रविवार, 2 सितंबर 2018

लगाम

        मित्रों! आज भी सुबह मैं टहलने निकला तब तक पाँच बजकर अड़तीस मिनट हो चुके थे...आप सोच रहे होंगे कि मैं हर बार अपनी #सुबहचर्या में टाइम क्यों बताता हूँ..? हाँ, इसके पीछे कोई खास बात नहीं है बस टाइम बताकर मुझे खुशी मिलती है..और..आप भी टाइम जानकर मन ही मन या सोचते होंगे इत्ते सबेरे यह उठ जाता है, मैं क्यों नहीं उठ पाता..!! या फिर मुझे बेवकूफ समझ सबेरे वाली नींद का मजा लेते होंगे..चलिए कोई बात नहीं..
          मैं आ गया सड़क पर..चलते हुए अपने आसपास के प्रति थोड़ा सजग रहा कि #सुबहचर्या के लिए कोई मसाला मिल जाए। वैसे भी हमारी सजगता मसाला ढूँढ़ने तक ही सीमित होती है..! लेकिन सच बताएँ..आज सुबह-सुबह जो भी चीज दिख रही थी, मैं उसमें अर्थ ही नहीं खोज पा रहा था..! इस बीच एक मोटरसाइकिल भड़-भड़ करती हुई मेरे पीछे आकर रुक गई..और साथ ही कोई कहते सुनाई दिया.. "शायद तेल खतम हो गया..!" पीछे मुड़कर देखा, तो उसके साथ दो बुर्काधारी महिलाएँ भी थीं..वह व्यक्ति मोटरसाइकिल स्टार्ट करने की कोशिश कर रहा था...इसे कम से कम तेल के बारे में पता करके चलना चाहिए था..मैंने सोचा। इस बीच मैं अपनी टहलाई का आधा भाग पूरा कर लिया था..मोबाइल से सड़क की तस्वीर ली..आपको यह बताने के लिए कि इसी सड़क पर मैं टहलता हूँ.. 
         इसी दौरान सड़क किनारे खुरचाली करते एक घोड़े पर मेरी नजर पड़ी..घोड़ा हृष्ट-पुष्ट लेकिन पूरे भारतीय मानक वाला था..! उसे देखते हुए मैं आगे बढ़ चला...आकस्मात्  एक बंदर को उछलते हुए सड़क पार करते देखा..! थोड़ा और आगे बढ़ा तो पीछे से टप-टप घोड़े के टाप की आवाज सुनाई पड़ी...पीछे मुड़कर कर देखता कि तब तक एक साइकिल सवार घोड़े का लगाम पकड़े हुए मेरे पास से गुजर गया...उसे देख "मैंने सोचा..यह तो वही खुरचाली वाला घोड़ा है..शायद साइकिल सवार घोड़े को दौड़ना सिखा रहा है..इसे निकालेगा।" अब तक मेरे टहलाई का एंड होने वाला था... अचानक उस घोड़े पर मेरी निगाह पड़ गई.. अबकी बार साइकिल सवार घोड़े की नाक से कसी हुई लगाम को अपनी ओर तान घोड़े से नाराजगी में कुछ बड़बड़ा रहा था...मैंने घोड़े को ध्यान से देखा..मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब मुझे वह घोड़ा भी उस साइकिल सवार इंसान की ओर नाराजगी से देखता प्रतीत हुआ..जैसे उस साइकिल सवार से घोड़ा कह रहा हो...कि.."अमां यार..तुम इंसान हो, या पायजामा.." 
         खैर,  मेरी टहलाई समाप्त होने वाली थी मेरी दृष्टि चचाजान के चाय की दुकान पर अटक गयी.. एकदम झक सफेद दाढ़ी में... सुबहई-सुबहई गोमती खोलकर चाय पिलाना शुरू कर देते हैं..वहाँ चाय का चुस्की लेते मजदूरों को देखकर सोचा..अभी ये चाय की चुस्की ले काम पर चले जायेंगे.... 
            अपना देश बड़ा विचित्र है...सब अपने में मगन रहने वाले लोग हैं यहाँ.! कोई किसी की टांग में टांग नहीं अड़ाता...बात भी सही है... जब तक किसी को किसी की किसी बात से किसी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुँचता, तो क्या जरूरत है उस किसी बात की खिल्ली उड़ाने की..! फिर तो जूतम-पैजार होने की पूरी संभावना बन जाती है यहाँ..!! टहलाई की समाप्ति पर फेसबुकिया सोशल-मीडिया पर कोई ठुकाई-पिटाई से पीड़ित एक बाबा के फोटू को देखकर मुझे यह ज्ञान प्राप्त हुआ..
        #चलते_चलते 
          वैसे, इस देश की संस्कृति किसी लगाम पर विश्वास नहीं करती..और सारी समस्या की जड़ में, लगाम हाथ में पकड़ने की अभिलाषा रखने वाले ही होते हैं..
            #सुबहचर्या 
             (18.7.18)

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