शुक्रवार, 13 नवंबर 2015

ये बच्चे भी स्कूल जाने के लिए रोते हैं...

         कल दीया जला रहे थे...और यह दीया अँधेरा रहने तक जलता रहे..कुछ यही सोचते हुए दियालियों में मैं भर भर तेल उड़ेले दे रहा था...! दिया जलाने के लिए तेल की आवश्यकता तो होती ही है...हाँ इसी चक्कर में तेल की बोतल लगभग खाली हो गयी थी...और इस खाली बोतल को देखकर दिमाग में आया कि दिया जलाने से बेहतर है कि चलो रोशनी की ही सब को शुभकामनाएँ दे डालें...नाहक इसके लिए तेल का बोतल खर्च किए दे रहे हैं..!! सुबह तो उजाला हो ही जाएगा...!! खैर..  
          सुबह के लगभग पाँच बज रहे होंगे..लेकिन अभी भी अँधेरा ही था...श्रीमती जी मुझे जगा रही थी...मोर्निग वाक के लिए..! इधर सबेरे-सबेरे जब-तब वो मुझे अपने साथ चार-पाँच किलोमीटर टहला आती हैं...हालाँकि मैं एक दिन टहलता हूँ तो दो दिन आराम भी करता हूँ...आज टहले कई दिन हो गए थे..एक बार तो सोचा...चलो टहल आयें....साथ ही अपने जलाये दीयों को देख भी लें कि वे अभी भी जल रहे हैं या नहीं...क्योंकि अभी तक तो अँधेरा ही है...! पता भी चल जाएगा कि रात भर के लिए इन दियों में तेल डाला था या नहीं..लेकिन न जाने क्यों नींद की खुमारी अभी भी छायी हुई थी...फिर जलाए वे दिये तो कब के बुझ चुके होंगे क्योंकि इतना तेल उन दीयों में नहीं डाल पाए थे...हाँ यही सोचते हुए मैंने श्रीमती जी से कहा, “यार अभी सोने का मन है..” और चद्दर तानकर फिर सो गए..हाँ वे अकेले ही टहलने निकल गयीं थी...
       
         इधर सुबह हुई, मैं सो ही रहा था...श्रीमती जी टहलने-टुहलने से लौट आई और चाय बनाने के बाद मुझे पुकारा..”अरे सोते भी रहोगे कि चाय-वाय भी पियोगे..?” मेरी आँख खुली देखा तो धूप किचन के रोशनदान से आ लाबी के फर्श पर बिखरी थी..जैसे जैसे मुझसे ही कह रही हो, “जागो मैं तुम्हें जगाने आई हूँ..जागो..! जागोगे तभी इस उजाले को और मेरा अहसास कर पाओगे...” ठीक इसी समय वह पुरानी बात भी याद हो आई...तब पढ़ते थे...तो ऐसे ही जब कभी सबेरे सोकर उठने में मैं देर करता तो माँ की यह आवाज मेरे कानों में गूँज रही होती... “जो सोवत हैं सो खोवत हैं, जो जागत हैं सो पावत हैं” और मैं जान जाता यह मुझे ही सुनाते हुए बोला जा रहा है...   
         
        खैर, पत्नी की “चाय-वाय भी पियोगे?” की आवाज सुन तथा फर्श पर बिखरी धूप को देख सोचा ओह..! इतनी धूप निकल आई और मैं सोता रहा..! हो सकता हैं रात भर मेरे जलाए ये दिये भी बेमतलब से ही जलें हों.? सोते हुए लोग इसकी रोशनी और लौ को कहाँ देख पाए होंगे..? और मैं भी तो इन्हें जलाकर ही सो गया था..! फिर विचार आया...चलो जब जागो तभी सबेरा..और..झटपट हाथ मुँह धोकर मैं श्रीमती जी के साथ चाय पीने बैठ गया...
        
         चाय पी लेने के बाद घर से बाहर निकला तो देखा धूप रुई के फाये जैसा एहसास दे रही थी...बस..मन बाहर निकलने का हो गया...एक तरह से सुबह का टहलना मेरा अब जाकर शुरू हुआ...
        
        पैदल चालन के लगभग दस मिनट हो चुके थे...किसी भीड़-भाड़ से बचने के लिए मैं एक नए विकसित हो रहे कालोनी के रास्ते पर हो लिया...एक छोटी सी झुग्गी-झोपड़ी वाली बस्ती दिखाई पड़ी..सड़क पर उसी बस्ती के कुछ बच्चे आपस में बातें करते हुए खेल रहे थे...मैंने इनकी बातें सुनने का प्रयास किया...हाँ भाषा तो समझ में नहीं आई...लेकिन बच्चों के खेल की भाषा देखकर..मैं समझ गया कि दुनियाँ के सारे बच्चों की भाषा एक जैसी ही होती है, वही उनके अन्दर की भाषा है...!! इस भाषा पर इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता कि ये बच्चे झुग्गी-झोपड़ी वालों के हैं या बँगलों के..! हाँ मैं भी तो ऐसे ही कभी खेला करता था...इन बच्चो की भाषा बिलकुल हमारे बचपन की भाषा से मिलती-जुलती थी...जिसे मैं समझ गया...
        
