अगर हम अपने ज्ञान के विरोधी ज्ञान को नहीं जानते तो हम कुछ नहीं जानते...
               #सुबहचर्या 
               (24.8.2018)
                   श्रावस्ती 

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