रविवार, 2 सितंबर 2018

मांसाहारी कि शाकाहारी?

           तमाम मानसिक ना-नुकुर के बाद पाँच पैंतालीस..हाँ इसी टाइम सुबह टहलने निकला..सड़क पर कुछ कदम चलने पर आभास हुआ कि पहनी हुई मेरी टी-शर्ट का रंग कुछ बदला हुआ है.. "टी-शर्ट तो वही पहनी थी जिसे रोज पहनता हूँ..फिर रंग कैसे बदल गया इसका...!" ऐसा मैंने सोचा। एक बार फिर मैंने ध्यान से टी-शर्ट को देखा.."अरे! इसे तो, मैंने उल्टा पहन रखा है..!!" जैसे अबकी बार मुझे समझ आयी। खैर, बेवकूफियों के बाद समझ आती है और इस समझ के बाद हम थोड़ा राजनीतिक हो लेते हैं..परिणामत: लम्बे हाथ सड़क पर मैंने निगाह डाली, इक्का-दुक्का लोग आ-जा रहे थे..सड़क पर चलते हुए टी-शर्ट उतारकर फिर सीधा पहना और इस प्रकार अपनी बेवकूफी से निजात पायी।
          टहलते हुए मैं एक दूसरे सड़क मार्ग पर हो लिया...लेकिन कुछ दूर जाकर मुझे वापस होना पड़ा...क्योंकि आगे कुछ लोगों का निधड़क "शौच कार्यक्रम" चल रहा था।  एक व्यक्ति जो अपने हाथ में पानी भरी बोतल लिए हुए था एक अन्य व्यक्ति से बतियाते हुए सुनाई पड़ा, "औरतों के लिए तो पाँच बजे सबेरे तक ही ठीक रहता है.." असल में ये महाशय भी हाथ में पानी का बोतल लिए मैदान खाली होने का इन्तजार कर रहे थे! शायद ये कुछ शर्मीले टाइप के थे। सच में, अभी तक हम खुले में शौच को कुरीति नहीं मान पाए हैं..
           आवास पर लौट आया था और यूँ ही चन्द्रकान्त खोत की पुस्तक "बिम्ब प्रतिबिंब" के पन्ने पलटने लगा था। स्वामी विवेकानंद के मुँह से कहलायी गई इसकी कुछ पंक्तियाँ बरबस ध्यान को आकृष्ट कर रही थी, जैसे, "सिद्धि प्राप्ति की भूख व्यक्ति के बौद्धिक अवनति का लक्षण है। सिद्धि प्राप्त व्यक्ति तमाम वासनाओं का शिकार हो सकता है।"
        
          इसीतरह "सिंह जैसा मांसाहारी प्राणी एक शिकार करके थक जाता है, किंतु बैल जो शाकाहारी होता है, पूरा दिन चलता है। चलते-चलते ही खाता है और सोता है।" "सत्वगुण के विकास के बाद मांसाहार की इच्छा नहीं होती, किंतु सत्व गुण के लक्षण हैं...परहित के लिए सर्वस्व का समर्पण, कामिनी-कंचन के प्रति सम्पूर्णतः अनासक्ति, निरभिमान और अहमभाव का सम्पूर्णतः अभाव। ये सभी लक्षण जब एक व्यक्ति में समाहित हो जाते हैं तो उसे मांसाहार की इच्छा नहीं होती।" " किसी भी प्रकार के राजनीति पर मेरा विश्वास नहीं है। ईश्वर और सत्य - यही विश्व में श्रेष्ठ राजनीति है। शेष सभी झूठ है, तुच्छ है..।" 
           हाँ बस यूँ ही मैं इन पंक्तियों पर भटकता रहा...एक बात है, शाकाहार या मांसाहार की बात से बढ़कर एक दूसरी चीज है, वह है पाखंड रहित आचरण..। खैर.. आज मैंने अपने दिन की सुबहचर्या अपनी बेवकूफी के साथ शुरू किया था, तो..
        #चलते_चलते 
         हम अपने बेवकूफियों के क्षण में राजनीति और पाखंड से दूर शुद्ध मन वाले होते हैं..यह शाकाहारी होने का लक्षण है..!!
            #सुबहचर्या 
             (30.8.2018)

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