       मैंने एक बच्चे को अपने पास बुलाया..एक-एक कर सारे बच्चे मेरे पास आ गए...मैंने उस बच्चे से पूँछा, “बेटा स्कूल जाते हो...?” उसने कहा, “हाँ” और किसी अंग्रेजी स्कूल का नाम भी बताया! मेरे यह पूंछने पर आप में से कौन-कौन बच्चा स्कूल जाता है...? तो उन बच्चो में एक थोड़ी सयानी बच्ची बारी-बारी उन बच्चों के कन्धों पर हाथ रख बताने लगी, “ये जाते हैं...ये जाते हैं...ये जाते हैं...ये नहीं जाते...ये नहीं जाते..ये जाते हैं...”  एक छोटा बच्चा जो स्कूल नहीं जाता था मैंने उसकी ओर इशारा करते हुए कहा, “ये तो अभी छोटा है इसलिए स्कूल नहीं जाता होगा..क्यों?” बच्ची ने झट से अपना सिर हिलाया और कहा, “हाँ इसीलिए..” लेकिन उस बच्ची की एक बात पर चौंक उठा..जब उसने अपनी झुग्गी बस्ती की ओर इशारा करते हुए कहा, “वहाँ कुछ और बच्चे हैं जो स्कूल जाने के लिए रोते है...!!”
      
        उस बच्ची की बात सुन मैंने सोचा “इस झुग्गीवाली बस्ती के बच्चे स्कूल जाने के लिए रोते हैं..!!” मैं चौंक उठा...मुझे एक रोशनी सी दिखाई पड़ी...फिर मैंने बच्चों से पूँछा, “तुम्हारे मम्मी-पापा क्या करते हैं...मजदूरी या कूड़ा बीनते होंगे...?” उसी बच्ची ने हिचकते हुए बताया, “हाँ..कूड़ा बीनते हैं..” हालाँकि मैं पहले से जानता था कि शहरों की ऐसी बस्तियों के लोग अकसर कूड़ा ही बीनते हैं या फिर लोगों के घरों से कूड़ा उठाते हैं...मुझे बात करते-करते एक-दो साइकिल ठेले कूड़े से लादे आते-जाते दिखाई भी पड़े...
      
        क्षण भर के लिए मैंने सोचा, रात के फूटते पटाखों और जलाए दीयों के साथ प्रकाश-पर्व की शुभकामनाएँ हमने खूब बाँटा...! और जब सही में अँधेरे में रोशनी करने की सोची थी तो तेल से खाली हुई बोतल आँखों के सामने नाच गई...बिना तेल के तो कोई रौशनी की ही नहीं जा सकती...बाकी मेरे सुपुत्रों ने मुझे दीवाली के ही दिन मेरे फेसबुक स्टेट्स को पढ़ मेरी खिल्ली उड़ाने के अंदाज में “बड़ी-बड़ी बाते करने वाला” घोषित कर दिया था...इसी समय बम्बई में बचपन की सुनी वह बात जैसे याद हो आई हो.. “क्या खाली-पीली बोम मारता है..?” सो, शेष सब बातें ही होती हैं..अपनी बातों की निरर्थकता मैं जानता हूँ...
       
         सोचा दीवाली की रात के बाद सूर्य के उजाले में ही सही इन बच्चों को रौशनी की शुभकामनाएँ ही दे दे..लेकिन मैं यह भी जानता था शुभकामनाएँ लेना देना तो बड़ों का ही खेल है..इनके लिए तो नहीं...! शुभकामनाओं से इन बच्चों पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं...लेकिन..मैं अकस्मात् बच्चों से कहने लगा...
         
          “बेटा तुम लोग खूब पढ़ा करो...स्कूल जरुर जाया करो..”
         
         ठीक इसी समय ऊपर से गड़गड़ाहट के साथ एक हवाईजहाज गुजरने लगा था..बच्चों की उत्सुकता भरी आँखों के साथ मेरी भी आँखे ऊपर आसमान की ओर उठ गई...मुझे इनकी आँखों में ऊँची उड़ान की ललक दिखाई पड़ी...
         
        ....इस ललक के साथ ही इन बच्चों के चेहरों के पीछे छिपी हुई रोशनी भी मुझे दिखाई देने लगी थी...मुझे अपनी माँ की वह आवाज याद आ गई... “जो सोवत हैं सो खोवत हैं, जो जागत हैं सो पावत है..” मतलब इनकी बस्तियों में यदि केवल ऐसी ही आवाजें सुनाई देने लगे तो इन बच्चों से इनके अन्दर की छिपी हुई रौशनी स्वतः फूट पड़े...क्योंकि ये बच्चे स्कूल जाने के लिए भी रोते हैं...
          
        घर लौट कर जब श्रीमती जी से इन बातों को बताया तो उन्होंने मुझसे कहा, “हाँ ये सब असाम से आये लोग हैं...सबेरे उठते टहलते समय हम इन बच्चों को रेल लाइन पर गुजरती मालगाड़ी के ड्राइवर से भी टाटा-बाय-बाय के अंदाज में उत्सुकता से हाथ हिलाते हुए अकसर देखा करते है...”
                             --------------(12-11-15-viny)   



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