मंगलवार, 17 नवंबर 2015

ये धार्मिक संगठन

                 वैसे कोई भी संगठन या संघ हो इनके उद्देश्यों को लेकर मन में हमेशा ही संदेह रहा है...खासकर भारतीय संविधान के अंगीकरण के पश्चात ! वैसे ऐसे किसी यूनियन या संगठन की आवश्यकता तभी हो सकती है जब किसी व्यक्ति या संस्था के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा संवैधानिक संस्थाओं द्वारा न हो पा रही हो | लेकिन गैर संवैधानिक संगठन अपने असंवैधानिक अधिकारों के लिए ही अधिक प्रयत्नशील दिखाई देते हैं| यह प्रवृत्ति विशेषकर धार्मिक संगठनों में ही अधिक दिखाई देती है| ये धार्मिक संगठन अपने संगठन को और अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए तथा अपने लिए अधिक जनसमर्थन जुटाने के लिए अपने धार्मिक समुदायों में तमाम तरह के धार्मिक भावनाओं को उभारने की कोशिश भी करते रहते हैं| भारत जैसे बहुधार्मिक वाले राष्ट्र के लिए यह प्रवृत्ति खतरनाक है क्योंकि ऐसे संगठन एक दूसरे धार्मिक समुदाय की प्रतिक्रिया में ही खड़े दिखाई देते हैं और इस रूप में यह असंवैधानिक है, ऐसे किसी भी धार्मिक संगठन को यदि ये संगठन अपने समुदाय में अन्तर्निहित दुष्प्रवृत्तियों को नहीं पहचानते और इसके लिए सुधारात्मक उपाय नहीं करते तो ये संगठन देशद्रोही संगठन की श्रेणी में माने जाने चाहिए| वैसे हमारी संस्थाओं का भी एक प्रमुख दायित्व यह देखना भी है कि ऐसे धार्मिक संगठनों का उदय आखिर किन परिस्थितियों में होता है? 
         
                विश्व हिन्दू परिषद् भी एक धार्मिक संगठन है और निश्चित रूप से तमाम धार्मिक संगठनों वाली बुराइयाँ इस संगठन में भी हैं, मैं एक हिन्दू हूँ और इसमें किसी धार्मिक संगठन का कोई योगदान नहीं है, हाँ भारतीय नागरिक हूँ इसमें भारतीय संविधान का योगदान अवश्य है| राम मंदिर आन्दोलन को  छोड़कर जिसके कारण भारतीय नागरिकों के बीच अविश्वास की खाई ही चौड़ी हुई है इसे छोड़ इस संगठन का कोई योगदान दिखाई नहीं देता और इस योगदान को भी देश भक्ति की श्रेणी में नहीं माना जा सकता| अब ऐसे संगठनों के नेताओं को आप किस श्रेणी में मानते हैं इसका सर्वाधिकार आप में निहित है|

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