मंगलवार, 17 नवंबर 2015

पंचायतीराज..

         गजब का झुनझुना है यह.! अरे वही पंचायतीराज का..! आते-जाते दो दिनों से ब्लाक कार्यालय को देख रहा हूँ.. पंचायतीराज के भावी उम्मीदवारों से अटा पड़ा है इस कार्यालय का परिसर में तिल रखने की जगह नहीं...जैसे, किसी नौकरी के खाली पद की वैकेंसी के लिए मारामारी मची हो...!

          फिलहाल पंचायतों के प्रतिनिधियों के लिए कोई वेतन-सेतन की व्यवस्था तो है नहीं...महीने पर इनको थोड़ा-बहुत मिलने वाला मानदेय भी सरकारी अमले के स्वागत-सत्कार में ही खर्च हो जाता होगा..! लेकिन फिर भी इन पदों के लिए इतनी मारामारी...!!
  
          हो सकता है लोगों में जबरदस्त जनसेवा का भाव छिपा हो....और अवसर देख यह भावना प्रकट होने के लिए बेताब हो रही हों..? तब तो एक बात है हमारे देश के निवासियों में जनसेवा की बड़ी प्रबल भावना छिपी हुई है...! अन्दर ही अन्दर यह भावना लोगों के हृदयों में कुनमुनाती रहती है...बस उचित अवसर मिला नहीं कि यह बाहर निकल हिलोरें मारने लगती है...चुनाव भी तो आखिर जनसेवा के लिए ही होते है...हाथ जोड़े भावी प्रतिनिधियों की मंशा तो यही कहती है...इसके अलावा तो मुझे कोई और भावना नहीं दिखाई देती..इसके पीछे अन्य बात सोचना...फिर तो जनप्रतिनिधि का अपमान होगा....या फिर...
       
       "जिसके दरवाजे पर सुबह-सुबह ही चार-छह-दस लोग इकट्ठे न हो जाएँ तो फिर वह कौन सा आदमी..? फिर तो उसके लिए चुल्लू भर पानी में डूबने के समान है...हाँ साहब जी, गाँव में रहना है तो बिना इसके गाँव में रहना बेकार है...! बहुत दिन से परधानी रही है..अबकी साहब..! देखो कौन सीट होती है..? चुनाव न लड़ पाए तो लड़ावेंगे जरूर...मुला साहब इन नए लड़िकन क कौन कहे..ये ससुरे..कहु के घरे में मुँह-अँधेरे कूदो जैइहें लेकिन नेता जी थाने से इन्हें छुड़ाये दैहें...फिर ये ससुरे दिन उजाले गाँव भर में नेता बने फिरे...और गाँव वाले इनसे डरे ऊपर से...! हाँ थोड़ा-बहुत खतरा इन्हैं से है...लेकिन साहब, मने भी कम नहीं खेले...मेरे सामने किसी की न चली..बस बड़कौने नेतवौ को थोड़ा साधे के पड़े.."


             हाँ...कुछ यही बातें कही थी गाँव के उस पंचायत प्रतिनिधि ने...मुझे गाँव में मिनरल वाटर पिलाते हुए..! हो सकता है गाँव-गाँव से ब्लाक कार्यालय पर पंचायत चुनाव नामांकन के लिए आई इस भीड़ का एक कारण यह भी हो...खैर..

            कुछ भी हो गजब का है यह पंचायतीराज..! ये बड़कौने पंचायत वाले छोटकउने पंचन को कठपुतली बना लेते हैं..। ये कहते हैं -


                "भाई उलझे रहो अपनी पंचायत में..तुम भी सजा लो अपना दरबार...हमें क्या फर्क पड़ता है..! सदियों से सब लोग दरबार ही तो सजाते आए हैं यहाँ..!  लेकिन यदि हमारी ओर जरा भी देखने की कोशिश किये तो तुम्हारा भी पिटारा खोलते हमें देर नहीं लगेगी..! बड़े आए विकास कराने वाले..! बड़ी जतन से पास कराकर यह पंचायतीराज वाला झुनझुना तुमको दिए हैं....बजाते रहो इसे..!!"
                        ----------------विनय

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें